अम्ल , क्षार एवं लवण

Acid Base and Salt

अम्ल

1 . लेटिन शब्द Acidus = खट्टा से , अंग्रेजी शब्द एसिड बना है ।

2 . अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं ।

3. ये नीले लिट्मस को लाल कर देते हैं ।

4 . सिरके में एसिटिक अम्ल , इमली में टार्टरिक अम्ल , नींबू में सिट्रिक अम्ल , संतरा में एस्कार्बिक अम्ल , सेव में मैलिक अम्ल , चींटी एवं मधुमक्खी के डंक में फार्मिक ( मेथेनाइक ) अम्ल एवं जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पाया जाता है ।

5. ये जल में विलेय होते है ।

6. यदि अम्ल जल की मात्रा अधिक होती है तो ये तनु अम्ल कहलाते है और यदि जल की तुलना में अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो सान्द्र अम्ल कहलाते है ।

क्षार

1 . लेटिन शब्द Alkali = पेड़ों की राख से , अंग्रेजी शब्द एल्कली लिया गया है जिसे Base कहते हैं ।

2. ये स्वाद में कड़वे या तीखे होते हैं ।

3 . ये लाल लिट्मस को नीला कर देते हैं एवं छूने पर साबुन जैसे चिकने लगते हैं ।

4 . ये अम्लों से क्रिया करके उदासीन कर देते हैं एवं लवण एवं जल बनाते हैं । इसे उदासीनीकरण अभिक्रिया भी कहते हैं |

5. ये स्पर्श में साबुन जैसा व्यवहार दिखाते है । जैसे कि सोडियम हाइड्रॉक्साइड ( NaOH ) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड ( KOH ) , एल्युमिनियम हाइड्राक्साइड ( Al ( OH )3 ) अमोनियम हाइड्रॉक्साइड आदि ।

6. ये अम्लों को उदासीन करने का सामर्थ्य रखते है तथा जल में विलेय होते है ।

7. यदि क्षार में जल की मात्रा अधिक होती है तो ये तनु क्षार कहलाते है और यदि जल की तुलना में क्षार की मात्रा अधिक होती है तो सान्द्र कहलाते है ।

लवण

1 . ये अम्ल एवं क्षार की क्रिया से बनते हैं और उदासीन , अम्लीय या क्षारीय हो सकते हैं ।

2 . इनके गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं तथा प्रायः क्रिस्टल रूप में पाये जाते हैं ।

3 . लवण के इकाई सूत्र को लिखने में जल के अणुओं की जो निश्चित संख्या जुड़ी रहती है , उसे क्रिस्टलन जल कहते हैं । जैसे धोने का सोडा Na2 CO3⋅10H2O

4. अम्ल और क्षार की क्रिया के द्वारा लवण और जल बनते हैं |

अम्ल + क्षार ⟶ लवण + जल

HCl + NaOH ⟶ NaCl + H2O

यह क्रिया उदासीनीकरण क्रिया भी कहलाती है तथा ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया होती है ।

5. प्रबल अम्ल तथा प्रबल क्षार से बने लवण उदासीन होती है ।

6. प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षार से बने लवण अम्लीय होते हैं |

7. दुर्बल अम्ल तथा प्रबल क्षार से बने लवण क्षारीय होते है ।

HCl + NH4OH ⟶ NH4Cl + H2O

अम्ल तथा क्षार की विभिन्न संकल्पनाएँ

आरेनियस संकल्पना ( Arhenius Theory )

अम्ल व क्षार की परिभाषा सर्वप्रथम 1887 ई . में आरेनियस ने इस प्रकार दी ‘ जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रोजन आयन ( H+ ) देते है अम्ल कहलाते है । तथा जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रॉक्सिल आयन देते है , क्षार कहलाते है ’ ।

अम्ल के उदाहरण -

      HCl      (aq)हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ⟶ H+(aq) + Cl-(aq)

HNO3(aq)नाइट्रिक अम्ल ⟶ H+(aq) + NO-3(aq)

H2SO4(aq)सल्फ्यूरिक अम्ल ⟶ 2H+(aq) + SO-24(aq)

CH3COOH4(aq)एसीटिक अम्ल ⟶ H+(aq) + CH3COO-4(aq)

