काव्यांग परिचय - काव्य गुण , छंद शास्त्र [ हिंदी व्याकरण ]

Chhand Hindi Vyakaran Notes

काव्य गुण किसे कहते हैं ? काव्य में ओज , प्रवाह , चमत्कार और प्रभाव उत्पन्न करने वाले तत्त्व काव्य - गुण कहलाते हैं ।

काव्य - गुण कितने होते हैं ? नाम लिखिए । काव्य - गुण तीन होते हैं । प्रसाद गुण , माधुर्य गुण और ओज गुण ।

माधुर्य गुण की परिभाषा लिखिए । जिस काव्य रचना को पढने / सुनने से पाठक / श्रोता का चित प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो जाता है वहाँ माधुर्य गुण माना जाता है ।
अथवा
जिस काव्य रचना से चित आह्वाद से द्रवित हो जाए , उस काव्य - गुण को माधुर्य गुण कहते हैं ।

प्रसाद गुण की परिभाषा लिखिए । जिस काव्य रचना को सुनते ही अर्थ समझ में आ जाए , वहाँ प्रसाद गुण माना जाता है ।

प्रसाद गुण किन - किन रसों में प्रयुक्त होता है ? वैसे तो सभी रसों में प्रयुक्त होता है किंतु करुण , हास्य , शांत और . वात्सल्य रस में मुख्यतः प्रयुक्त होता है ।

माधुर्य गुण किन रसों में प्रयुक्त होता है ? शृंगार , शांत और करुण रस में प्रयुक्त होता है ।

छंद शास्त्र

छंद शब्द संस्कृत भाषा की छद् धातु में असुन प्रत्यय जुड़ने से बना है । छंद शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- बाँधना , फुसलाना , प्रसन्न करना या मात्राओं का ध्यान रखना ।

परिभाषा- साहित्य की ऐसी रचना जिसमें यति , गति , पाद , चरण , दल इत्यादि के नियम लागू होते हैं , उसे छंद कहते हैं ।

छंद शब्द का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है । ऋग्वेद के 10 वें सूक्त ( पुरुष सूक्त ) के 90 वें मंडल के 9 वें मंत्र में प्राप्त होता है ।

हमारे छंदशास्त्र में वेद के छह अंग स्वीकार किए गए हैं । उनमें से छंदशास्त्र को एक अंग माना गया है । छंदशास्त्र को वेदपुरुष के पैर अंग के रूप में स्वीकार किया गया है -

  • आँख - ज्योतिष
  • कान - निरुक्त
  • नाक- शिक्षा
  • मुख- व्याकरण
  • हाथ- कल्प
  • पैर - छंद
  • लौकिक साहित्य के अंतर्गत आचार्य पिंगल को छंदशास्त्र का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है । इनके द्वारा रचित छंदःसूत्र ग्रन्थ ( सातवी सदी ई . पू . ) को छंदशास्त्र का आदिग्रंथ माना जाता है ।

    छंदों का वर्गीकरण

    1. मात्रिक छंद- जिस छंद की पहचान मात्राओं के आधार पर होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं । जैसे दोहा , सोरठा , चौपाई इत्यादि ।
    2. वर्णिक छंद- जिन छंदों की पहचान वर्गों की संख्या एवं गणों के आधार पर होती है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं ।
      • सम छंद- जिस छंद के प्रत्येक चरण में समान लक्षण ( मात्राएँ एवं वर्ण ) पाए जाते हैं उन्हें सम छंद कहते हैं ; जैसे चौपाई और द्रुतविलंबित आदि ।
      • अर्द्धसम छंद- जिस छंद के आधे - आधे चरणों में समान लक्षण पाए जाते हैं उन्हें अर्द्धसम छंद कहते हैं । अर्थात सम और विषम चरणों में समान लक्षण होना ; जैसे दोहा और सोरठा आदि ।
      • मात्रा- किसी भी स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय को ही मात्रा कहते हैं । छंद में दो प्रकार की मात्राएँ होती है
        1. लघु मात्रा - खड़ी पाई ( I ) संख्या -1
        2. दीर्घ मात्रा- वक्र रेखा ( S ) संख्या -2

    मात्रा निर्धारण के नियम

    ( 1 ) मात्रा सदैव स्वर वर्णों के साथ ही लगती है ।

    ( 2 ) ह्रस्व स्वरों ( अ , इ , उ , ऋ ) के साथ लघु तथा दीर्घ स्वरों ( आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ गुरु मात्रा लगती है ।

    ( 3 ) यदि किसी ह्रस्व स्वर के तुरंत बाद कोई आधा अक्षर / हलंत वर्ण / विसर्ग / संयुक्ताक्षर आ रहा हो तो ह्रस्व होने के बावजूद भी उस पर गुरु मात्रा का प्रयोग किया जाएगा ।

