कोशिका (Cell) जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई

koshika or uske prakar

जब हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो जीव व निर्जीव दोनों को आप पाते हैं । आप अवश्य आश्चर्य करते होंग एवं अपने आप से पूछते | होंगे कि ऐसा क्या है , जिस कारण जीव , जीव कहलाते हैं और निर्जीव जीव नहीं हो सकते । इस जिज्ञासा का उत्तर तो केवल यही हो सकता है कि जीवन की आधारभूत इकाई जीव कोशिका की उपस्थित एवं अनुपस्थित है । सभी जीवधारी कोशिकाओं से बने होते हैं । इनमें से कुछ जीव एक कोशिका से बने होते हैं जिन्हें एककोशिक जीव कहते हैं , जबकि दूसरे , हमारे जैसे अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं बहुकोशिक जीव कहते हैं ।

कोशिका क्या है ? ( what in cell ? )

कोशिकीय जीवधारी ( 1 ) स्वतंत्र अस्तित्व यापन व ( 2 ) जीवन के सभी आवश्यक कार्य करने में सक्षम होते हैं । कोशिका के बिना किसी का भी स्वतंत्र जीव अस्तित्व नहीं हो सकता । इस कारण जीव के लिए कोशिका ही मूलभूत से संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है । जिस प्रकार मकान छोटी छोटी ईंटों का बना होता हैं , उसी प्रकार प्रत्येक जीवधारी का शरीर भी एक या अनेक छोटी - छोटी रचनाओं का बना होता हैं , जिन्हें कोशिका ( cell ) कहते हैं ।

एन्टोनवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था । राबर्ट ब्राउन ने बाद में केंद्रक की खोज की । सूक्ष्मदर्शी की खोज व बाद में इनके सुधार के बाद इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा कोशिका को विस्तृत संरचना का अध्ययन संभव हो सका ।

कोशिका सिद्धांत ( Cell Theory )

I. कोशिका सिद्धान्त ( The Cell Theory )

पूर्व कल्पना के अनुसार- ‘ कोशिका जीवों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक ईकाई है । ’ कोशिका सिद्धान्त जर्मन वनस्पतिज्ञ MJ . Schleiden ने सन् 1838 में पौधों के लिए तथा जर्मन प्राणी - विज्ञानी Theodor Schiwann ने सन् 1839 में जन्तुओं के लिए स्थापित किया था । Schawann के शब्दों में , प्रत्येक कोशिका एक जीव है तथा समस्त जन्तु तथा पेड़ - पौधों इन जीवों का समूह है . जो एक निश्चित क्रम से बंधे होते है तथा ये जीव पूर्ववर्ती अर्थात् पहले से स्थित जीवों से बनते है । सन् 1858 में विरकाव ( Virchow ) ने बताया कि ‘ कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती कोशिकाओं से होती है ’- “ Omnis Cellula e Cellula ” रेमाक ( Nageli ) , नैलेजी ( Nageli ) , पुरकिजे ( Purkinje ) तथा वॉन मोहल ( Von Mohi ) जीव वैज्ञानिकों ने कोशिका सिद्धांत की अनेक कमियों को दूर किया तथा कोशिका- सिद्धांत की स्थिति को निम्नलिखित प्रकार से बताया -

  • समस्त जीव का शरीर कोशिकाओं को समूह है ।
  • कोशिकाओं जैविक क्रियाओं ( Metabolic Activities ) की इकाई को प्रदर्शित करती है ।
  • नई कोशिकाओं पूर्ववर्ती कोशिकाओं से ही बन सकती है ।
  • कोशिकाएं आनुवंशिक ईकाई ( Hereditary Units ) भी है तथा इनमें आनुवंशिकता के गुण उपस्थित होते है ।
  • किसी भी जीव में होने वाले सभी क्रियाएं उसकी घटक कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न जैव - क्रियाओं के कारण होती है ।

