शब्द - विचार भाग - 2

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✺( अ ) विकारी शब्द

✸ संज्ञा

परिभाषा : किसी प्राणी , वस्तु , स्थान , भाव , अवस्था , गुण या दशा के नाम को संज्ञा कहते हैं । जैसे आलोक , पुस्तक , जोधपुर , दया , बचपन , मिठास , गरीबी आदि ।

प्रकार : संज्ञा मुख्यतः तीन प्रकार की होती है -

( 1 ) व्यक्तिवाचक संज्ञा
( 2 ) जातिवाचक संज्ञा
( 3 ) भाववाचक संज्ञा

( 1 ) व्यक्तिवाचक संज्ञा : व्यक्ति विशेष , वस्तु विशेष अथवा स्थान विशेष के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे :
व्यक्ति विशेष : अभिषेक , गुंजन , कविता , कामिनी , लोकेश ।
वस्तु विशेष : रामायण , ऊषापंखा , रीटामशीन ।
स्थान विशेष : जयपुर , गंगा , ताजमहल , हिमालय ।

( 2 ) जातिवाचक संज्ञा : जिस संज्ञा से किसी प्राणी , वस्तु अथवा स्थान की जाति या पूरे वर्ग का बोध होता है , उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे -
प्राणी : मनुष्य , लड़की , घोड़ा , मोर , सेना , सभा
वस्तु : पुस्तक , पंखा , मशीन , दूध , साबुन , चाँदी
स्थान : पहाड़ , नदी , भवन , शहर , गाँव , विद्यालय

( 3 ) भाववाचक संज्ञा : किसी भाव , अवस्था , गुण अथवा दशा के नाम को भाववाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे - सुख , बचपन , सुन्दरता ।

विशेष : कतिपय विद्वान अंग्रेजी व्याकरण की नकल करते हुए हिन्दी में भी ( 1 ) समुदायवाचक संज्ञा तथा ( 2 ) द्रव्यवाचक संज्ञा दो भेद और बताते हैं किन्तु हिन्दी में उक्त दोनों भेद जाति - वाचक संज्ञा के अन्तर्गत आते हैं ।

✸ भाववाचक संज्ञाएँ बनाना

जातिवाचक संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण , क्रिया तथा कुछ अव्यय पदों के साथ प्रत्यय के मेल से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं । यथा -

1 . जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा -

( अ ) ' ता ' प्रत्यय के मेल से मानव - मानवता , मित्र - मित्रता , प्रभु - प्रभुता , पशु - पशुता
( आ ) त्व - पशु - पशुत्व , मनुष्य - मनुष्यत्व , कवि - कवित्व , गुरु - गुरुत्व ।
( इ ) पन - लड़का - लड़कपन , बच्चा - बचपन ।
( ई ) अ - शिशु - शैशव , गुरु - गौरव , विभु – वैभव ।
( उ ) ई - भक्त - भक्ति ।
( ऊ ) ई - नौकर - नौकरी , चोर - चोरी ।
( ए ) आपा - बूढा - बुढ़ापा , बहन - बहनापा ।

2 . सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा

( अ ) त्व - अपना - अपनत्व , निज - निजत्व , स्व - स्वत्व ।
( आ ) पन - अपना - अपनापन , पराया - परायापन ।
( इ ) कार - अहं - अहंकार ।
( ई ) स्व - सर्व - सर्वस्व ।

3 . विशेषण से भाववाचक संज्ञा

( अ ) आई - साफ - सफाई , अच्छा - अच्छाई , बुरा – बुराई ।
( आ ) आस - खट्टा - खटास , मीठा - मिठास ।
( इ )ता – उदार - उदारता , वीर – वीरता , सरल - सरलता ।
(ई )य - मधुर - माधुर्य , सुन्दर - सौन्दर्य , स्वस्थ - स्वास्थ्य ।
( उ ) पन - खट्टा - खट्टापन , पीला - पीलापन ।
( ऊ ) त्व - वीर - वीरत्व ।
(ए ) ई - लाल - लाली ।

4 . क्रिया से भाव - वाचक संज्ञा

( अ ) अ - खेलना - खेल , लूटना - लूट , जीतना - जीत ।
( आ )ई - हँसना - हँसी
( इ )आई - चढ़ना - चढ़ाई , पढ़ना - पढ़ाई , लिखना - लिखाई ।
( ई )आवट - बनाना - बनावट , थकना - थकावट , लिखना - लिखावट ।
( उ )आव - चुनना - चुनाव ।
( ऊ ) आहट - घबराना - घबराहट , गुनगुनाना - गुनगुनाहट ।
( ए )उड़ना - उड़ान ।
( ऐ )न - लेना - देना - लेन - देन , खाना - खान ।

