भारतीय संसद (Parliament of India) - PDF Download

भारतीय संसद

1. राज्य सभा

राज्य सभा की संरचना

अधिकतम 250 , सदस्य ,238 राज्यों व संघ राज्यों से ,12 राष्ट्रपति द्वारा कला ,साहित्य, विज्ञान एवं समाज सेवा से जुड़े लोगों में से मनोनीत ।
वर्तमान - कुल 245 सदस्य , 229 राज्यों से ,4 संघ शासित राज्यों से (दिल्ली व पांडुचेरी) 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत ।

राज्य सभा का चुनाव

राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा ।
सीटों का बंटवारा राज्य की जनसंख्या के अनुसार ।

2. लोकसभा

लोकसभा की संरचना

अधिकतम 552 सदस्य ,530 सदस्य राज्यों से ,20 संघ राज्यों से ,दो एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत ।
वर्तमान - कुल 545 सदस्य ,530 राज्यों से, 13 संघ राज्यों से दो एंग्लो इंडियन ।

लोकसभा का चुनाव

विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रुप से वयस्क मताधिकार द्वारा ।
जनसंख्या के आधार पर अनुपात SC एवं ST के लिए लोकसभा में सीटें आरक्षित की गई है । 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा आरक्षित सीटों को 2001 की जनगणना के आधार पर नियत किया गया है ।

3. सदनों की अवधि

राज्य सभा

  • 1952 में पहली बार स्थापित एक स्थाई सदन ।
  • एक तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त ।
  • राज्यसभा सदस्यों की पदावधि 6 वर्ष ।

लोकसभा

  • आम तौर पर चुनाव के बाद पहली बैठक से 5 वर्ष तक ।
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर विघटित कर सकता है ।
  • आपातकाल की स्थिति में एक बार में 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है ।
  • आपातकाल खत्म होने के बाद किसी भी हाल में 6 महीने से अधिक अवधि तक नहीं रह सकती ।

4. संसद की सदस्यता

अर्हताएं

राज्यसभा के लिए कम से कम 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो एवं लोकसभा के लिए कम से कम 25 वर्ष ।
लोकसभा में SC एवं ST सदस्य उस सीट पर भी चुनाव लड़ सकता है जो उसके लिए आरक्षित नहीं है ।

निरर्हताएं (जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951)

चुनावी अपराध है चुनाव में भ्रष्ट आचरण के तहत दोषी पाया गया हो ।
किसी अपराध में 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा हुई हो ।
भ्रष्टाचार के कारण सरकारी सेवा से बर्खास्त किया गया हो ।
निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्यौरा ना दे पाया हो ।
उसे विभिन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने आया रिश्वतखोरी के लिए दंडित किया गया हो ।
छुआछूत दहेज व सती जैसे सामाजिक अपराधों का प्रसार और संलिप्त पाया जाना ।
* किसी सदस्य के उपरोक्त निरर्हताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा यद्यपि राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग से राय लेना आवश्यक है ।

दल - बदल के आधार पर निरर्हता( दसवीं अनुसूची)

अगर वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल का त्याग करता है ,जिस दल के टिकट पर उसे चुना गया हो ।
अगर वह अपने राजनीतिक दल द्वारा दिए निर्देशों के विरुद्ध सदन में मतदान करता है या नहीं करता ।
अगर निर्दलीय चुना गया सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है ।
अगर को नामित या नाम निर्देशित सदस्य 6 महीने बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है ।
* दसवीं अनुसूची के तहत निर्भरता के सवालों का निपटारा राज्यसभा में सभापति व लोकसभा में अध्यक्ष करता है न कि राष्ट्रपति । उच्चतम न्यायालय के निर्णय दिया कि सभापति अध्यक्ष के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है ।

5. स्थानों का रिक्त होना

दोहरी सदस्यता

अगर किसी सदन का वर्तमान सदस्य दूसरे सदन में भी चुन लिया जाता है तो पहले वाले सदन में उसका पद रिक्त हो जाएगा ।
अगर कोई व्यक्ति एक ही सदन में 2 सीटों पर चुना जाता है तो उसे स्वेच्छा से किसी एक सीट को खाली करना होगा अन्यथा दोनों सीटें रिक्त मानी जाएंगी ।
अगर कोई व्यक्ति संसद एवं राज्य विधानमंडल का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो उसे 14 दिन के भीतर राज्य विधान मंडल की सीट को खाली करना होता है अन्यथा संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है ।