II. प्रोटोप्लाज्म सिद्धांत

मैक्स शुल्ज ( 1861 ) द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त , जिसके अनुसार प्रत्येक जीव का सजीव भाग ‘ प्रोटोप्लाज्म ’ होता है । कोशिका , मात्र एक संग्रहक क्षेत्र है , जो कोशिका झिल्ली द्वारा प्रोटोप्लाज्म को चारों ओर से घेरे रखता है । केन्द्रक भी इसमें ही निहित होता है ।

III. जीव सिद्धान्त

सैक्स ( 1874 ) द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्तानुसार , प्रत्येक जीव एक इकाई की तरह कार्य करता है , जिसमें प्रोटोप्लाज्म की निरंतर संहति , अपूर्ण रूप से कोशिकाओं में विभक्त रहती है । आधुनिक शोधों के अनुसार , कोशिका एक ‘ उच्चस्तरीय व्यवस्थित आण्विक कारखाना ’ है । वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में कोशिका सिद्धांत निम्नवत है :

  • सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं ।
  • सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं ।

कोशिका का समग्र अवलोकन

कोशिका के प्रकार

  1. यूकैरियाटिक कोशिका (Eukaryotic Cells)
  2. प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cells)

प्रत्येक कोशिका के भीतर एक सघन झिल्लीयुक्त संरचना मिलती है , जिसे केंद्रक कहते हैं । इस केंद्रक में गुणसूत्र ( क्रोमोसोम ) होता है , जिसमें आनुवांशिक पदार्थ डीएनए होता है । जिस कोशिका में झिल्लीयुक्त केंद्रक होता है , उसे यूकरियोट व जिसमें झिल्लीयुक्त केंद्रक नहीं मिलता उसे प्रोकैरियाट कहते हैं । दोनों यूकैरियाटिक व प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इसके आवतन को घेरे हुए एक अर्द्धतरल आव्यूह मिलता है जिसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं । दोनों पादप व जंतु कोशिकाओं में कोशिकीय क्रियाओं हेतु कोशिकाद्रव्य एक प्रमुख स्थल होता है । कोशिका की ' जीव अवस्था ' संबंधी विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएं यहीं संपन्न होती हैं ।

यूकैरियोटिक कोशिका में केंद्रक के अतिरिक्त अन्य झिल्लीयुक्त विभिन्न संरचनाएं मिलती हैं , जो कोशिकाग कहलाती हैं जैसे अंतप्रद्रव्यो जालिका ( ऐन्डोप्लाजमिक रेटौकुलम ) सूत्र कणिकाएं ( माइटोकॉन्डिया ) सूक्ष्मकाय ( माइक्रोबॉडी ) , गाल्जीकाय , लयनकाय ( लायसोसोम ) व रसधानी प्रोकैरियोटिक कोशिका में झिल्लीयुक्त कोशिकाओं का अभाव होता है ।

यूकैरियोटिक व प्रकिरियोटिक दोनों कोशिकाओं में झिल्ली रहित अंगक राइबोसोम मिलते हैं । कोशिका के भीतर राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नहीं , बल्कि दो अंगकों- हरित लवक ( पौधों में ) व सूत्र कणिका में व खुरदरी अंतर्द्रव्यों जालिका में भी मिलते हैं । जंतु कोशिकाओं में झिल्ली रहित तारक केंद्रक जैसे अन्य अंगक मिलते हैं , जो कोशिका विभाजन में सहायता करते हैं ।

कोशिकाएं माप , आकार व कार्य की दृष्टि से काफी भिन्न होती हैं । उदाहरणार्थ- सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा 0.3µm ( माइक्रोमीटर ) लंबाई की , जबकि जीवाणु ( बैक्टीरिया में 3 से 5µm ( माइक्रोमीटर ) की होती हैं । पृथक की गई सबसे बड़ी कोशिका शुत्तरमुर्ग के अंडे के समान है । बहुकोशिकीय जीवधारियों मनुष्य की लाल कोशिका का व्यास लगभग 7.0µm ( माइक्रोमीटर ) होता है । तंत्रिका कोशिकाएं सबसे लंबी कोशिकाओं में होती हैं । ये बिंबाकार बहुभुजी , स्तंभी , घनाभ , धार्ग की तरह या असमाकृति प्रकार की हो सकती हैं । कोशिकाओं का रूप उनके कार्य के अनुसार भिन्न हो सकता है ।

