मानव यकृत महत्वपूर्ण नोट्स ( PDF Download )

Manav Yakrit Important Notes

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यकृत क्या हैं

यकृत शरीर की सबसे बड़ी एवं व्यस्त ग्रंथि हैं जो कि हल्के पीले रंग पित्त रस का निर्माण करती हैं ।

यकृत को जिगर या कलेजा एवं अंग्रेजी में Liver कहते हैं जो मानव शरीर का एक अंग हैं यकृत केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है ।

यह भोजन में ली गई वसा के अपघटन में पाचन क्रिया को उत्प्रेरक एवं तेज करने का कार्य करता हैं ।

इसका एकत्रीकरण पित्ताशय में होता हैं यकृत अतिरिक्त वसा को प्रोटीन में परिवर्तित करता हैं एवं अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में परिवर्तित करने का भी कार्य करता हैं । जो कि आवश्यकता पढ़ने पर शरीर को प्रदान किए जाते है ।

वसा के पाचन के समय उत्पन्न अमोनिया ( विषैला तरल पदार्थ ) को यकृत यूरिया में परिवर्तित कर देता हैं । यकृत पुरानी एवं क्षति ग्रस्त लाल रक्त कणिकाओं को मार देता हैं ।

इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को Detoxify करना , प्रोटीन को संश्लेषित करना , और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है ।

यकृत मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण पाचक ग्रंथि होती हैं जो पित्त का निर्माण करती हैं ।

पाचन के क्षेत्र में यकृत विशेष भूमिका निभाता हैं यह पाचन में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय का मुख्य स्थान हैं ।

इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की थैली होती हैं जिसे पित्ताशय कहते हैं यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही उपस्थित होते हैं ।

यकृत की माप एवं भार

इसकी दक्षिण - बाम की लंबाई - 17.5 सेंमी 0 , एवं अध : तल की ऊँचाई 16 सेंमी 0 तथा पूर्व - पश्च की चौड़ाई 15 सेंमी 0 होती है ।

इसका भार शरीर के भार का 1/50 भाग के लगभग , प्राय : 1,500 ग्राम से 2,000 ग्राम तक होता हैं ।

शरीर के भार से इसके भार का अनुपात स्त्री पुरुषों में एक ही होता है , परंतु वयस्क के अनुसार बदलता रहता है । बालकों में इसका भार शरीर के भार का 1/20 भाग होता है ।

यकृत की संरचना

यकृत शरीर की सबसे बड़ी और भारी ग्रंथि हैं इसकी ऊपरी एवं अग्र सतह चिकनी और मुड़ी हुई होती हैं जो डायफ्राम में धँसी हुई होती हैं ।

यकृत मुख्य रूप से दो लोब ( दायाँ और बायाँ ) में विभाजित होता हैं , इसका निर्माण दो मुख्य प्रकार की कोशिकाओं से होता है ।

यकृतीय कोशिकाएं ( Cellular cells ) - ये यकृत की मुख्य उत्सर्जी कोशिकाएं होती है ।

कुफर कोशिकाएं ( Kupffer's cells ) – ये यकृतीय कोशिकाओं से पूर्ण रूप से भिन्न होती है तथा ये विशिष्ट तंत्र के अंतर्गत आती जिसे रेटिक्युला- एंडोथिलीअल तंत्र कहते है ।

यकृत कई छोटे - छोटे खंडो ( Lobules ) से मिलकर बना होता है , प्रत्येक खंड में यकृत कोशिकाओं की एक श्रृंखला होती है ।

नाशपाती के आकार के यकृत में पीछे की ओर पित्ताशय संयोजी ऊतक की सहायता से जुड़ा होता हैं , इन यकृतीय कोशिकाओं के बीच में छोटी - छोटी पित्ततिए कोशिकाएं रहती है , जो एक साथ मिलकर बड़ी वाहिकाएं बनाती है ।

जिससे एक बड़ी वाहिका बन जाती है जिसे Common Hepatic Duct कहा जाता है , आगे यह वाहिका पिताशय से आने वाली सिस्टिक वाहिका से जुड़कर उभय पित वाहिका ( Common Bile Duct ) बनाती है । ( Bile Duct ) ड्यूओडीनम में खुलती है जो पिताशय संचयक का कार्य करता है एवं इसमें पित्त एकत्रित एवं गाढ़ा होता है ।

दाई और बायीं हिपेटिक डक्ट मिलकर कॉमन हिपेटिक डक्ट बनाती हैं जो पीछे सिस्टिक डक्ट पित्ताशय से निकलकर मिल जाती हैं ।

स्टिक डक्ट कॉमन हिपेटिक डक्ट आपस में मिलकर बाइल डक्ट बनाती बाइल डक्ट पीछे की ओर पैंक्रियाटिक डक्ट से मिलकर हिपैटापैंक्रियाटिक एमपुला बनाती हैं ।

यह एमपुला ड्यूओडीनम में खुलता हैं एमपुला की ओपनिंग ओडाई के स्फिंकटर द्वारा नियंत्रित होती हैं यकृत की आधारभूत संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई हिपेटिक लोब्यूल होती हैं ।

