जर्मनी में नाजीवाद के उत्कर्ष के कारण

Reasons for the rise of Hitler and his Nazi party In Hindi

दो विश्वयुद्धों के बीच की अवधि में जर्मनी के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना , नाजीवाद का उत्थान और हिटलर का उत्कर्ष थी जिसने समस्त विश्व को अत्यधिक प्रभावित किया । वस्तुत : हिटलर का उत्कर्ष धूमकेतू की भाँति इतना आकस्मिक था कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ भी 1932 तक यह कल्पना नहीं कर सके कि जर्मनी में नाजी दल का उत्कर्ष सम्भव है । परन्तु 1933 में हिटलर ने जर्मनी का चांसलर बनकर समस्त विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया ।

हिटलर और उसके नाजी दल के उत्कर्ष के कारण

1. वर्साय की सन्धि

वर्साय की सन्धि पराजित जर्मनी के लिए अत्यन्त कठोर तथा अपमानजनक थी । जर्मन राजनीतिज्ञ इस सन्धि को विजेता राष्ट्रों द्वारा पराजित राष्ट्रों पर लादी गई सन्धि मानते थे । मित्र राष्ट्रों ने पराजित जर्मनी को सैनिक , आर्थिक , प्रादेशिक , दृष्टि से बिल्कुल पंगु बनाने का भरसक प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप जर्मन लोगों में तीव्र आक्रोश और असन्तोष भी फैला हुआ था । वे वर्साय की सन्धि के कलंक को धोने के लिए और राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने को तैयार थे । हिटलर ने जर्मन लोगों के इस असन्तोष से लाभ उठाया और अपने भाषणों में वर्साय की सन्धि द्वारा 6 करोड़ जर्मनों के दिमागों में लज्जा और घृणा के इतने भाव भर दिये कि समस्त राष्ट्र ज्वालाओं का अग्नि सागर बन जाये और उससे यही जयघोष निकलने लगा कि हम पुनः हथियार उठायें अत : वर्साय की सन्धि को हिटलर के उत्थान का एक सहायक एवं गौण कारण माना जा सकता है ।

2. आर्थिक संकट

प्रथम महायुद्ध के पश्चात् वर्साय की सन्धि द्वारा जर्मनी पर युद्ध का भारी हर्जाना लादा गया था जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और भी अधिक डांवाडोल हो गई थी । इसके अतिरिक्त 1929 के विश्व - व्यापी आर्थिक संकट का जर्मन की अर्थ - व्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा । जर्मनी के पूँजीपति , मध्यमवर्गीय लोग , किसान , मजदूर , सरकारी कर्मचारी आदि सभी वर्ग आर्थिक संकट के शिकार बने और उनकी आर्थिक दशा अत्यधिक शोचनीय होती चली गई । कृषकवर्ग ऋणग्रस्त हो गया । हिटलर ने जर्मन लोगों को विश्वास दिलाया कि यदि वह सत्तारूढ़ हो गया तो वह आर्थिक कठिनाइयों से देश को मुक्ति दिलायेगा । परिणामस्वरूप जर्मन लोगों में हिटलर के प्रति आस्था बढ़ी । 1932 के चुनावों में नाजीदल को 230 स्थान प्राप्त हुए । अतः आर्थिक संकट हिटलर के लिए वरदान सिद्ध हुआ ।

3. साम्यवाद का भय

हिटलर के उत्कर्ष का एक प्रमुख कारण साम्यवाद का भय था । जर्मनी में भी साम्यवाद का प्रभाव बढ़ रहा था जिससे जर्मन पूँजीपति , उद्योगपति तथा धन सम्पन्न व्यक्ति साम्यवाद से भयभीत थे । हिटलर ने इस परिस्थिति का भरपूर लाभ उठाया और साम्यवादियों को जर्मन राष्ट्रीयता का घोर शत्रु घोषित किया । उसने अपने भाषण में साम्यवादियों को जर्मन राष्ट्रीयता का घातक शत्रु घोषित किया और जनता को सावधान करते हए कहा कि यदि नाजी दल का उत्कर्ष नहीं हुआ तो साम्यवादियों की शक्ति बढ़ जायेगी , जर्मन में करोड़ों साम्यवादी दिखाई देने लगेंगे और जर्मन लोगों के समस्त राष्ट्रीय मनसूबे चकनाचूर हो जायेंगे । हिटलर की इन बातों का पूंजीपतियों और अन्य लोगों पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता था । अतः जर्मन पूंजीपति साम्यवाद का दमन करने के लिए हिटलर को धन - दौलत की थैलियां देने को तैयार हो गये और अन्य लोग भी झूठी राष्ट्रीयता के नाम पर हिटलर को अपना समर्थन देने के लिए तैयार हो गये ।

