( 1 ) यौवनारम्भ - मानव ( नर एवं मादा ) में अपरिपक्व जनन अंगों का परिपक्वन होकर जनन क्षमता का विकास होना यौवनारम्भ कहलाता है । नर की अपेक्षा मादा में यौवनारम्भ पहले प्रारम्भ होता है । मानव में टेस्टोस्टेरॉन तथा स्त्रियों में एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरान लिंग हार्मोन हैं ।
( 2 ) जनन अंगों को प्राथमिक तथा द्वितीयक लैंगिक अंगों में विभक्त किया है । प्राथमिक अंग युग्मकों का निर्माण करते हैं । प्राथमिक अंगों के अलावा अन्य सभी अंग जो जनन तंत्र में कार्य करते हैं , द्वितीयक अंग कहलाते हैं ।
( 3 ) नर जनन अंग - वृषण , वृषणकोष , शुक्रवाहिनी , शुक्राशय , प्रोस्टेट , ग्रन्थि , मूत्र मार्ग तथा शिश्न ।
( 4 ) मादा जनन अंग - अण्डाशय , अण्डवाहिनी , गर्भाशय तथा योनि ।
जनन सभी जीवधारियों में पाए जाने वाला एक अति महत्वपूर्ण तंत्र है जिसमे एक जीव अपने जैसी संतान उत्पन्न करता है । मानवों में लैगिंक ( Sexual ) जनन पाया जाता है । यह द्विलिंगी प्रजनन प्रक्रिया हैं जिसमें नर युग्मक के तौर पर शुक्राणुओं का निर्माण करते है तथा मादा अडों ( मादा युग्मक ) का निर्माण करती हैं । शुक्राणु तथा अंडाणु के निषेचन ( Fer tilization ) से युग्मनज ( Zygote ) का निर्माण होता है जो आगे चल कर नए जीव का निर्माण करता है । लैंगिक जनन हेतु इस के लिए उत्तरदायी जनन कोशिकाओं का विकास एक विशेष अवधि जिसे यौवनांरभ ( Puberty ) कहा जाता है में होता है । इस अवस्था में लैगिंक विकास दृष्टिगोचर होने लगता है तथा जनन परिपक्वता आती है । लड़को में यौवनांरभ के लक्षण हैं - आवाज का भारी होना , दाढ़ी मूंछ आना , काँख एंव जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलीय होना आदि । लड़कियों में स्तन का बनना तथा आकार में वृद्धि , त्वचा का तैलीय होना , जननांग क्षेत्र में बालों का आना , रजोधर्म का शूरू होना , आदि यौवनांरभ के लक्षण हैं । लड़कियों में यौवनारंभ 12 - 14 वर्ष की उम्र में होता है तथा लड़को में यह 13 - 15 वर्ष की उम्र में होता है । लैंगिक परिपक्वता 18 - 19 वर्ष की उम्र में पूर्ण हो जाती है । इस अवधि में मनुष्यों की संवेदनाओं तथा उसके बौद्धिक व मानसिक स्तर में परिवर्तन आता है ।
यौवनांरभ से लैंगिक परिपक्वता तक आए परिवर्तनों के मूल में विभिन्न हार्मोनो का स्त्रावंण है | मानव नर में टेस्टोस्टेरोन Testosterone ) तथा स्त्रियों में एस्ट्रोजन ( Estrogen ) तथा प्रोजेस्टेरोन ( Progesterone ) प्रमुख लिंग हार्मोन हैं ।
✺ नर जनन तंत्र ( Male reproductive system )
नर जनन अंगो को प्राथमिक तथा द्वितीयक लैंगिन अंगों में विभेदित किया जाता है
✸ प्राथमिक लैंगिक अंग ( Primary repro ductive organs )
ये वे अंग छोटे होते हैं जो या तो लैंगिक कोशिकाओं या युग्मकों ( Sex cells तथा Gametes ) का निर्माण करते हैं । साथ ही ये कुछ हार्मोन का स्त्राव भी करते है । ये अंग जनद ( Gonads ) कहलाते हैं । नर में जनद वृषण ( Testis ) कहलाते है तथा नर जनन कोशिका - शुक्राणु का निर्माण करने के लिए उत्तरदायी होते हैं । यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष ( Scrotum ) में उपस्थित होता है । वृषण के दो भाग होते है | प्रथम जो शुक्राणु निर्माण करता है तथा द्वितीय अंतः स्त्रावी ग्रन्थि के तौर पर टेस्टोस्टेरान हार्मोन का स्त्राव करता है ।✸ द्वितीयक लैंगिक अंग ( Secondary reproductive organs )
