रसायन विज्ञान में ऑक्सीकरण अपचयन अभिक्रियाएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है । अनेक जैविक भौतिक एवं महत्वपूर्ण रासायनिक क्रियाएँ इनसे सम्बन्धित होती है । सामान्यतया सभी तत्व ऑक्सीजन व हाइड्रोजन से अभिक्रिया करते है अतः इसी आधार पर इन्हें ऑक्सीकरण अपचयन अभिक्रिया कहा गया है । ये अभिक्रियाएँ ऑक्सीकारक तथा अपचायक को भी परिभाषित करती है । इन अभिक्रियाओं को निम्न आधार पर समझाया गया है -
ऑक्सीजन के संयोग एवं वियोजन के आधार पर ऑक्सीकरण - अपचयन
ऑक्सीजन का योग ऑक्सीकरण कहलाता है । मूल रूप में ऑक्सीकरण शब्द का प्रयोग भी ऑक्सीजन के संयोग के लिए ही होता है ।
उदाहरण -
2Mg + O2 | → | 2MgO |
S + O2 | → | SO2 |
सल्फर डाईऑक्साइड |
अभिक्रिया में पदार्थ से ऑक्सीजन का निकलना अपचयन कहलाता है ।
2KClO3 → 2 KCl + 3O2
2MgO → Mg + O
इस अभिक्रिया में KClO3 का KCl में तथा MgO का Mg में अपचयन हो रहा है ।
हाइड्रोजन के संयोग एवं वियोजन के आधार पर ऑक्सीकरण - अपचयन
यह परिभाषा पहले अधिक प्रचलित थी परन्तु आज भी कार्बनिक रसायन में प्रमुखता से प्रयोग की जाती है । वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें पदार्थ से हाइड्रोजन निकलती हो ऑक्सीकरण कहलाती है ।
2H2S + O2 → 2H2O + 2S
यहाँ H2S ( हाइड्रोजन सल्फाइड ) गैस सल्फर S में ऑक्सीकृत हो जाती है ।
[0] | |||
CH3CH2OH | → | CH3CHO | + H2 |
एथेनॉल | एथेनैल |
एथेनॉल में हाइड्रोजन परमाणु की संख्या 6 है एवं बनने वाले उत्पाद एथनैल में हाइड्रोजन परमाणु की संख्या 4 है । अर्थात् यहाँ एथेनॉल का एथेनैल में ऑक्सीकरण होता है तथा हाइड्रोजन निकलती है ।
वे रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें हाइड्रोजन का योग होता है अपचयन कहलाती है ।
CH2 | Ni | CH3 | |
|| | + H2 | → | | |
CH2 | 473k / 100atm | CH3 | |
एथीन | एथेन |
H2 + Cl2 → 2HCl
यहाँ एथीन का एथेन में तथा क्लोरीन का HCl में अपचयन हो रहा है ।
यह आवश्यक नहीं है कि हमेशा अभिक्रियाओं में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीज़न भाग लें । अतः ऑक्सीकरण व अपचयन की परिभाषाओं को व्यापक रूप दिया गया ।
विद्युतधनी तत्वों के संयोग एवं वियोजन के आधार पर ऑक्सीकरण - अपचयन
वे अभिक्रियाएँ जिनमें पदार्थ से विद्युतधनी तत्व ( धनविधुती तत्व ) का निष्कासन होता है ऑक्सीकरण कहलाती है ।
2KI + Cl2 → 2KCl + I2
H2S + Cl2 → 2HCl + S
यहाँ पोटैशियम आयोडाइड ( KI ) का आयोडीन ( I2 ) में तथा H2S का सल्फर ( S ) में ऑक्सीकरण होता है । वे अभिक्रियाएँ जिनमें पदार्थ में विद्युतधनी तत्वों का योग होता है , अपचयन कहलाती है ।
Cl2 + Mg → Mg2
यहाँ क्लोरीन ( Cl2 ) का मैग्नीशियम क्लोराइड ( MgCl2 ) में अपचयन होता है ।
विद्युत ऋणी तत्वों के संयोग एवं वियोजन के आधार पर ऑक्सीकरण - अपचयन