5 . अव्यय से भाववाचक संज्ञा

( अ ) ई - भीतर - भीतरी , ऊपर - ऊपरी , दूर - दूरी ।
( आ ) य - समीप - सामीप्य ।
( इ ) इक - परस्पर - पारस्परिक , व्यवहार - व्यावहारिक ।
( ई ) ता - निकट - निकटता , शीघ्र - शीघ्रता ।

✸ सर्वनाम

सर्वनाम शब्द का अर्थ है - सब का नाम । वाक्य में संज्ञा की पुनरुक्ति को दूर करने के लिए संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं ।

जैसे - गुंजन विद्यालय जाती है । वह वहाँ पढ़ती है । पहले वाक्य में ' गुंजन ' तथा 'विद्यालय' शब्द संज्ञाएँ हैं , दूसरे वाक्य में 'गुंजन ' के स्थान पर 'वह' तथा विद्यालय के स्थान पर 'वहाँ ' शब्द प्रयुक्त हुए हैं । अतः ' वह ' और ' वहाँ 'शब्द संज्ञाओं के स्थान पर प्रयुक्त हुए हैं इसलिए इन्हें सर्वनाम कहते हैं ।

प्रकार : सर्वनाम छः प्रकार के होते हैं ।

1 . पुरुषवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनामों का प्रयोग बोलने वाले , सुननेवाले या अन्य किसी व्यक्ति के स्थान पर किया जाता है , उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ।

पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं -

( i ) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम शब्द जिनका प्रयोग बोलने वाला व्यक्ति स्वयं अपने लिए करता है । जैसे - मैं , हम मुझे , मेरा , हमारा , हमें आदि ।
( ii ) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम शब्द , जो सुनने वाले के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं । जैसे - तू , तुम , तुझे तुम्हें तेरा , आप , आपका आपको आदि । हिन्दी में अपने से बड़े या आदरणीय व्यक्ति के लिए तुम की अपेक्षा ' आप ' सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है ।
( iii ) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम , जिनका प्रयोग बोलने तथा सुनने वाले व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त करते हैं । जैसे - वह , वे , उन्हें उसे , इसे , उसका इसका आदि ।

2 . निश्चयवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम , जो किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध कराते हैं , उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे — यह , वह , इस , उस , ये , वे आदि । वह आपकी घड़ी है , वाक्य में वह शब्द निश्चयवाचक सर्वनाम है इसी प्रकार ' यह मेरा घर है ' में ' यह ' शब्द ।

3 . अनिश्चयवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम शब्द , जिनसे किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं होता बल्कि अनिश्चय की स्थिति बनी रहती हैं , उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे - कोई जा रहा है । वह कुछ खा रहा है । किसी ने कहा था । वाक्यों में कोई कुछ , किसी शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं ।

4 . प्रश्नवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम , जो प्रश्न का बोध कराते हैं या वाक्य को प्रश्नवाचक बना देते हैं , उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे - कौन गाना गा रहीं है ? वह क्या लाया ? किसकी पुस्तक पड़ी है ? उक्त वाक्यों में कौन , क्या , किसकी शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम हैं ।

5 . सम्बन्धवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम , जो दो पृथक् - पृथक् बातों के स्पष्ट सम्बन्ध को व्यक्त करते हैं , उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे - जो वह , जो - सो , जिसकी - उसकी , जितना - उतना , आदि सम्बन्ध वाचक सर्वनाम है । उदाहरणार्थ - जो पढ़ेगा सो पास होगा । जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा ।

6 . निजवाचक सर्वनाम : वे सर्वनाम , जिन्हें बोलनेवाला कर्ता स्वयं अपने लिए प्रयुक्त करता है , उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं । आप , अपना , स्वयं , खुद आदि निजवाचक सर्वनाम हैं । मैं अपना खाना बना रहा हूँ । तुम अपनी पुस्तक पढ़ो आदि वाक्यों में अपना , अपनी शब्द निजवाचक सर्वनाम है ।

✸ विशेषण

परिभाषा : वे शब्द , जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द को विशेषता बतलाते हैं , उन्हें विशेषण कहते हैं । जैसे नीला - आकाश , छोटी लड़की , दुबला आदमी , कुछ पुस्तकें में क्रमशः नीला , छोटी , दुबला , कुछ शब्द विशेषण हैं , जो आकाश , लड़की , आदमी , पुस्तकें आदि संज्ञाओं की विशेषता का बोध कराते हैं ।