H2CO3(aq)कार्बोनिक अम्ल ⟶ H+(aq) + HCO-3(aq)

ये सभी अम्ल है क्योंकि जलीय विलयन में H+ आयन देते है । यहाँ मुक्त प्रोटॉन यानि हाइड्रोजन आयन ( H+ ) अत्यधिक क्रियाशील होता है अतः जल से क्रिया करके हाइड्रोनियम आयन ( H3O+ )(aq) के रूप में रहता है ।

H+ + H2O ⟶ H3O+(aq)

कुछ अम्ल जलीय विलयन में पूर्णतया आयनित हो जाते हैं ऐसे अम्ल प्रबल अम्ल कहलाते हैं । जैसे - HCl ,H2SO4 , HNO3 आदि । कुछ अम्ल जलीय विलयन में पूर्णतया आयनित नहीं होते है , अवियोजित अवस्था में भी कुछ मात्रा में रहते है । इन्हें दुर्बल अम्ल कहते है । जैसे - CH3COOH , H2CO3 आदि ।

क्षार के उदाहरण -

      KOH(aq)      पोटैशियम हाइड्रोक्साइड ⟶ K+(aq) + OH-(aq)

      NaOH      सोडियम हाइड्रोक्साइड ⟶ Na+(aq) + OH-(aq)

      Ca(OH)2      कैल्शियम हाइड्रोक्साइड ⟶ Ca+(aq) + 2OH-(aq)

      NH4OH      अमोनियम हाइड्रोक्साइड ⟶ NH4+(aq) + OH-(aq)

ये सभी क्षार है क्योंकि जलीय विलयन में ( OH- ) हॉइड्रॉक्सिल आयन देते है । वे क्षार जिनका जलीय विलयन में पूर्णतः आयनन हो जाता है प्रबल क्षार कहलाते है जैसे - KOH , NaOH आदि । जो क्षार जलीय विलयन में पूर्णतः आयनित नहीं होते है दुर्बल क्षार कहलाते है । जैसे - NH4OH , Mg(OH)2 आदि ।

आरेनियस के अनुसार अम्ल और क्षार की क्रिया कराने पर H+ व OH- आयन परस्पर संयोग कर जल का निर्माण करते है , इस क्रिया को उदासीनीकरण कहते हैं । यह क्रिया ऊष्मा मुक्त करती है , अतः ऊष्माक्षेपी होती है ।

H+(aq) + OH-(aq) ⟶ H2

आरेनियस की संकल्पना उन अम्लों एवं क्षारों के लिए उपयुक्त थी जिनमें क्रमशः H+ व OH- आयन होते है परन्तु इससे | हाइड्रोजन विहीन अम्लों तथा हाइड्रॉक्सिल विहीन क्षारों की प्रकृति के बारे में स्पष्ट नहीं हो पाता है , तब एक नई संकल्पना दी गई ।

अम्ल क्षार की ब्रांस्टेड - लोरी संकल्पना ( Bransted Lowry Concept Of Acids And Bases )

अम्लों एवं क्षारों की यह परिभाषा डेनिश रसायनज्ञ जोहान्स ब्रांस्टेड ( 1874 - 1936 ) तथा अंग्रेज रसायनज्ञ थामस एम. लोरी ( 1874 - 1936 ) ने दी । ब्रांस्टेड - लोरी के अनुसार ‘अम्ल प्रोटॉन दाता होते है तथा क्षार प्रोटॉन ग्राही होते है ।’ यहाँ उन्होंने संयुग्मी अम्ल एवं संयुग्मी क्षारक की अवधारणा दी ।

HAअम्ल +    B   क्षारक     A-    संयुग्मी क्षार +    HB+   संयुग्मी अम्ल

HA - A- को अम्ल संयुग्मी क्षार युग्म तथा ( B - HB+ ) को क्षार - संयुग्मी अम्ल युग्म कहा गया है ।

उदाहरण -
H2O + NH3(aq)अमोनिया ⟶ NH+4(aq) + OH-(aq)