प्राथमिक लैंगिक अंगों के अलावा जो भी अंग जनन तंत्र में कार्य करते हैं उन्हें द्वितीयक लैंगिक अंग कहा जाता है ।
द्वितीयक अंग निम्न है
( a ) वृषण कोष ( Scrotum ) : वृषण कोष वृषण को स्थिर रखने के लिए आवश्यक है । शुक्राणु निर्माण हेतु शरीर से कम तापमान की आवश्यकता होती है । वृषण कोष ताप नियंत्रण यंत्र के तौर पर कार्य करता है तथा यहाँ का तापमान शरीर के अन्य अंगों से कम होता है ।
( b ) शुक्रवाहिनी ( Vas difference ) : शुक्राणु शुक्राशय ( Seminal vesicles ) तक पहुचने के लिए शुक्रवाहिनी की सहायता लेते हैं । शुक्रवाहिनी मूत्रनलिका के साथ एक सयुंक्त नली बनाती है । अतः शुक्राणु तथा मूत्र दोनों समान मार्ग से प्रवाहित होते हैं । यह वाहिका शुक्राशय के साथ मिल कर स्खलन वाहिनी ( Ejaculatory duct ) बनाती है ।
( c ) शुक्राशय ( Seminal vesicles ) : शुक्रवाहिनी शुक्राणु संग्रहण के लिए एक थैली जैसी संरचना जिसे शुक्राशय कहते हैं में खुलती है । शुक्राशय एक तरल पदार्थ का निर्माण करता है जो वीर्य के निर्माण में मदद करता है साथ ही यह तरल पदार्थ शुक्राणुओं को ऊर्जा तथा गति प्रदान करता हैं ।
( d ) प्रोस्टेट ग्रन्थि ( Prostate gland ) : यह अखरोट के आकार की एक बाह्य स्त्रावी ग्रन्थि है जो एक तरल पदार्थ का निर्माण व उत्सर्जन करती है । यह तरल वीर्य का भाग बनता है तथा शुक्राणुओं को गति प्रदान करता है ।
( e ) मूत्र मार्ग ( Urethera ) : यह एक पेशीय नलिका है जो मूत्राशय से निकल कर स्खलन वाहिनी से मिल कर मूत्र जनन नलिका ( Urinogenital canal ) बनाती है । इसमें से होकर मूत्र , शुक्राणु , प्रोस्टेट ग्रन्थि आदि के स्त्राव बहार निकलते हैं । यह नलिका शिशन ( Penis ) से गुजर कर मूत्रजनन छिद्र ( Urinogenital aperture ) द्वारा बाहर निकलती है ।
( f ) शिशन ( Penis ) : ये एक बेलनाकार अंग है जो वृषणकोष के बीच लटकता रहता है । यह उत्थानशील ( Erectile ) मैथुनांग ( Copulatory organ ) है । सामान्य अवस्था में यह छोटा तथा शिथिल रहता है तथा मूत्र विसर्जन के काम आता है । मैथुन के समय यह उन्नत अवस्था में आकर वीर्य ( मय शुक्राणु ) को मादा जननांग में पहुँचाने का कार्य करता है ।
✺ मादा जनन तंत्र ( Female reproductive system )
स्त्रियों में भी जनन तंत्र को प्राथमिक व द्वितीयक लैंगिक अंगों में विभेदित किया गया है ।
✸ प्राथमिक जनन अंग ( Primary reproductive organs )
मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग के तौर पर एक जोड़ी अण्डाशय ( Ovaries ) पाए जाते हैं। अण्डाशय के दो प्रमुख कार्य होते हैं -दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वक्कों के नीचे श्रोणि भाग ( Pelvic region ) में गर्भाशय के दोनों और उपस्थित होते हैं । प्रत्येक अंडाशय में असंख्य विशिष्ट संरचनाए जिन्हें अण्डाशयी पुटिकाएँ ( Ovarian follicles ) कहा जाता हैं पाई जाती हैं । ये पुटिकाएं अण्डाणु निर्माण करती है । अण्डाणु परिपक्व होने के पश्चात् अंडाशय से निकलकर अंडवाहिनी ( Fallopian tubes ) से होकर गर्भाशय तक पहुँचता है । अंडाशय से स्त्रावित हार्मोन स्त्रियों में होने वाले लैंगिक परिवर्तन , अंडाणु के निर्माण आदि कार्यों में मदद करते हैं ।
