भारतीय संसद - Important One Liners For Exams

Bhaarteey Sansad

संसद , केंद्र सरकार का विधायी अंग होता है ।

केंद्र स्तर पर विधि निर्माण का कार्य संसद द्वारा किया जाता है ।

संविधान के भाग 5 के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद से संबंधित प्रावधान किए गए हैं ।

अनुच्छेद 79 के अनुसार , संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी , जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे ।

लोकसभा

लोक सभा , राज्यों से 530 और संघ राज्य क्षेत्रों से 20 प्रतिनिधि सदस्यों से मिलकर बनेगी ।

यदि राष्ट्रपति की राय में लोक सभा में आंग्ल - भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं हो तो , वह लोक सभा उस समुदाय से 2 सदस्य मनोनीत कर सकते हैं ।

लोक सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है ।

लोक सभा में राज्यवार सीटों का आवंटन 1971 की जनगणना पर आधारित है । 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 2001 के अनुसार , यह निर्धारण वर्ष 2026 तक यथावत रहेगा ।

लोक सभा में राज्यों को जनसंख्या के आधार पर सीटें आवंटित होती हैं ।

लोक सभा की अवधि प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 5 वर्ष तक की होगी । हालांकि राष्ट्रपति को पांच वर्ष से पूर्व किसी भी समय लोक सभा को विघटित करने का अधिकार है ।

आपातकाल में संसद की अवधि एक बार में एक वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है । आपातकाल की उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात उसका विस्तार किसी भी दशा में 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा ।

लोक सभा सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की आयु कम - से - कम 25 वर्ष होनी चाहिए । लोक सभा का स्थगन अध्यक्ष करता है , जबकि सत्रावसान और विघटन राष्ट्रपति करता है ।

अनुच्छेद 93 के अनुसार , लोक सभा के सभी सदस्यों द्वारा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव लोक सभा के सदस्यों में से किया जाता है ।

अनुच्छेद 94 ( ख ) के अनुसार , लोक सभा का अध्यक्ष अपना त्याग - पत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अपना त्याग - पत्र अध्यक्ष को सौंपता है ।

लोक सभा के अध्यक्ष को लोक सभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा हटाया जा सकता है ।

जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो , तब वे सदन में उपस्थित रहते हुए भी पीठासीन नहीं होगे ।

जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प लोक सभा में विचाराधीन हो , तब वह प्रथगत : मत का तो हकदार होगा , किंतु मत बराबर होने की स्थिति में निर्णायक मत नहीं दे सकेगा ।

लोक सभा का अध्यक्ष अपने निर्णायक मत ( Casting Vote ) का प्रयोग केवल तब करते हैं , जब किसी विषय के संदर्भ में हुए मतदान में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों के वोट बराबर अर्थात टाई ( Tie ) हो जाते हैं ।

लोक सभा सचिवालय प्रत्यक्ष रूप से लोक सभा अध्यक्ष के अंतर्गत कार्य करता है ।

प्रो - टेम स्पीकर ( Pro-tem Speaker ) आम चुनाव के बाद नव - निर्वाचित लोक सभा सदस्यों को शपथ दिलाते हैं ।

नव - निर्वाचित सदन में लोक सभा अध्यक्ष ( Speaker ) के चुनाव से पहले लोक सभा के सामान्यत : सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो - टेम स्पीकर के रूप में चुना जाता है ।

अनुच्छेद 85 ( 1 ) के अनुसार , लोक सभा के एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होगा ।

इस प्रकार लोक सभा के कम - से - कम वर्ष में दो बार सत्र बुलाए जाते हैं ।

अनुच्छेद 100 ( 3 ) के अनुसार , लोक सभा या राज्य सभा का कोरम ( गणपूर्ति ) कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होता है ।

मुख्य विपक्षी दल की मान्यता हेतु भी यही सदस्य संख्या आवश्यक है ।

उत्तर प्रदेश राज्य लोक सभा में सर्वाधिक प्रतिनिधि ( 80 ) भेजता है ।

इसके बाद क्रमश : महाराष्ट्र ( 48 ) तथा पश्चिम बंगाल ( 42 ) का स्थान है ।

वर्तमान में लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए चुनाव व्यय की अधिकतम सीमा 70 लाख रु . तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए 28 लाख रु . कर दिया गया है ।

लोक सभा का प्रथम चुनाव 25 अक्टूबर , 1951 से 21 फरवरी , 1952 तक चला था ।

यह चुनाव 489 सीटों के लिए हुआ था । प्रथम लोक सभा का पहला अधिवेशन 13 मई , 1952 को हुआ था ।

15 मई , 1952 को गणेश वासुदेव मावलंकर लोक सभा के प्रथम अध्यक्ष बने तथा 27 फरवरी , 1956 तक अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे ।

पहली लोक सभा के शेष कार्यकाल के लिए एम . अनंतशयनम आयंगर लोक सभा अध्यक्ष रहे थे ।

वर्ष 1954 में जे . बी . कृपलानी सहित विपक्ष के 21 सांसदों द्वारा लोक सभा के प्रथम अध्यक्ष जी . वी . मावलंकर के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था , जिसे लोक सभा द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया था ।