प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं , जीवाणु , नीलहरित शैवाल , माइकोप्लाज्मा और प्ल्यूरो निमोनिया सम जीव मिलते हैं । सामान्यतया ये यूकैरियोटिक कोशिकाओं से बहुत छोटी होती हैं और काफी तेजी से विभाजित होती हैं ।

प्रोकैरियोटिक कोशिका का मूलभूत संगठन आकार व कार्य में विभिन्नता के बावजूद एक सा होता है । सभी प्रोकैरियोटिक में कोशिका भित्ति होती हैं जो कोशिका झिल्ली से घिरी होती है केवल माइकोप्लाज्मा को छोड़कर । कोशिका में साइटोप्लाज्म एक तरल मैट्रिक्स के रूप में भरा रहता है । इसमें कोई स्पष्ट विभेदित केंद्रक नहीं पाया जाता है । आनुवंशिक पदार्थ मुख्य रूप से नग्न व केंद्रक झिल्ली द्वारा परिबद्ध नहीं होता है । जिनोमिक डीएनए के अतिरिक्त ( एकल गुणसूत्र / गोलाकार डीएनए ) जीवाणु में सूक्ष्म डीएनए वृत्त जिनोमिक डीएनए के बाहर पाए जाते हैं । इन डीएनए वृत्तों को प्लाज्मिड कहते हैं । ये प्लाज्मिड डीएनए जीवाणुओं में विशिष्ट समलक्षणों को बताते हैं । उनमें से एक प्रतिजीवी के प्रतिरोधी होते हैं ।

यूकरियोटिक कोशिकाएं ( ससीमकेंद्रकी कोशिकाएं ) , सभी आद्यजीव , पादप , प्राणी व कवक में यूकैरियोटिक कोशिकाएं होती हैं । यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीदार अंगकों की उपस्थिति के कारण कोशिकाद्रव्य विस्तृत कक्षयुक्त प्रतीत होता है । यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीमय केंद्रक आवरण युक्त व्यवस्थित केंद्रक मिलता है । इसके अतिरिक्त यूकैरियोटिक कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के जटिल गतिकीय एवं कोशिकीय कंकाल जैसी संरचना मिलती है । इनमें आनुवंशिक पदार्थ गुणसूत्रों के रूप में व्यवस्थित रहते हैं । सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएं एक जैसी नहीं होती हैं । पादप व जंतु कोशिकाएं भिन्न होती हैं । पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति , लवक एवं एक बड़ी केंद्रीय रसधानी मिलती है . जबकि प्राणी कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होती हैं दूसरी तरफ प्राणी कोशिकाओं में तारकाय मिलता है जो लगभग सभी पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित होता है

प्रोकैरियोटिक तथा यूकरियोटिक कोशिका में अंतर

विशेषता / अंगक प्रोकरियोटिक कोशिका यूकरियोटिक कोशिका
1 . कोशिका प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की बनी होती है । सैल्यूलोज की बनी होती है ।
2. माइटोकॉन्डिया अनुपस्थित होता है । उपस्थित
3. अंत : प्रद्रव्यी जालिका अनुपस्थित होता है । उपस्थित
4. राइबोसोम 70S प्रकार के होते । 80S प्रकार के होते है ।
5. गॉल्गीकाय अनुपस्थित होते है । उपस्थित
6. केन्द्रक झिल्ली अनुपस्थित होती है । उपस्थित
7. लाइसोसोम अनुपस्थित होते है । उपस्थित
8. डी.एन.ए. एकल सूत्र के रूप में । पूर्ण विकसित एवं दोहरे सूत्र के रूप में
9. कशाभिका केवल एक तंतु होता है । कुल 11 तंत होते है
10. कन्द्रिका अनुपस्थित होती है । उपस्थित
11. सेन्ट्रियोल अनुपस्थित होता है । उपस्थित
12. श्वसन प्लाज्मा झिल्ली द्वारा होता है । माइटोकॉन्ड्रिया द्वारा होता है ।
13. लिंग प्रजनन नहीं पाया जाता है । पाया जाता है
14. प्रकाश संश्लेषण थायलेकाइड में होता है । क्लोरोप्लास्ट में होता है ।
15. कोशिका विभाजन असूत्री प्रकार का होता है । अर्द्धसूत्री या समसूत्री प्रकार का होता है ।
कोशिका (Cell) जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई

कोशिका की संरचना

सभी कोशिकाओं के मुख्य तीन अंग होते हैं- ( a ) कोशिका झिल्ली , ( b ) केन्द्रक , ( c ) कोशिकाद्रव्य

कोशिका झिल्ली ( Cell membrane or Plasma membrane )

सभी कोशिकाओं के चारों ओर एक अत्यंत पतली , पारदर्शक एवं लचीली झिल्ली पायी जाती है , जिसे कोशिका झिल्ली या प्लाज्मा झिल्ली कहते है । कोशिका झिल्ली तीन स्तरों की बनी होती हैं । इसमें बाहरी तथा भीतरी स्तर प्रोटीन का तथा मध्य का स्तर फास्पोलिपिड का बना होता है । इसका मुख्य कार्य- " चूँकि यह झिल्ली एक अर्द्ध पारगम्य झिल्ली होती है अतः इसका मुख्य कार्य कोशिका और उसके बाहर के माध्यम के बीच आण्विक गतिविधि को नियन्त्रित करना है ।

कोशिका भित्ति ( Cell Wall )

कवको , शैवालों एवं विकसित हरं पौधों की भित्ति ' सैल्यूलोज की बनी होती हैं , जबकि जीवाणुओं एवं कुछ अन्य कवकों की भित्ति कार्बोहाइड्रेट ( -NAM - NAG - Polymer of मोनोसैकराइड ) को । इसका मुख्य कार्य कोशिका द्रव्य एवं प्लाज्मा झिल्ली की बाह्य आघातों से रक्षा करना है ।

केन्द्रक ( Nucleus )

कोशिका द्रव्य में एक गोल एवं चपटी या अण्डाकार संरचना पायी जाती है , जिसे केन्द्रक कहते हैं । यह कोशिका में होने वाली समस्त जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण करता हैं , अतः इसे " कोशिका का नियन्त्रण कक्ष " भी कहते हैं । केन्द्रक की खोज 1831 में रोबर्ट ब्राउन ने की थी ।

केन्द्रक की संरचना में साधारणतया चार भाग होते है -

( i ) केन्द्रकीय झिल्ली ( Nuclear Membrane ) - केन्द्रक के चारों ओर पायी जाती है । जिसे कैरियोथीका कहते है । यह झिल्ली छिद्रयुक्त होती है । जो अंत : प्रद्रव्य जालिका से सम्बन्ध रहती है ।

( ii ) केन्द्रक द्रव्य ( Nucleoplasm ) - झिल्ली के अन्दर एक पारदर्शक , कणिकायुक्त द्रव भरा रहता है । जिसे केन्द्रक द्रव्य या कैरियोलिम्फ कहते हैं । इसमें न्यूक्लिक अम्ल , प्रोटीन , एन्जाइम , फास्फोरस एवं खनिज लवण पाये जाते है । जो Cell division में भाग लेते हैं ।

( iii )केन्द्रिका - केन्द्रक में एक बड़ा गोलाकार कण पाया जाता है , जिसे केन्द्रिका कहते हैं ।

( iv ) क्रोमैटिन जाल - केन्द्रक के केन्द्रकीय द्रव्य में पतली - पतली धागे के समान रचनाये दिखाई देती हैं , जिन्हें क्रोमैटिन जाल कहते है ।
कार्य केन्द्रक कोशिका का नियन्त्रण कक्ष हैं । यह RNA का निर्माण करता है । यह कोशिका वृद्धि को नियंत्रित करता हैं अर्थात कोशिका विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं । केन्द्रक कोमेटिन एक हिस्टोन प्रोटीन होता है , जिसमें DNA / RNA होते है ।