वे अभिक्रियाएँ जिनमें पदार्थ विद्युतऋणी तत्व ( ऋण विद्युती तत्व ) से संयोग करता है , ऑक्सीकरण कहलाती है । Mg + Cl2 → MgCl2
यहाँ मैग्नीशियम ( Mg ) का अधिक विद्युतऋणी तत्व क्लोरीन ( Cl ) से संयोग के कारण ऑक्सीकरण हो रहा है । वे अभिक्रियाएँ जिसमें पदार्थ से ऋणविद्युती तत्व निकलता है , अपचयन कहलाती है ।
2FeCl3 + H2 → 2FeCl2 + 2HCl
यहाँ FeCl3 का अधिक ऋण विद्युती तत्व Cl के निकलने के कारण FeCl2 में अपचयन हो रहा है । इन सभी तथ्यों को एक साध क्रमबद्ध करें तो कह सकते है कि ऑक्सीकरण वे अभिक्रियाएँ है जिसमें किसी पदार्थ में ऑक्सीजन या ऋणविद्युती तत्व का योग होता है अथवा हाइड्रोजन या धनविद्युती तत्व का निष्कासन होता है ।
इसी प्रकार अपचयन वे अभिक्रियाएँ है जिनमें किसी पदार्थ में हाइड्रोजन या धनविद्युती तत्व का योग होता है अथवा ऑक्सीजन या ऋणविद्युती तत्व का निष्कासन होता है । ये सभी ऑक्सीकरण अपघटन की लम्बे समय से चली आ रही अवधारणाएँ है । वर्तमान में इन पदों को विस्तृत कर दिया गया है । ऑक्सीकरण अपचयन की इलेक्ट्रॉन के आदान - प्रदान के आधार पर व्याख्या की गई है ।
इलेक्ट्रॉन के आदान प्रदान के आधार पर ऑक्सीकरण - अपचयन
( a ) ऑक्सीकरण - ऐसी अभिक्रियाएँ जिसमें तत्व , परमाणु , आयन या अणु इलेक्ट्रॉन ( e- ) त्यागता है , ऑक्सीकरण कहलाती है ।
Na → Na+ + e-
Fe2+ → Fe3+
+ e-
2Cl- → Cl2 + 2e-
यहाँ सोडियम e- त्याग कर Na+ धनायन में फेरस ( Fe2+ ) आयन एक और e- त्याग कर ( Fe3+ ) फेरिक आयन में तथा क्लोराइड ( Cl- ) आयन e- त्याग कर उदासीन परमाणु में ऑक्सीकृत होता है । इन अभिक्रियाओं को देखने पर पता चलता है कि ऑक्सीकरण की क्रिया में उदासीन परमाणु धनायन बनाता है या धनायन पर आवेश बढ़ता है या ऋणायन पर आवेश में कमी होती है ।
( b ) अपचयन - ऐसी अभिक्रियाएँ जिसमें तत्व , परमाणु , आयन या अणु इलेक्ट्रॉन ( e- ) ग्रहण करता है , अपचयन कहलाती है |
Cl + e- → Cl-
MnO-4 + e- → MnO4-2
Mg+2 + 2e- → Mg
उपरोक्त अभिक्रियाओं को देखने से पता चलता है कि ये ऑक्सीकरण - अपचयन अर्द्धअभिक्रियाएँ हैं । एक पदार्थ द्वारा त्यागा जाता है तथा दूसरे के द्वारा ग्रहण किया जाता है । इन अभिक्रियाओं में एक पदार्थ ऑक्सीकृत होता है तथा दूसरा पदार्थ अपचयित । ये अभिक्रियाएँ साथ - साथ चलती है , अतः इन्हें रेडॉक्स ( Redox Reaction ) अभिक्रियाएँ या अपोपचय अभिक्रिया भी कहते है ।
ऑक्सीकरण | ||||||
| | ↓ | |||||
Zn | + | CuSO4 | → | ZnSO4 | + | Cu |
| | ↑ | |||||
अपचयन |
उपरोक्त अभिक्रिया में Zn का ZnSO4 में ऑक्सीकरण ( Zn → Zn+2 + 2e- ) तथा कॉपर सल्फेट का Cu में अपचयन ( Cu +2 + 2e- → Cu ) हो रहा है ।
अपचयन | ||||||
| | ↓ | |||||
Fe2O3 | + | 3CO | → | 2Fe | + | 3CO2 |
| | ↑ | |||||
ऑक्सीकरण |
इस अभिक्रिया में फेरिक ऑक्साइड ( Fe2O3 ) का आयरन में अपचयन तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड ( CO ) का CO2 में ऑक्सीकरण हो रहा है । यहाँ एक ही अभिक्रिया में एक पदार्थ का ऑक्सीकरण तथा दूसरे का अपचयन हो रहा है इसे ही रेडॉक्स अभिक्रिया कहते हैं ।