अतः विशेषता बतलाने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं वहीं वह विशेषण पद जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाता है उसे ' विशेष्य' कहते हैं । उक्त उदाहरणों में आकाश , लड़की , आदमी , पुस्तकें आदि शब्द विशेष्य कहलायेंगे ।

प्रकार : विशेषण मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं -

1 . गुणवाचक विशेषण : वे शब्द , जो किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण , दोष , रूप , रंग , आकार , स्वभाव , दशा आदि का बोध कराते हैं , उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे - काला , पुराना , भला , छोटा , मीठा , देशी , पापी , धार्मिक आदि ।

2 . संख्यावाचक विशेषण : वे विशेषण , जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित , अनिश्चित संख्या , क्रम या गणना का बोध कराते हैं उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । ये भी दो प्रकार के होते हैं - एक वे जो निश्चित संख्या का बोध कराते हैं तथा दूसरे वे जो अनिश्चित संख्या का बोध कराते हैं जैसे -

( i ) निश्चित संख्या वाचक
( अ ) गणनावाचक - एक , दो , तीन ।
( आ ) क्रमवाचक - पहला , दूसरा ।
( इ ) आवृत्तिवाचक - दुगुना , चौगुना ।
( द ) समुदाय वाचक - दोनों , तीनों , चारों

( ii ) अनिश्चय संख्या वाचक - कई , कुछ , सब , बहुत , थोड़े ।

3 . परिमाण वाचक विशेषण : वे विशेषण , जो किसी पदार्थ की निश्चित या अनिश्चित मात्रा , परिमाण , नाप या तौल आदि का बोध कराते हैं , उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं । इसके भी दो उपभेद किए जा सकते हैं यथा

( i ) निश्चित परिमाण वाचक : दो मीटर , पाँच किलो , सात लीटर ।
( ii ) अनिश्चित परिमाण वाचक : थोड़ा , बहुत कम , ज्यादा , अधिक , जरा - सा , सब आदि ।

4 . संकेतवाचक विशेषण : वे सर्वनाम शब्द , जो विशेषण के रूप में किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं , उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं । जैसे - ( i ) इस गेंद को मत फेंको । ( ii ) उस पुस्तक को पढ़ । ( iii ) वह कौन गा रही है ? वाक्यों में इस , उस , वह आदि शब्द संकेतवाचक विशेषण हैं ।

5 . व्यक्तिवाचक विशेषण : वे विशेषण , जो व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से बनकर अन्य संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाते हैं उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे - जोधपुरी जूती , बनारसी साड़ी , कश्मीरी सेब , बीकानेरी भुजिया । वाक्यों में जोधपुरी , बनारसी , कश्मीरी , बीकानेरी शब्द व्यक्तिवाचक विशेषण है ।

विशेष : कतिपय विद्वान् एक और प्रकार -‘विभाग वाचक विशेषण ' का भी उल्लेख करते हैं । जैसे प्रत्येक हर एक आदि ।

विशेषण की अवस्थाएँ - विशेषण की तुलनात्मक स्थिति को अवस्था कहते हैं । अवस्था के तीन प्रकार माने गये हैं -

( i ) मूलावस्था : जिसमें किसी संज्ञा या सर्वनाम की सामान्य स्थिति का बोध होता है । जैसे - रहीम अच्छा लड़का है ।

( ii ) उत्तरावस्था : जिसमें दो संज्ञा या सर्वनाम की तुलना की जाती है । जैसे - अशोक रहीम से अच्छा है । या प्रशान्त अभिषेक से श्रेष्ठतर है ।

( iii ) उत्तमावस्था : जिसमें दो से अधिक संज्ञा या सर्वनामों की तुलना करके , एक को सबसे अच्छा या बुरा बतलाया जाता है वहाँ उत्तमावस्था होती है । जैसे - अकबर सबसे अच्छा है । रजिया कक्षामें श्रेष्ठत्तम छात्रा है ।

अवस्था परिवर्तन : मूलावस्था के शब्दों में ' तर ' तथा 'तम' प्रत्यय लगा कर या शब्द के पूर्व से अधिक , या सबसे अधिक शब्दों का प्रयोग कर क्रमशः उत्तरावस्था एवं उत्तमावस्था में प्रयुक्त किया जाता है , जैसे -

मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
उच्च उच्चतर उच्चतम
श्रेष्ठ श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम
तीव्र तीव्रतर तीव्रतम
अच्छा से अच्छा सबसे अच्छा
ऊँचा से अधिक ऊँचा सबसे ऊँचा

✸ विशेषण की रचना

संज्ञा , सर्वनाम क्रिया तथा अव्यय शब्दों के साथ प्रत्यय के मेल से विशेषण पद बन जाता हैं ।

( i ) संज्ञा से विशेषण बनना : प्यार - प्यारा , समाज - सामाजिक, पुष्प - पुष्पित , स्वर्ण - स्वर्णिम , जयपुर - जयपुरी , धन - धनी , भारत - भारतीय , रग - रंगीला , श्रद्धा - श्रद्धालु , चाचा - चचेरा , विष – विषैला , बुद्धि - बुद्धिमान , गुण - गुणवान , दूर - दूरस्थ ।

( ii )सर्वनाम से विशेषण : यह - ऐसा , जो - जैसा , मैं - मेरा , तुम - तुम्हारा , वह - वैसा , कौन - कैसा ।

( iii )क्रिया से विशेषण : भागना - भगौडा , लड़ना - लडाकू , लूटना - लुटेरा ।

( iv )अव्यय से विशेषण :आगे - अगला , पीछे - पिछला , बाहर - बाहरी ।

✸ क्रिया

परिभाषा : वे शब्द , जिनके द्वारा किसी कार्य को करना या होना पाया जाता है , उन्हें क्रिया पद कहते हैं । संस्कृत में क्रिया रूप को धातु कहते हैं | हिन्दी में उन्हीं के साथ ' ना ' लग जाता । है जैसे - लिख से लिखना , हँस से हँसना ।

प्रकार : कर्म , प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के विभिन्न भेद किए जाते हैं

1 . कर्म के आधार पर

कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं- ( i ) अकर्मक क्रिया ( ii ) सकर्मक क्रिया ।

( i ) अकर्मक क्रिया : वे क्रियाएँ जिनके साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता तथा क्रिया का प्रभाव वाक्य के प्रयुक्त कर्ता पर पड़ता है , उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे - कुत्ता भौंकता है । कविता हँसती हैं । टीना सोती है । बच्चा रोता है । आदमी बैठा है ।

( ii ) सकर्मक क्रिया : वे क्रियाएँ , जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़ कर कर्म पर पड़ता है । अर्थात् वाक्य में क्रिया के साथ कर्म भी प्रयुक्त हो , उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे - भूपेन्द्र दूध पी रहा है । नीतू खाना बना रही है ।

सकर्मक क्रिया के दो उपभेद किये जाते हैं -

( अ ) एक कर्मक क्रिया : जब वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो तो उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे - दुष्यन्त भोजन कर रहा है ।

( आ ) द्विकर्मक क्रिया : जब वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त हुए हों तो उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे - अध्यापक जी छात्रों को भूगोल पढ़ा रहे हैं । इस वाक्य में 'पढ़ा रहे हैं ' क्रिया के साथ ' छात्रों ' एवम् ' भूगोल ' दो कर्म प्रयुक्त हुए हैं । अतः ' पढ़ा रहे हैं '। द्विकर्मक क्रिया है ।

2 . प्रयोग तथा संरचना के आधार पर

वाक्य में क्रियाओं का प्रयोग कहाँ किया जा रहा है , किस रूप में किया जा रहा है , इसके आधार पर भी क्रिया के निम्न भेद होते हैं |

(i) सामान्य क्रिया : जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हुआ हो , उसे सामान्य क्रिया कहते हैं । जैसे - महेन्द्र जाता है । सन्तोष आई ।

( ii ) संयुक्त क्रिया : जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थक क्रियाओं के मेल से बनती हैं , उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । जैसे जया ने खाना बना लिया । हेमराज ने खाना खा लिया ।

( iii ) प्रेरणार्थक क्रिया : ये क्रियाएँ , जिन्हें कर्ता स्वयं न करके दूसरों को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है , उन क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं । जैसे - दुष्यन्त हेमन्त से पत्र लिखवाता है । कविता सविता से पत्र पढवाती है ।

( iv ) पूर्वकालिक क्रिया : जय किसी वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हों तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले सम्पन्न हुई हो तो पहले सम्पन्न होने वाली क्रिया पूर्व कालिक क्रिया कहलाती हैं । जैसे - धर्मेन्द्र पढ़कर सो गया । यहाँ सोने से पूर्व पढ़ने का कार्य हो गया अतः पढ़कर क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाएगी । ( किसी मूल धातु के साथ 'कर' या 'करके' लगाने से पूर्वकालिक क्रिया बनती है ।)