कोशिका द्रव्य ( Cytoplasma ) या ( Protoplasma )

कोशिका द्रव्य को सर्वप्रथम " कोर्टी " ने देखा बाद में " दुजार्डिन " ने इसका नाम ' सारकोड ' रखा अंततः पुरकिन्जे ने इसे जीवद्रव्य की संज्ञा दी । जीवद्रव्य एक कोलाइडी विलयन हैं , जिसमें प्रोटीन , जल , लिपिड एवं अन्य दीर्घ अणु पाये जाते हैं जिसे हाइलोप्लाज्म / मैट्रिक्स कहते हैं । कोशिका द्रव्य में बिखरी हुयी विभिन्न जीवित व्यवस्थित रचनाओं को अलग - अलग रूप से कोशिकांग ( Cell organelles ) तथा सम्मिलित रूप से ट्रोफोप्लाज्म कहते हैं । कोशिकांग में साधारणतया निम्न संरचनायें पायी जाती हैं -

1. माइटोकॉन्ड्रिया ( MITOCHONDRIA ) - माइटोकॉन्ड्यिा एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कोशिकांग हैं । यह कणिका या सूत्र या श्लाका की तरह होते हैं तथा सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं इसे सर्वप्रथम कोलीकर ने 1880 में कीटो की रेखित पेशीयों में कण के रूप में देखा बाद में फ्लेमिंग ने इसे Fila नाम दिया लेकिन इसका अविष्कारक Altman ( 1886 ) को कहा जाता है । माइट्रोकॉन्ड्रिया दोहरी झिल्ली से घिरा होता हैं , जिसमें बाह्य झिल्ली चिकनी एवं अन्दर के अंगुलीनुमा क्रिस्टी ( Cristae ) बनाती है । सिसोनिया माइटोकॉन्ड्यिा दोहरी झिल्ली से घिरा होता है , जिसमें बाह्य झिल्ली चिकनी एवं अन्दर के अगुलीनुमा क्रिस्टी ( Cristas ) बनाती है । इनके एन्जाइम द्वारा कोशिकीय श्वसन होता है , जिससे कर्जा पैदा होती है अर्थात् भोज्य पदार्थों का आक्सीकरण होता है , तथा मुक्त ऊर्जा को एडिनोसिन ट्राइफास्फेट ( ATP ) के रूप में किया जाता है । यह ATP शरीर की ऊर्जा का स्रोत हैं तथा शरीर में होने वाली सभी जैविक क्रियाओं में इसका प्रयोग होता है । इसलिए माइटोकॉन्ड्रिया को ' ऊर्जा गृह ' ( Power House ) भी कहा जाता है । यह प्रोटीन संश्लेषण में भी सहायक होता है । मनुष्य की Liver Cell में 1 हजार से लेकर 16 सौ तक माइटोकॉण्ड्यिा पाये जाते है ।

2. लवक ( Plastid ) अधिकांश पौधों तथा प्रकाश संश्लेषण करने वाले कुछ जन्तुओं को कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में छोटी - छोटी गोल रचनाएँ पायी जाती हैं , जिन्हें लबक कहते हैं । लवक सामान्यत : तीन प्रकार के होते हैं -

( i ) अवर्णी लवक ( Leucoplast ) : - ये भोज्य पदार्थों का संग्रहण करने वाले रंगहीन लवक होते हैं । उदाहरण -
( a ) एमाइलोप्लास्ट- मण्ड ( स्टार्च का संग्रहण करने वाले ) ट्यूबर , भ्रूण , बीजपत्र ।
( b ) इलाइयोप्लास्ट- वसा व तेल का संग्रह करने वाले ।
( c ) प्रोटीनोप्लास्ट- प्रोटीन का संग्रह करने वाले ।