इन अभिक्रियाओं में जिस पदार्थ का ऑक्सीकरण होता है इलेक्ट्रॉन त्याग कर अन्य पदार्थ को अपचयित करने में मदद करता है अर्थात् अपचायक कहलाता है । जिस पदार्थ का अपचयन होता है वह इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर अन्य पदार्थ को ऑक्सीकृत करता है अतः ऑक्सीकारक कहलाता है । अर्थात् ,
अपचायक - इलेक्ट्रॉन दाता अभिकारक ,
ऑक्सीकारक - इलेक्ट्रॉन ग्राही अभिकारक होते है ।
जब अम्ल एवं क्षार अभिक्रिया करते हैं और लवण तथा जल बनता है तो इस अभिक्रिया को उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं । यहाँ अम्ल के हाइड्रोजन आयन ( H+ ) क्षार के हाइड्रॉक्सिल आयन ( OH- ) से अभिक्रिया करके जल का निर्माण करते है ।
अम्ल + क्षार → लवण + जल
HCl + NaOH → NaCl + H2O
समान सांद्रता के प्रबल अम्ल एवं प्रबल क्षार जब अभिक्रिया करते हैं तो विलयन की pH 7 होती है जबकि प्रबल अम्ल दुर्बल क्षार से अभिक्रिया करता है तो pH 7 से कम होती है ।
प्रबल क्षार जब दुर्बल अम्ल से अभिक्रिया करता है तो विलयन की pH 7 से अधिक होती है ।
इसको इस प्रकार से समझा जा सकता है जब अम्ल व क्षार मिलाने पर विलयन उदासीन होता है तो समान भार अम्ल व क्षार के मिलकर लवण बनाते है । अम्ल के द्वारा दिये गये एक मोल H+ आयन क्षार के एक मोल OH- आयन से क्रिया कर जल बनाते हैं और उदासीन हो जाते हैं । प्रबल अम्ल एवं प्रबल क्षार पूर्णतः आयनित होते है । अतः उदासीनीकरण की अभिक्रिया में बनने वाले सभी H+ एवं OH- आयन संयोजित होकर जल बना लेते है तथा विलयन की pH 7 हो जाती है ।HCl + NaOH → NaCl + H2O
H+ + Cl- + Na+ + OH- → Na+ + Cl- +
H2O
इस प्रकार कुल अभिक्रिया होती है
H+ + OH- → H2O
जबकि दुर्बल क्षार एवं प्रबल अग्लों के मध्य होने वाली उदासीनीकरण अभिक्रिया में दुर्बल क्षार पूर्णतः आयनित नहीं होते हैं , कुछ मात्रा में आणविक रूप में भी रहते हैं । अतः विलयन में अम्ल व क्षार के समान मोल लेने पर भी H+ आयनों की मात्रा OH- आयन की मात्रा से अधिक होती है इस प्रकार उदासीनीकरण अभिक्रिया के पश्चात् भी विलयन में H+ आयन उपस्थित होते है और विलयन की pH 7 से कम होती है ।
HCl + NH4OH → NH4Cl + H2O
यहाँ NH4OH दुर्बल क्षार है ।
इसी प्रकार से दुर्वल अम्ल एवं प्रवल क्षार की उदासीनीकरण अभिक्रिया में अम्ल पूर्णतया आयनित या वियोजित नहीं होता है तथा कुछ मात्रा में अवियोजित अवस्था में भी रहता है । अतः विलयन में अम्ल व क्षार के समान मोल लेने पर विलयन में OH- आयनों की अधिकता होती है अतः विलयन की pH 7 से अधिक होती है ।
CH3COOH | + NaOH → | CH3COONa | + NaOH |
एसीटिक अम्ल | सोडियम एसीटेट |
यहाँ एसीटिक अम्ल एक दुर्बल अम्ल है ।
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