✸ द्वितीयक लैंगिक अंग ( Secondary reproductive organs )
नर की भांति ही स्त्रियों में प्राथमिक अंगों के अलावा जनन कार्यो में मदद करने वाले अंग द्वितीयक लैगिक अंग कहलाते है । ये निम्न हैं ।
( a ) अंड वाहिनी ( Fallopian tube ) :यह एक लम्बा कुण्डलित नलिकाकार अंग है जो गर्भाशय के दोनों और स्थित होता है । अंड वाहिनी की नलियाँ अडाणुओं को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाने का कार्य करती है । यह 10 - 12 से . मी . लम्बी होती है तथा उदरगुहा के पीछे तक फैली होती है । यह निषेचन क्रिया के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने में मदद करती है ।
( b ) गर्भाशय ( Uterus ) : गर्भाशय उदर के निचले भाग में मूत्र थैली तथा मलाशय के मध्य स्थित खोखला मासंल अंग है जहां दोनों अडंवाहिका संयुक्त होकर एक थैलीनुमा संरचना का निर्माण करती हैं । इसका चौड़ा भाग ऊपर की ओर तथा संकरा भाग नीचे की ओर होता है । गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है । गर्भाशय में शुक्राणु द्वारा निषेचित अण्ड स्थापित हो भूण का विकास करता हैं । माता और भूण के मध्य स्थापित कड़ी प्लेसेंटा का रोपण भी गर्भाशय में ही होता है ।
( c ) योनि ( Vagina ) : यह मूत्राशय व मलाशय के मध्य स्थित करीब 8 - 10 से . मी . लम्बी नाल है जो स्त्रियों में मैथुन कक्ष के तौर पर कार्य करती है । यह अंग स्त्रियों में रजोधर्म स्त्राव ( menstral flow ) तथा प्रसव के मार्ग का भी कार्य करता है । योनि में लैक्टोबैसिलस जीवांणु पाए जाते है जो लैक्टिक अम्ल का निर्माण करते हैं । यहां का वातावरण लैक्टिक अम्ल तथा कार्बनिक अम्ल के कारण अम्लीय होता है ।
✺ प्रजनन की अवस्थाएँ ( Phases of reproduction )
मनुष्य में प्रजनन की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं ।
( a ) युग्मकजनन ( Gametogenesis ) : वृषण तथा अण्डाश्य में अगुणित युग्मकों ( Haploid gametes ) की निर्माण विधि को युग्मकजनन कहा जाता है । नर के वृषण में होने वाली इस क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा यह क्रिया शुक्रजनन कहलाती है । मादा के अण्डाशय में युग्मको ' की निर्माण क्रिया जिस के द्वारा अण्डाणु का निर्माण होता है । अण्डजनन कहलाती है ।
( b ) निषेचन ( Fertilization ) : मादा में उपस्थित अण्डाणु मेथुन के दौरान नर द्वारा छोड़े गए शुक्राणुओं के संपर्क में आते हैं तथा संयुग्मन कर युग्मनज ( Zygote ) का निर्माण करते है । यह प्रक्रिया निषेचन कहलाती है ।
( c ) विदलन तथा भ्रूण का रोपण ( Cleavage and embryo implantation ) : युग्मनज समसूत्री विभाजन द्वारा एक संरचना बनाता है जिसे कोरक ( Blastula ) कहा जाता है । तत्पश्चात् कोरक गर्भाशय के अंतःस्तर ( En dometrium ) में जाकर स्थापित होता है । यह प्रक्रिया भ्रूण का रोपण ( Embryo implantation ) कहलाती है ।
( d ) प्रसव ( Accouchement ) : भ्रूण , रोपण के पश्चात् भ्रूणीय विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है । गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास होने पर बच्चा जन्म लेता है । शिशु जन्म की प्रक्रिया प्रसव कहलाती है ।
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