6. शपथ एवं प्रतिज्ञान

संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान लेता है ।



7. लोकसभा अध्यक्ष

निर्वाचन एवं पदावधि

राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख निर्धारित करता है ।
अध्यक्ष को पद से हटाने के लिए कम से कम 14 दिन की सूचना पर समस्त सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता होती है ।
यदि अध्यक्ष सदन का सदस्य नहीं रहता तो अध्यक्ष पद रिक्त माना जाएगा।

मतदान

अध्यक्ष अपना प्रथम मत केवल उसी स्थिति में दे सकता है जब उसे अध्यक्ष पद से हटाने के लिए संकल्प विचाराधीन हो ।
अध्यक्ष हमेशा अपना निर्णायक मत देता है जब मतदान बराबर हुआ हो । अध्यक्ष पद से हटाने के लिए प्रस्ताव पारित करने में वह निर्णायक मत नहीं दे सकता ।
जब अध्यक्ष पद से हटाने के लिए संकल्प विचाराधीन होता है तो इस स्थिति में अध्यक्ष पीठासीन नहीं रहता वह लोकसभा में बोल सकता है एवं उसकी कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा अपने प्रथम मत का प्रयोग कर सकता है ।
लोकसभा में विघटित होने पर अध्यक्ष अपना पद नहीं छोड़ता वह नई लोकसभा की बैठक तक पद धारण करता है ।

भूमिका शक्ति एवं कार्य

वह गणपूर्ति कोरम पूरा ना होने पर सदन को स्थगित करता है ।
वह सामान्य स्थिति में मत नहीं देता लेकिन निर्णायक मत देता है ।
संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है ।
अध्यक्ष यह तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं ।
दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल उपबंध के आधार पर अध्यक्ष लोकसभा के किसी सदस्य की निर्भरता के प्रश्न का निपटारा करता है ।
वह लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के सभापति नियुक्त करता है और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करता है ।
उसके कार्यों व आचरण की लोकसभा में न तो चर्चा की जा सकती हो और न ही आलोचना ।

8. लोकसभा उपाध्यक्ष

उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख अध्यक्ष निर्धारित करता है उपाध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है ।
अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष सदन के जीवन पर्यंत अपना पद धारण करता है ।
संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष पीठासीन होता है ।
उपाध्यक्ष ,अध्यक्ष के अधीनस्थ नहीं होता है वह प्रत्यक्ष रुप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है ।
11 वीं लोकसभा में इस पर सहमति हुई है कि अध्यक्ष सत्ताधारी दल का एवं उपाध्यक्ष मुख्य मुख्य विपक्षी दल से हो ।
अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पद धारण करते समय कोई अलग शपथ या प्रतिज्ञान नहीं लेता है ।
जी.वी. मावलंकर प्रथम लोकसभा अध्यक्ष एवं एम. ए. अय्यंगार प्रथम उपाध्यक्ष थे ।

9. सामायिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर)

राष्ट्रपति लोकसभा के एक सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करता है राष्ट्रपति खुद प्रोटेम स्पीकर को शपथ दिलाता है ।
वह लोक सभा की पहली बैठक में पीठासीन अधिकारी होता है उसका मुख्य कर्तव्य नए सदस्यों को शपथ दिलवाना होता है ।
जब नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है तो प्रोटेम स्पीकर का पद खुद समाप्त हो जाता है ।

10. राज्यसभा का सभापति

देश का उपराष्ट्रपति इसका पदेन सभापति होता है ।
सभापति सदन का सदस्य नहीं होता ,सभापति ने अपना प्रथम मत दे सकता है और ना ही सभापति को हटाए जाने की प्रक्रिया में अपना मत दे सकता है सभापति केवल निर्णायक मत दे सकता है ।
सभापति के हटाए जाने की प्रक्रिया में सभापति सदन में उपस्थित रह सकता है, बोल सकता है ,एवं कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है किंतु मत नहीं दे सकता मतदान बराबर होने की स्थिति में भी मत नहीं दे सकता ।

11. राज्यसभा का उपसभापति

राज्यसभा अपने सदस्यों के बीच से स्वयं अपना सभापति चुनती है ।
उप सभापति, सभापति के अधीनस्थ नहीं होता है वह राज्यसभा के प्रति सीधे उत्तरदायी होता है ।
उपसभापति भी सदन की कार्यवाही के दौरान प्रथम प्रथम मत नहीं दे सकता वह केवल निर्णायक मत दे सकता है ।
जब सभापति राज्य सभा की अध्यक्षता करता है तो उपसभापति एक साधारण सदस्य की तरह होता है वह बोल सकता है, कार्यवाही में भाग ले सकता है तथा मतदान की स्थिति में मत भी दे सकता है ।

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