( v ) नाम धातु क्रिया : वे क्रिया पद , जो संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण आदि से बनते हैं , उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं । जैसे - रंगना , लजाना , अपनाना , गरमाना , चमकाना गुदगुदाना ।

( vi ) कृदन्त क्रिया : वे क्रिया पद जो क्रिया शब्दों के साथ प्रत्यय लगने पर बनते हैं , उन्हें कृदन्त क्रिया पद कहते हैं । जैसे - चल से चलना , चलता , चलकर । लिख से लिखना , लिखता , लिखकर ।

( vii ) सजातीय क्रिया : ये क्रियाएँ , जहाँ कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ प्रयुक्त होती है । जैसे भारत ने लड़ाई लड़ी ।

( viii ) सहायक क्रिया : किसी भी वाक्य में मूल क्रिया की सहायता करने वाले पद को सहायक क्रिया कहते हैं । जैसे - अरविन्द पढता है । भानु ने अपनी पुस्तक मेज पर रख दी है ।
उक्त वाक्यों में ' है 'तथा 'दी ' हैं सहायक क्रियाएँ हैं ।

3 . काल के अनुसार

जिस काल में कोई क्रिया होती है , उस काल के नाम के आधार पर क्रिया का भी नाम रख देते हैं । अतः काल के अनुसार क्रिया तीन प्रकार की होती है -

( i ) भूतकालिक क्रिया : क्रिया का वह रूप , जिसके द्वारा बीते समय में ( भूतकाल में ) कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है । जैन - सरोज गयी । सलीम पुस्तक पढ़ रहा था ।

( ii ) वर्तमान कालिक क्रिया : क्रिया का वह रूप , जिसके द्वारा वर्तमान समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है । जैसे - कमला गाना गाती है । विमला खाना बना रही है ।

( iii ) भविष्यत् कालिक क्रिया : क्रिया का वह रूप , जिसके द्वारा आने वाले समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है । जैसे - नीलम कल जोधपुर जायेगी । अशोक पत्र लिखेगा ।

✺अविकारी / अव्यय शब्द

✸ क्रिया - विशेषण

वे अविकारी या अव्यय शब्द , जो क्रिया की विशेषता बतलाते हैं , उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं ।

प्रकार : क्रिया विशेषण शब्द मुख्यतः 4 प्रकार के होते हैं , जबकि कतिपय विद्वान् इसके भेद निम्नानुसार करते हैं |

( i ) कालबोधक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द जो क्रिया के होने या करने के समय का बोध कराते हैं । जैसे - कब , जब , कल , आज , प्रतिदिन , प्रायः , सायं , अभी - अभी , लगातार अब , तब , पहले , बाद में ।

( ii ) स्थानबोधक क्रिया विशेषण : वे अव्यय शब्द जो क्रिया के स्थान या दिशा का बोध कराते हैं । जैसे - ऊपर , नीचे , पास , दूर , इधर , उधर यहाँ , वहाँ , जहाँ , तहाँ , दाएँ , बाएँ , निकट , सामने , अन्दर , बाहर ।

( iii ) परिमाण बोधक क्रिया - विशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के होने की मात्रा या परिमाण का बोध कराते हैं । जैसे - बहुत , अति , सर्वथा , कुछ , थोड़ा , बराबर , ठीक , कम , अधिक , बढ़कर , थोड़ा - थोड़ा , उतना , जितना , खूब ।

( iv ) रीतिबोधक क्रिया - विशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के होने की रीति या ढंग का बोध कराते हैं । जैसे - धीरे - धीरे , सहसा , शीघ्र , तेज , मीठा , शायद , मानो , ऐसे , अचानक , स्वयं , यथाशक्ति , निःसन्देह ।

( v ) कारण बोधक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के कारण को प्रकट करते हैं । जैसे - इस तरह , अतः , किस प्रकार ।

( vi ) स्वीकारबोधक क्रिया विशेषण : वे अव्यय , शब्द , जो क्रिया की स्वीकृति को प्रकट करते हैं । जैसे - अवश्य , बहुत अच्छा ।

( vii ) निषेधबोधक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के निषेध को प्रकट करते हैं । जैसे - न , नहीं , मत ।