यहाँ जल (H2O) प्रोटॉन दाता है अतः अम्ल है , यह प्रोटॉन देकर संगत क्षार ( OH- ) जिसे कि संयुग्मी क्षार कहते है , में बदल जाता है । अमोनिया ( NH3 ) प्रोटॉन ग्राही है , अतः क्षार है और यह प्रोटॉन ग्रहण करके संगत अम्ल ( NH+4 ) अमोनियम आयन जिसे कि संयुग्मी अम्ल भी कहते है , में परिवर्तित हो जाता है । इन ( NH3 - NH+4 ) तथा ( H2O - OH- ) को संयुग्मी अम्ल - क्षार युग्म कहते है । ये केवल एक प्रोटॉन या H+ आयन की उपस्थिति के अंतर के कारण ही बनते है । एक अन्य उदाहरण हैं -

HCL(aq + H2O ⟶ Cl-(aq) + H3O(aq)

ये संकल्पना अप्रोटिक अम्लों एवं क्षारों जैसे CO2 , SO2 , BF3 आदि के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं करती है । अतः इलेक्ट्रॉन के आधार पर अम्ल क्षार की नई संकल्पना दी गई ।

अम्ल - क्षार की लुईस संकल्पना ( Lewis Concept Of Acids And Bases )

सन् 1923 में लुईस ने नयी संकल्पना दी इसके अनुसार ‘ अम्ल वे पदार्थ है जो इलैक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करते है तथा क्षार वे पदार्थ होते है जो इलेक्ट्रॉन युग्म त्यागते है ’ । अर्थात् इलेक्ट्रॉन युग्म ग्राही अम्ल तथा इलेक्ट्रॉन युग्म दाता क्षार कहलाते है । जैसे -

BF3अम्ल + :NH3क्षार → F3B ← NH3

इसके अनुसार लुइस क्षार इलेक्ट्रॉन देते है तथा लुईस अम्ल इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर यौगिक बना लेते हैं , यहाँ दोनों परस्पर उपसहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े हैं ।

इस संकल्पना के अनुसार इलेक्ट्रॉन की कमी वाले यौगिक अम्ल का कार्य करेंगे इन्हें लुईस अम्ल कहते है । साधारणतया धनायन , या वे यौगिक जिनका अष्टक अपूर्ण होता है लुईस अम्ल कहलाते है । उदाहरण - BF3 , AlCl3 , Mg+2 , Na+ आदि ।

इलेक्ट्रॉन धनी या इलेक्ट्रॉन का एकाकी युग्म रखने वाले यौगिक क्षार का कार्य करते है , इन्हें लुईस क्षार कहते है ।
उदाहरण - H2O. .: , N. .H3 , OH- , Cl- आदि ।

इस प्रकार अम्ल एवं क्षार केवल H+ या OH- युक्त पदार्थ ही नहीं होते है । इन संकल्पनाओं के आधार पर हाइड्रोजन रहित पदार्थों के अम्लीय व क्षारीय गुणों की व्याख्या भी की जा सकती है ।

अम्ल तथा क्षार के सामान्य गुण

1. अम्ल नीले लिटमस को लाल कर देते हैं तथा क्षार लाल लिटमस को नीला कर देते हैं |

2 . अम्ल धातु के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन गैस देते है ।

अम्ल + धातु ⟶ लवण + H2

H2SO4 + Znजस्ता ⟶ ZnSO4 + H2

यही कारण है कि खट्टे अम्लीय पदार्थ धातु के बर्तनों में नहीं रखे जाते है ।

Zn धातु की क्षार NaOH के साथ अभिक्रिया से भी लावन व हाइड्रोजन गैस ही बनती है ।

2NaOH + Zn ⟶ Na2ZnO2सोडियम जिंकेट + H2

परन्तु सभी धातुओं की क्षारों के साथ अभिक्रिया में H2 गैस नहीं बनती है ।

3 . अम्ल धातु ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके लवण और जल देते है ।

धातु ऑक्साइड + अम्ल ⟶ लवण + जल

CuO + 2HCl ⟶ CuCl2 + H2O

धातु ऑक्साइड अम्ल के साथ अभिक्रिया कर लवण और जल बनाते है । अतः ये क्षारीय प्रवृत्ति के होते है । क्षारों के साथ अधात्विक ऑक्साइड अभिक्रिया करके लवण और जल बनाते है अतः ये अम्लीय प्रवृत्ति के होते है ।