( ii ) वर्णीलवक ( Chromoplast ) : - हरे रंग के अलावा पौधों में कई अन्य रंगों के लवक भी पाये जाते हैं , जिसे वर्णी लवक कहते हैं । ये लवक फल व फूलों में पाये जाते है ।

( iv ) हरित लवक ( Chloroplast ) :- वह अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । यह सभी पौधों में पाया जाता हैं । हरे पौधे इसी के सहायता से प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन ( कार्बोहाइड्रेट ) बनाते हैं । हरितलवक में ही पर्णहरिम के अलावा कैरोटिन एवं जैन्थोफिल नामक सहायक वर्णक भी पाये जाते हैं । जिससे पत्तियों में पीला रंग दिखाई देने लगता है । चूंकि यह प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थ बनाता है । अत : इस कोशिका का " रसोई घर " कहते है ।
नोट- टमाटर का लाल रंग " लाइपोकेन " वर्णक के कारण व गाजर का हल्का लाल रंग " कैरोटिन " वर्णक के कारण होता है ।

3. गॉल्जी काय ( Golgi body of Golgi apparatus ) : - रक्त कोशिकाओं को छोड़कर सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में गुच्छ के रूप में गॉल्जीकाय पाये जाते हैं । इसकी खोज कैमिलोगॉल्जी नामक वैज्ञानिक ने की थी ।
कार्य- ये कई प्रकार के स्रावी पदार्थों का निर्माण करते हैं । ये कोशिका भित्ति एवं लाइसोसोम्स का निर्माण करते हैं । ये उपास्थियों के आधार पदार्थ का स्वावण करते हैं तथा कार्बोहाइड्रेट को दीर्घ अणुओं का संश्लेषण करते है । इस प्रकार गाल्जीकाय को कोशिका के अणुओं का ' यातायात प्रबंधक ' भी कहा है ।

4. अंतःप्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ER ) : - ER की खोज 1945 में पोर्टर नामक वैज्ञानिक ने की थी । ER विषाणु , जीवाणु , नीले - हरे शेवाल तथा RBCs में नहीं पाया जाता हैं । इनके अलावा सभी कोशिकाओं में पायी जाती है ।
कार्य- कोशिका को यांत्रिक सहारा देता है व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक व संचयन करना । कोशिका के अन्दर पदार्थों का आदान - प्रदान में भाग लेती है । साथ ही आनुवांशिक पदार्थों को कोशिका के अन्य अंग तक पहुँचाती है ।

5. लाइसोसोम्स : - ये इकाई झिल्ली की बनी अण्डाकार या गोलाकार रचनाये है , जिनमें पाचक एन्जाइम भरे होते हैं । लाइसोसोम्स की खोज डी डुवे ( De Duve ) नामक वैज्ञानिक ने की थी । लाइसोसोम्स में 24 प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं । इसका मुख्य कार्य " बाहरी पदार्थों का भक्षण एवं पाचन करना हैं । ये कोशिका में प्रवेश करने वाले हानिकारक सूक्ष्म जीवों एवं कणों का पाचन करते हैं । पाचन के समय य स्वयं फटकर पदार्थों का पाचन कर देते हैं । इसलिए इसे " आत्महत्या थैली ( Suicide Vesicle / Bag ) कहते है ।

6. राइबोसोम :इसकी खोज पैलेड ने 1955 में की थी । ये क्लोरोप्लास्ट , केन्द्रक , माइटोकाण्डिया , ER , तथा Cytoplasma में पाये जाते है ।
कार्य- राइबोसोम का सबसे प्रमुख कार्य " प्रोटीन का संश्लेषण हैं , इसलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री भी कहते है । अत : इसे माइक्रोसोम या राइबोन्यूक्लियों प्रोटीन के नाम से जाना जाता है ।

7. सूक्ष्मकायें ( Microbodies ) : - ये थैलीनुमा रचना है , जिनमें कुछ विशेष प्रकार के एन्जाइम से युक्त मैट्रिक्स भरा होता है । उदाहरण : - परऑक्सीसोम , स्फेरोसोम , लोमासोम , ट्रान्सोसोम , ग्लाइऑक्सौसोम आदि ।