( vii ) प्रश्न वाचक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के प्रश्न को प्रकट करते है । जैसे - कहाँ , कब ।

( ix ) निश्चयबोधक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के निश्चय को प्रकट करते हैं । जैसे - वास्तव में , मुख्यतः ।

( x ) अनिश्चयबोधक क्रियाविशेषण : वे अव्यय शब्द , जो क्रिया के अनिश्चय को प्रकट करते हैं । जैसे - शायद , संभवतः ।

( क्रिया - विशेषण और संबंध - बोधक में अन्तर - आगे , पीछे , नीचे आदि शब्द ऐसे हैं जो क्रिया विशेषण भी हैं तथा संबंध बोधक अव्यय भी । यदि इन शब्दों का प्रयोग क्रिया की विशेषता प्रकट करने के लिए होगा , तो वे क्रिया विशेषण कहलायेंगे , किन्तु जब वे संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताएँगे , तब इन्हें सम्बन्ध बोधक अव्यय कहेंगे ।)

✸ समुच्चय बोधक अव्यय

अव्यय शब्द , जो दो शब्दों , वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ते हैं , उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय या संयोजक शब्द कहते हैं ।

प्रकार : समुच्चय बोधक अव्यय मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं । ( i ) संयोजक( ii ) विभाजक

( i ) संयोजक : वे अव्यय शब्द , जो दो शब्दों , वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ते हैं । जैसे - और , तथा , एवं , तो , जो , फिर , यथा , यदि , पुनः , इसलिए , कि , मानो आदि ।

( ii ) विभाजक : वे अव्यय शब्द , जो दो शब्दों , वाक्यांशों या वाक्यों में विभाजन का बोध कराते हैं । जैसे - किन्तु , परन्तु , पर , वरना , बल्कि , अपितु , क्योंकि , या , चाहे , ताकि यद्यपि , अन्यथा आदि ।

✸ सम्बन्ध बोधक अव्यय

वे अव्यय शब्द , जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द के साथ लगकर उसका सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त अन्य शब्द से बताते हैं , उन्हें सम्बन्ध बोधक अव्यय कहते हैं ।

प्रकार : सम्बन्ध बोधक अव्यय निम्न 10 प्रकार के होते हैं -

( i ) काल वाचक : पहले , पीछे , उपरान्त , आगे ।

( ii ) स्थानवाचक : सामने , भीतर , निकट , यहाँ ।

( iii ) दिशावाचक : आसपास , ओर , पार , तरफ ।

( iv ) समतावाचक : भाँति , समान , तुल्य , योग ।

( v ) साधनवाचक : द्वारा , सहारे , माध्यम ।

( vi ) विषयवाचक : विषय , भरोसे , बाबत , नाम ।

( vii ) विरुद्धवाचक : विपरीत , विरुद्ध , खिलाफ , उलटे ।

( viii ) संग वाचक : साथ , संग , सहचर ।

( ix ) हेतु वाचक : सिवा , लिए , कारण , वास्ते ।

( x ) तुलनावाचक : अपेक्षा , आगे , सामने ।

✸ विस्मयादिबोधक अव्यय

वे अव्यय शब्द , जो आश्चर्य , विस्मय , शोक , घृणा , प्रशंसा , प्रसन्नता , भय आदि भावों का बोध कराते हैं , उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं ।

प्रकार : उक्तभावों के अनुसार इनके निम्न भेद किए जाते हैं :

( i ) आश्चर्य बोधक : क्या , अरे , अहो , हैं , सच , ओह , ओहो , ऐं ।

( ii ) शोक बोधक : उफ , आह , हाय , हेराम , राम - राम ।

( iii ) हर्ष बोधक : वाह , धन्य , अहा ।

( iv ) प्रशंसा बोधक : शाबाश , वाह , अति सुन्दर ।

( v ) क्रोध बोधक : अरे , चुप ।

( vi ) भय बोधक : हाय , बाप रे ।

( vii ) चेतावनी बोधक : खबरदार , बचो , सावधान ।

( viii ) घृणा बोधक : छिः छिः , धिक्कार , उफ् , धत् , थू - थू ।

( ix ) इच्छा बोधक : काश , हाय ।

( s ) सम्बोधन बोधक : अजी , हे , अरे , सुनते हो ।

( ii ) अनुमोदन बोधक : अच्छा , हाँ , हाँ - हाँ , ठीक ।

( iii ) आशीर्वाद बोधक : शाबाश , जीते रहो , खुश रहो ।

Also Read - शब्द - विचार भाग - 1

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