4. वाइमर गणतन्त्र के प्रति असन्तोष

हिटलर के उत्कर्ष से पहले जर्मनी में गणतन्त्रीय सरकार स्थापित थी जो अपनी दुर्बलता तथा अयोग्यता के कारण बदनाम थी । जर्मन लोग वाइमर गणतन्त्र से इस कारण भी नाराज थे कि उसने वर्साय की अपमानजनक सन्धि को स्वीकार कर लिया था । गणतन्त्रीय सरकार आन्तरिक और बाह्य समस्याओं का समाधान करने में भी नितान्त असफल रही थी । ईंजिग , पोलिश , गलियारे , अपर साइलेशिया और आस्ट्रिया के जर्मन प्रदेश जर्मनी से पृथक करके उससे छीने गए उपनिवेश अब तक उसे वापिस नहीं मिले थे । वाइमर गणतन्त्र इस मांग को पूरा नहीं कर सका था जिससे जर्मन लोगों में तीव्र असन्तोष व्याप्त था । अत : जर्मन लोग एक ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति की आवश्यकता अनुभव करने लगे जो जर्मनी के विलुप्त गौरव को पुन : चरम सीमा पर पहुंचा दे और आन्तरिक एवं बाह्य कठिनाइयों का निवारण कर दे । अतः जब हिटलर ने देशवासियों की आकांक्षाओं को पूरा करने का आश्वासन दिया तो लोगों का नाजी दल की ओर आकृष्ट होना स्वाभाविक था ।

5. यहूदी विरोधी नीति

जर्मनी में यहूदियों का बड़ा प्रभाव था । बड़े - बड़े उद्योग - धन्धों तथा समाचार - पत्रों के ये स्वामी थे । यहूदी अनेक उच्च पदों पर भी नियुक्त थे । साधारण जर्मन लोग उन्हें शोषक समझकर इनसे घृणा करते थे । जर्मन राष्ट्रवादी यहूदियों को ही प्रथम महायुद्ध में अपनी पराजय के लिए उत्तरदायी मानते थे । हिटलर ने जर्मनी लोगों की यहूदी विरोधी भावना का लाभ उठाया और यहूदियों का दमन किये जाने का आश्वासन दिया ।

6. जर्मन जनता की सैनिक मनोवृत्ति

जर्मन जनता अपने वीरोचित गुणों के लिए विख्यात थी । अनुशासन और वीर - पूजा की भावना का इन लोगों के जीवन में सर्वोच्च स्थान रहा है । फ्रेडरिक महान , बिस्मार्क और विलियम द्वितीय की सैनिकवादी नीतियों के कारण लाखों जर्मन लोग उनकी वीरनायक के रूप में प्रतिष्ठा करते रहे हैं । अत : उन्हें गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली पसन्द नहीं थी । वे लोग सुदृढ़ एकतंत्र को पसन्द करते थे । हिटलर में ये सब विशेषतायें थीं । परिणामस्वरूप जर्मन लोगों का हिटलर के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक था ।

7. नवयुवकों द्वारा समर्थन

नाजीवाद की सफलता का एक प्रमुख कारण जर्मन युवकों द्वारा इसका समर्थन था । देश में हजारों नवयुवक बेरोजगार थे , उनका भविष्य अन्धकार में था । परन्तु हिटलर ने अपने कार्यक्रम के अन्तर्गत नवयुवकों को रोजगार देने का वचन दिया था जिससे उनका नाजीदल की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था । इसके अतिरिक्त हिटलर के उग्र राष्ट्रवादी कार्यक्रम और सैन्य शक्ति के विस्तार की मांग से सैनिकों ने भी हिटलर को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया ।

8. हिटलर का कुशल नेतृत्व

नाजीदल की सफलता का एक प्रमुख कारण हिटलर का कुशल नेतृत्व और असाधारण व्यक्तित्व था । उसमें जनता की मनोभावनाओं तथा मनोविज्ञान को समझने की अद्भुत क्षमता थी । उसने अपने प्रभावशाली भाषणों के जादू से जर्मन जनता को मोह लिया और उसे अपना अनुयायी बना लिया । प्रचार और प्रोपेगण्डा की कला में वह पारंगत था । अतः हिटलर का अद्भुत व्यक्तित्व तथा उसके भाषणों का जादू नाजीदल के उत्थान में बहुत सहायक सिद्ध हुआ ।

9. आकर्षक नाजी कार्यक्रम

हिटलर के उत्कर्ष का एक अन्य कारण यह भी था कि उसका कार्यक्रम जर्मन परम्पराओं तथा आकांक्षाओं पर आधारित था । वर्साय की सन्धि की धज्जियां उड़ाने , सैन्य शक्ति का विस्तार करने , बेरोजगारी दूर करने , यहूदियों का दमन करने , जर्मन साम्राज्य का विस्तार करने तथा जर्मनी को विश्व की महान शक्ति बनाने का कार्यक्रम प्रस्तुत किया । परिणामस्वरूप जर्मनी के लाखों लोग हिटलर के कार्यक्रम से प्रभावित हुए । हिटलर का कार्यक्रम उग्रराष्ट्रीयता के विचारों से ओत - प्रोत था , वह जर्मनी जाति को विश्व की श्रेष्ठतम जाति समझता था और उसको सबसे बड़ी शक्ति बनाना चाहता था । हिटलर के इस प्रकार के विचार उसके उत्कर्ष में सहायक सिद्ध हुए ।

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