लोक सभा की प्रथम महिला अध्यक्ष मीरा कुमार थीं ।

राज्य सभा

संसद के उच्च सदन को राज्य सभा कहते हैं ।

इस सदन की अधिकतम सदस्य संख्या 250 निर्धारित की गई है ।

अनुच्छेद 80 के अनुसार , राज्य सभा , राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के 238 निर्वाचित ( अप्रत्यक्ष रूप से ) तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्यों से मिलकर बनेगी ।

राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे , जिन्हें साहित्य , विज्ञान , कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव हो ।

राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है ।

राज्य सभा के लिए निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार , एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है ।

राज्य सभा का विघटन नहीं होता है ।

यह एक स्थायी सदन है ।

राज्य सभा के एक - तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते इस प्रकार इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है ।

राज्य सभा का सदस्य होने के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए ।

राज्य सभा का सभापति राज्य सभा का सदस्य नहीं होता है ।

भारत का उपराष्ट्रपति , राज्य सभा का पदेन सभापति होता है ।

जब उपराष्ट्रपति , राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है , तो उसे राज्य सभा के सभापति के रूप में कोई वेतन या भत्ता नहीं मिलता ।

इस अवधि में वह राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन एवं भत्ते प्राप्त करता है ।

राज्य सभा अपने सदस्यों में से एक उपसभापति चुनती है ।

उपसभापति अपना त्याग - पत्र सभापति को देता है ।

उपसभापति को राज्य सभा बहुमत से पद से हटा सकती है ।

जब सभापति का पद रिक्त हो , तो उपसभापति उस पद के कर्तवयों का पालन करेगा ।

जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो , तब वह सभापति के रूप में पीठासीन नहीं होंगे ।

राज्य सभा में राज्यों को प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में दिया गया है । वर्ष 2003 में जन - प्रतिनिधित्व अधिनियम , 1951 में संशोधन के माध्यम से यह व्यवस्था की गई कि कोई भी व्यक्ति राज्य सभा के लिए कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है , चाहे वह किसी भी राज्य का निवासी हो ।

अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन राज्य सभा की एकांतिक शक्ति है ।

भारत के संघ राज्य क्षेत्रों में से मात्र 2 ( दिल्ली तथा पुडुचेरी ) संघ राज्य क्षेत्र के प्रतिनिधि राज्य सभा में शामिल होते हैं ।

भारतीय संविधान की चौथी अनुसूची में राज्य सभा के लिए राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों में सीटों के आवंटन का प्रावधान उल्लिखित है । संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो - तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनाना राष्ट्रीय हित में आवश्यक है , तो संसद उस विषय पर विधि बना सकती है । परंतु यह प्रस्ताव एक वर्ष से अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रहता है ।

अनुच्छेद 250 के अनुसार , आपातकाल की स्थिति में केंद्रीय संसद को राज्य सूची में अंकित किसी विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कानून बनाने की शक्ति होती है , परंतु आपातकाल की समाप्ति के 6 महीने / माह की अवधि से अधिक यह प्रावधान प्रभावी नहीं रहता है ।

अनुच्छेद 252 के अनुसार , दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल एक प्रस्ताव पारित कर , यदि संसद से अनुरोध करें कि राज्य - सूची के विषयों पर संसद द्वारा कानून बनाया जाए , तो संसद उन विषयों पर कानून बना सकती है ।

अनुच्छेद -253 के अनुसार , संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ संधि अथवा समझौते को लागू करने के उद्देश्य से किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार है ।

संसद उच्चतम विधायी संस्था है ।

संविधान में संशोधन का अधिकार संसद को प्राप्त है ।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संसद संविधान के किसी भाग में संशोधन कर सकती है ।

संसद के दो सत्रों के बीच अधिकाधिक अंतराल छ : महीने का होता है ।

लोक सभा के अध्यक्ष , उपाध्यक्ष , महासचिव , राज्य सभा के सभापति , उपसभापति आदि संसद के अधिकारी कहलाते हैं ।

कोई संसद सदस्य जब 60 दिन तक सदन को बिना सूचित किए अनुपस्थित रहता है तो उनकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है ।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदस्यों के विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियों को निर्धारित करता है ।

अनुच्छेद 253 के अनुसार , अंतरराष्ट्रीय संधियों को संपूर्ण भारत में या उसके किसी भाग में लागू करने के लिए संसद राज्य सूची के विषयों पर कोई भी कानून बिना किसी राज्य की सहमति से बना सकती है ।

अंतरराष्ट्रीय समझौते को प्रभावी बनाने के लिए संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है ।

सदन का अध्यक्ष किसी सदस्य को बोलने से रोककर अन्य को बोलने के लिए कह सकता है । यह बैठ जाना ( Yielding the floor ) कहलाता है

सदन के किसी सदस्य द्वारा , वह जिस दल से चुनकर आया है , उसका त्याग कर दूसरे दल में शामिल होनापक्षत्याग ( Crossing the floor ) कहलाता है ।