    ( 4 ) यदि किसी स्वर पर अनुस्वार का प्रयोग हो रहा हो तो उस पर भी गुरु मात्रा का ही प्रयोग किया जाएगा । जबकि लघु स्वर के साथ अनुनासिक ( चन्द्रबिन्दु ) का प्रयोग हो रहा हो तो लघु मात्रा ही मानी जाएगी और दीर्घ स्वर पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग हो रहा हो तो उसे गुरु माना जाएगा ।
    जैसे .-
    हंस -S1 ( 3 मात्राएँ )
    हँस - II ( 2 मात्राएँ )

    गण- तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं । छन्दशाख में कुल 8 गण माने जाते हैं । गण निर्धारण के लिए निम्न सूत्र काम में लिया जाता है .
    यमाताराजभानसलगा

    क्रम संख्या गण का नाम सूत्रमात्राअन्य नामउदाहरण
    1यगण यमाता ( ISS ) आदिलघु यशोदा / सुनीता
    2 मगण मातारा ( SSS ) सर्व गुरु जामाता / आमादा
    3 तगण ताराज ( SSI ) अंत लघु दामाद / सामान / नाराज
    4 रगण राजभा( SIS ) मध्य लघु आरती / भारती / पार्वती
    5 जगण जभान ( ISI ) मध्य गुरु गुलाब / जवान / नवीन
    6 भगण भानस( SII ) आदि गुरु भारत / मानव / राहुल
    7 नगण नसल ( III ) सर्व लघु सुमन / नमक / नकल / फसल
    8 सगण सलगा ( IIS ) अंत गुरु सरिता / ममता / सलमा

    हरिगीतिका छंद की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए अथवा हरिगीतिका छंद को उदाहरण सहित समझाइए

    हरिगीतिका सममात्रिक छंद होता है । इसके प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं तथा यति हमेशा 16-12 मात्राओं पर होती है । तुक प्रत्येक चरण के अंत में मिलती है । उदाहरण -

    कहती हुई यों उत्तरा के , नेत्र जल से भर गए ।
    हिम के कणों से मानो पूर्ण , हो गए पंकज नए ।

    अन्य उदाहरण

    श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मनहरण भव भय दारुणम् ।
    नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम् ।।

    छप्पय छंद की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए ।

    यह विषम मात्रिक छंद होता है । रोला और उल्लाला से बने इस मिश्रित छंद में 6 पंक्तियाँ होती हैं । इसकी प्रथम 4 पंक्तियों में 24-24 तथा अंतिम 2 में 28-28 मात्राएँ होती हैं । प्रथम 4 पंक्तियों में 11-13 पर तथा अंतिम 2 में 15-13 पर यति होती है । सूत्र- छप - छप रोऊँ ( रोला और उल्लाला )
    उदाहरण -

    नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है ।
    सूर्य चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है ।।
    नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल हैं ।
    बंदीजन खगवृंद शेषफन सिंहासन है ।।
    करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस देश की ।
    हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की ।।

    कुंडलिया छंद की उदाहरण सहित परिभाषा लिखिए ।

    यह विषम मात्रिक छंद होता है । दोहा और रोला छंद से बने इस मिश्रित छंद में 6 पंक्तियाँ होती हैं । प्रथम 2 पंक्तियों में 13-11 पर तथा अंतिम 4 पंक्तियों में 11-13 पर यति होती है । जिस शब्द से इसका आरंभ होता है वही इसका अंतिम शब्द भी होता है । दूसरी पंक्ति का दूसरा चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण होता है । सूत्र- कुंडली मारनो दोरो ( दोहा और रोला ) काम
    उदाहरण-

    बिना विचारे जो करे , सो पाछै पछताए ।
    काम बिगारै आपनो , जग में होत हँसाय ।।
    जग में होत हँसाय , चित्त में चैन ना पाये ।
    खान - पान सम्मान , राग रंग मनहिं न भावे ।
    कह गिरधर कविराय , दुःख कछु टारै न टरै ।
    खटकत है जिय माहिं , किया जो बिना विचारे ।।

    अन्य उदाहरण

    लाठी में गुन बहुत हैं सदा राखिए संग
    नदियाँ नाला जहाँ पडै तहाँ बचावत अंग ।
    तहाँ बचावत अंग झपट कुत्ते को मारे ।
    दुश्मन दामनगीर ताही का मस्तक फारै ।
    कह गिरधर कविराय सुनो हे धुर के साठी ।
    सब हथियारन छोड़ हाथ में राखिए लाठी ।।

    सवैया छंद की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए ।

    यह वर्णिक छंद होता है इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं । वर्णों की संख्या के आधार पर सवैया के 11 भेद होते हैं ।
    उदाहरण-

    या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारो ।
    आठहुँ सिद्धि नोंनिधि को सुख नंद की धेनु चराय बिसारौं ।
    रसखान कबौं इन आँखिन सों ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।
    कोटिक हूँ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारो ।।

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