यकत के कार्य

  • यकृत मुख्य ऊष्मा उत्पादन करने वाला अंग हैं ।
  • लसीका के निर्माण का प्रमुख केंद्र यकृत हैं ।
  • ग्लूकोज से बनने वाले ग्लाइकोजन को संग्रहित करना ।
  • ग्लाइकोजन की आवश्यकता होने पर ग्लूकोस में परिवर्तित होकर रक्तधारा में प्रवाहित हो जाता है ।
  • पचे हुए भोजन से वसाओं और प्रोटीनों को संसिधत करने में मदद करना ।
  • रक्त का थक्का बनाने के लिये आवशक प्रोटीन को बनाना ।
  • भ्रुणिय अवस्था में या गर्वावस्था में यह रक्त ( Blood ) बनाने का काम भी करता है ।
  • पित्त लवण और पित्त वर्णक का स्रवण करता है ।
  • रक्त से रक्तिम - पित्तवर्णकता को अलग करता है ।
  • गैलेक्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है ।
  • कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन को वसा में परिवर्तित करता है ।
  • एंटीबॉडी और प्रतिजन का निर्माण करता है ।
  • विटामिन B12 के संचय के लिए यकृत अत्यंत महत्वपूर्ण हैं ।
  • शरीर में विटामिन B12 लाल रक्ताणुओं के पर्याप्त निर्माण के लिए अति आवश्यक होता हैं ।
  • यकृत में कैरोटिनॉइड पिंग्मेंट से विटामिन A का निर्माण होता हैं इसके अलावा वसा में घुलनशील विटामिन A , D , E , K होते हैं ।
  • विटामिन K कुछ भोज्य पदार्थों में उपस्थित रहता है और बैक्टीरिया द्वारा आंतों में भी बनता है इसे प्रोथ्रोम्बिन बनाने के लिए यकृत में शोषित होना पड़ता है ।
  • यकृत हमारे शरीर में ग्लाईकोजन , आयरन , वसा , विटामिन ए व डी का भण्डारण भी करता है ।
  • शरीर से औषधियों , विषों , भारी धातुओं तथा टिन और पारद आदि को बाहर निकालने में सहायक है ।
  • विषहरण ( Detoxification ) डीटॉक्सीफिकेशन इसका अर्थ हैं शरीर के आन्तरिक तंत्र को भोजन में मौजूद विषैले और हानिकारक रसायनों से मुक्त करना ।
  • भ्रूण में यकृत RBC का निर्माण करता हैं वयस्क में यह आयरन , कॉपर और विटामिन B12 ( एंटी एनिमिक फैक्टर ) को संचित रखता हैं और RBC और हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक करता हैं ।

यकृत की खराबी से होने वाले रोग

ऑटो इम्यून डिस आर्डर ( Autoimmune Disorder ) : यह रोग मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र , कोशिकाओं और ऊतकों को नुकसान पहुँचाता हैं जिससे लीवर पर असर पढ़ता हैं और उसके काम करने की क्षमता कम हो जाती हैं ।

फैटी लीवर ( Fatty Liver ) : जब लीवर में वसा एवं अधिक फैट जमा हो जाता हैं तो लीवर फैटी हो जाता हैं जिसे फैटी लीवर रोग कहते हैं ।

लीवर फेलियर ( Liver Failure ) : जब लीवर से संबंधित कोई बीमारी लम्बे समय से हो और ठीक नहीं हो रही हो लीवर काम करना बंद देता हैं जिसे लीवर फेलियर कहते हैं ।

लिंब्र सिरोसिस ( Lib Cirrhosis ) : लिंब्र सिरोसिस रोग शरीर में धीरे - धीरे बढ़ता हैं इसमें लीवर सिकुड़ने लगता हैं जिससे लीवर का लचीलापन खो कर कठोर हो जाता हैं ।

लीवर कैंसर ( Liver Cancer ) : लीवर का कैंसर बहुत सामान्य होता हैं क्योंकि शरीर के विभिन्न अंगों का बहुधा यकृत में फैल जाता हैं इस प्रकार लीवर में द्वितीयक कैंसर हो जाता हैं , यकृत का प्राम्भिक कार्सीनोमा ( Heptoma ) कहते हैं , सिरोसिस से पीड़ित रोगियों में इसके पैदा होने की संभावना होती हैं ।

हेपाटो- एन्सेफैलोपैथी ( Hepato Encephalopathy ) : सिरोसिस में यकृत अमोनिया को यूरिया में चयापचय करने में असमर्थ हो जाती हैं जिसके कारण ब्लड में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती हैं तथा अमोनिया CNS ( Central Nervous System ) के लिए जहरीला होता हैं अतः केंद्रीय स्नायुतंत्र के कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती हैं जिसे हेपाटो- एन्सेफैलोपैथी कहते हैं ।

यकृत से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु

यकृत का वजन 1.5 से 2 किलोग्राम का होता हैं ।

इसका PH मान 7.5 होता हैं ।

यकृत आंशिक रूप से ताँबा , और लोहा को संचित रखता हैं ।

जहर / विष देकर मारे गए व्यक्ति की पहचान यकृत के द्वारा ही की जाती हैं ।

यकृत द्वारा ही पित्त स्रावित होता हैं यह पित्त आँत में उपस्थित एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता हैं ।

यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता हैं ।

फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता हैं जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता हैं ।

हिपैरिन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता हैं जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता हैं ।

मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता हैं ।

यकृत शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता हैं ।

भोजन में जहर देकर मारे गए व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता हैं ।

❊ PDF Details
PDF Nameमानव यकृत महत्वपूर्ण नोट्स
LanguageHindi
Number of Pages6
WriterAnkit Yadav
Published ByKnowledge Hub
ISBN#NA
Copyright Date05-02-2022
Copyrighted ByKnowledge Hub
Adult contenNo
CategoriesScience, Biology, Notes, PDF
DescriptionDownload Complete PDF Of Liver in Hindi Notes
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