अधातु ऑक्साइड + क्षार ⟶ लवण + जल

CO2 + Ca(OH)2 ⟶ CaCO3 + H2O

4 . सभी अम्लों व क्षारों के जलीय विलयन विद्युत के सुचालक होते है । इनका उपयोग विद्युत अपघट्य के रूप में भी किया जाता है ।

5 . सभी अम्ल क्षारों से अभिक्रिया करके अपने गुण खो देते हैं तथा उदासीन हो जाते है । यह क्रिया उदासीनीकरण कहलाती है ।

अम्ल + क्षार ⟶ लवण + जल

HCl + NaOH ⟶ NaCl + H2O

अम्ल , क्षार एवं लवण के उपयोग

अम्लों के उपयोग

( i ) H2SO4 , HCl , HNO3 को खनिज अम्ल कहा जाता है , जबकि पौधों तथा जन्तुओं में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले अम्लों को कार्बनिक अम्ल कहते हैं । जैसे – सिट्रिक अम्ल , टार्टरिक अम्ल , एसिटिक अम्ल , लैक्टिक अम्ल आदि । खनिज अम्ल विभिन्न उद्योग - धन्धों जैसे औषधि , पेन्ट तथा उर्वरक आदि में प्रयुक्त होते हैं ।

( ii ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल अनेक उद्योगों में , बॉयलर को साफ करने में , सिंक तथा सेनिटरी को साफ करने में विशेष रूप से प्रयुक्त किया जाता है ।

( iii ) नाइट्रिक अम्ल , उर्वरक बनाने , चाँदी व सोने के गहनों को साफ करने में काम आता है । एक भाग HNO3 तथा तीन भाग HCl को मिलाने पर अम्लराज ( Aqua regia ) बनता है जो कि अत्यन्त महत्वपूर्ण मिश्रण है जो कि सोने जैसे धातु को भी विलेय कर देता है ।

( iv ) सल्फ्यूरिक अम्ल सेल , कार बैटरी तथा उद्योगों में काम आता है । सल्फ्यूरिक अम्ल को अम्लों का राजा ( King Of Acids ) भी कहा जाता है । किसी भी देश की औद्योगिक प्रगति की दर को उस देश के उद्योग - धन्धों में प्रयुक्त सल्फ्यूरिक अम्ल की मात्रा से मापा जाता है ।

( v ) कार्बनिक अम्ल जैसे एसीटिक अम्ल सिरके के रूप में खाद्य पदार्थों तथा अचार आदि को संरक्षित करने में तथा लकड़ी के फर्नीचर आदि को साफ करने में काम आता है ।

क्षारों के उपयोग

( i ) विभिन्न क्षारों का भी उपयोग उद्योगों में प्रमुखता से होता है । साबुन , अपमार्जक , कागज उद्योग तथा वस्त्र उद्योगों में सोडियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग होता है ।

( ii ) कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग मिट्टी की अम्लता को दूर करने में किया जाता है । Ca(OH)2 सफेदी अर्थात चूना तथा कीटनाशक का एक घटक भी है ।

( iii ) मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड [ Mg(OH)2] को मिल्क ऑफ मैग्नीशिया भी कहा जाता है । यह एन्टाएसिड के रूप में पेट की अम्लता और पेट की कब्ज दूर करने में उपयोग में लिया जाता है ।

लवणों के उपयोग

( i ) दैनिक जीवन में लवणों के भी महत्वपूर्ण उपयोग होते हैं । जैसे कैल्शियम कार्बोनेट ( CaCO3 ) को संगमरमर के रूप में फर्श बनाने में , धातुकर्म में लोहे के निष्कर्षण में तथा सीमेन्ट बनाने में उपयोग में लिया जाता है ।

( ii ) सिल्वर नाइट्रेट ( AgNO3 ) को फोटोग्राफी में , अमोनियम नाइट्रेट उर्वरक तथा विस्फोटक बनाने में , फिटकरी ( K2SO4⋅ Al2 ( SO4 )3 ⋅ 24H2O ) को जल के शोधन में प्रयुक्त किया जाता है । इसी प्रकार अनेक लवण हैं जो कि दैनिक जीवन में उपयोग की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं ।

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