शून्य काल ( Zero Hour ) , भारत के संसदीय व्यवस्था की देन है । यह अधिकतम एक घंटे का हो सकता है । लोक सभा में इसका समय दोपहर 12 बजे से अपराह्न 1.00 बजे तक होता है ।

अनुच्छेद 109 ( 1 ) के अनुसार , धन विधेयक लोक सभा में पुरः स्थापित किया जाता है , राज्य सभा में नहीं ।

कोई विधेयक जिसमें केवल व्यय उल्लिखित है और अनुच्छेद 110 ( धन विधेयक ) में विनिर्दिष्ट कोई विषय उसमें सम्मिलित नहीं है , तो उसे संसद के किसी भी सदन में प्रारंभ किया जा सकता है । इसे साधारण विधेयक की तरह पेश किया जाता है ।

लोक सभा द्वारा पारित धन विधेयक राज्य सभा द्वारा पारित मान लिया जाता है , यदि उस पर राज्य सभा द्वारा 14 दिन तक कोई कार्यवाही नहीं की जाती है ।

लोक सभा द्वारा विचार के लिए भेजे गए धन विधेयक को राज्य सभा 14 दिन तक रोक सकती है ।

अनुच्छेद 108 के अनुसार , संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन तब आयोजित किया जाता है , जब किसी विधेयक पर विचार करने और उसे पारित करने में दोनों सदनों में मतभेद हो ।

अनुच्छेद 118 ( 4 ) के अनुसार , लोक सभा का अध्यक्ष संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है । संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक साधारण विधेयक और वित्त विधेयक के संबंध में होती है ।

अब तक तीन बार दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा चुकी है । वर्ष 1961 में प्रथम संयुक्त बैठक दहेज निरोधक विधेयक पर , वर्ष 1978 में द्वितीय संयुक्त बैठक बैंक सेवा आयोग ( निरसन ) विधेयक पर तथा वर्ष 2002 में तृतीय संयुक्त बैठक पोटा के लिए बुलाई गई थी ।

कोई कानूनी विधेयक संसद के दोनों में से किसी एक पटल पर रखा जा सकता है ।

कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं , इसका निर्णय लोक सभा अध्यक्ष करता है ।

भारत के लोक वित्त पर संसद के नियंत्रण के लिए संसद के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत किया जाता है ।

भारत की संचित निधि से धन निकालने के लिए विनियोग विधेयक पारित करना पड़ता है ।

संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार , विनियोग विधेयक के पारित न होने की स्थिति में जब संघ सरकार को धन की आवश्यकता होती है , तो लोक सभा को लेखानुदान के माध्यम से निश्चित अवधि के लिए भारतीय संचित निधि से अग्रिम निधि प्रदान करने की शक्ति प्राप्त है ।

प्राक्कलन समिति सबसे बड़ी संसदीय समिति है । इसमें 30 सदस्य होते हैं ।

भारतीय संसद का सचिवालय सरकार से स्वतंत्र होता है । भारतीय संसद संसदीय समितियों के माध्यम से प्रशासन पर नियंत्रण करती है

विभिन्न अधिनियम

खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम ( Prevention of Food Adul teration Act ) सर्वप्रथम 15 जून , 1955 को लागू हुआ था ।

सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम , 1955 के अधीन सभी दंडनीय अपराध संज्ञेय एवं संक्षिप्ततः विचारणीय होते हैं ।

सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम , 1955 के अंतर्गत अपराध का विचारण प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा महानगरों के मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है ।

घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम , 2005 26 अक्टूबर , 2006 से लागू है ।

क्रिमिनल ट्राइव्स एक्ट सर्वप्रथम 1871 में अधिनियमित हुआ था ।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम , 1989 भारत में 30 जनवरी , 1990 से लागू है ।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम , 1989 के उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के लिए केंद्र सरकार के पास नियम बनाने की शक्ति है ।

यह अधिनियम ‘ संरक्षा विभेद के सिद्धांत ' पर आधारित है ।

इस अधिनियम के तहत गिरफ्तारी पूर्व जमानत पूर्णतः निषिद्ध है ।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम , 1989 के अधीन किए गए अपराध का अन्वेषण पुलिस उपाधीक्षक से नीचे रैंक के अधिकारी द्वारा नहीं किया जाएगा ।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण ) अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में निर्दिष्ट करने का उद्देश्य शीघ्र विचारणीय है ।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में तथा सती ( निरोध ) अधिनियम , 1987 में लागू हुआ था ।

सूचना का अधिकार अधिनियम , 2005 , 12 अक्टूबर , 2005 से लागू है ।

सूचना का अधिकार एक विधिक अधिकार है । सूचना का अधिकार अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक अधिकारियों से सूचना प्राप्त करना है ।

नमित शर्मा बनाम भारत संघ वाद , सूचना के अधिकार अधिनियम , 2005 से संबंधित है ।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम , 2010 के द्वारा देश में एक राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ( NGT ) का गठन किया गया है ।

पंचायत विस्तार अधिनियम , 1966 का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन स्थापित करना है , जिससे पारंपरिक अधिकारों की रक्षा हो सके तथा जनजातीय लोगों को शोषण से मुक्त किया जा सके ।

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