8 . तारककेन्द्र : इसकी खोज बोबेरी ने 1888 में की थी । यह कोशिका विभाजन में मदद करता है ।

9 . सूक्ष्म तंतु सूक्ष्म नलिकाये : - ये दोनो ही कोशिकांगों को निश्चित स्थान पर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । इसलिए इसे कोशिकीय कंकाल ( Cytoskelton ) भी कहते है । ये Filagella / cilia का निर्माण व कोशाद्रव्य चक्रण ( Cyclosis ) मुख्य कार्य करते है ।

10. रिक्तिकाएं ( Vacudes ) : - यह अद्भ पारगम्य झिल्लियों से घिरी होती है । इसका मुख्य कार्य भोज्य पदार्थों का संग्रहण है । रिक्तिका के कारण ही कोशिकाओं की स्फीति बनी रहती है ।

जन्तु कोशिका तथा पादप कोशिका में अंतर

विशेषतायें जंतु कोशिका पादप कोशिका
1. कोशिका भित्ति कोशिका भित्ति का अभाव होता है । कोशिका झिल्ली के बाहर मजबूत कोशिका भित्ति पायी है ।
2. मध्य पट ( cell plate ) कोशिका विभाजन के समय मध्य पट का का निर्माण नहीं होता है । कोशिका विभाजन के समय मध्य पट निर्माण होता है ।
3. क्लोरोप्लास्ट अभाव होता है । क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है , जिसकी सहायता से पौधे प्रकाश संश्लेषण कर अपना भोजन ( काबोहाइड्रेट ) बनाते है ।
4. लाइसोसोम उपस्थित होता है । अनुपस्थित होता है ।
5. सेन्ट्रोसोम उपस्थित होता है तथा कोशिका विभाजन में सहायता करता है । अनुपस्थित होता है ।
6. रिक्तिका या तो अनुपस्थित होती है या उपस्थित होने पर बहुत छोटी होती है । पूर्ण विकसित रिक्तिका पायी जाती है ।

सभी जीव , कोशिका या कोशिका समूह से बने होते हैं । कोशिकाएं आकार व आकृति तथा क्रियाएं / कार्य की दृष्टि से भिन्न होती हैं । झिल्लीयुक्त केंद्रक व अन्य अंगकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर कोशिका या जीव को प्रोकैरियोटिक या यूकैरियोटिक नाम से जानते हैं ।

एक प्रारूपी यूकैरियोटिक कोशिका , केंद्रक व कोशिकाद्रव्य से बना होता है । पादप कोशिकाओं में कोशिका झिल्ली के बाहर कोशिका भित्ति पाई जाती है । जीवद्रव्यकला चयनित पारगम्य होती है और बहुत सारे अणुओं के परिवहन में भाग लेती है । अंत : झिल्लिकातंत्र के अंतर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका , गॉल्जीकाय , लयनकाय व रसधानी होती है । सभी कोशिकीय अंगक विभिन्न एवं विशिष्ट प्रकार के कार्य करते हैं । पादप कोशिका में हरितलवक प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय उर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं । तारककाय व तारककेंद्र पक्ष्माभ व कशाभिका का आधारीयकाय बनाता है जो गति में सहायक है । जंतु कोशिकाओं में तारककेंद्र कोशिका विभाजन के दौरान त ' उपकरण बनाते हैं । केंद्रक में केंद्रिक व क्रोमोटीन का तंत्र मिलता है । यह अंगों के कार्य को ही नियंत्रित नहीं करता , बल्कि आनुवंशिकी में प्रमुख भूमिका अदा करता है । इस प्रकार हम देखते है कि सपूर्ण कोशिकांग मिलकर शरीर की संरचना तो बनाते ही है साथ ही साथ सभी क्रिया भी सम्पादित करते है जो जीवन के मूलभूत लक्षण है । अतः कोशिका जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है ।

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