एन्जाइम ( Enzymes )

एन्जाइम ( Enzymes )

तीन प्रकति के ऐसे कार्बनिक पदार्थ जो जीवित कोशिकाओं में जैव परक ( Bio - catalyst ) का कार्य करते हैं , एन्जाइम या प्रकिण्वक कहलाते हैं ।

एन्जाइम प्रोटीन युक्त ऐसे जैव उत्प्रेरक पदार्थ है , जो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जैव रासायनिक अभिक्रिया की दर को बढ़ाते हैं ।

एन्जाइम शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ In Yeast होता है । ( En = in , Zyme = Yeast )

जैव रसायन की वह शाखा जिसमें एन्जाइम का अध्ययन किया जाता है , प्रकिण्वकी ( Enzymology ) कहलाती है ।

कोशिकाओं में होने वाली संश्लेषणात्मक अभिक्रियाओं में ऊर्जा की आवश्यकता होती है , इन्हें उपचय अभिक्रियायें ( Anabolic pro cesses ) कहते हैं ।

कोशिकाओं में होने वाली विघटनात्मक अभिक्रियायें जिनमें ऊर्जा मुक्त होती है , उन्हें अपचय अभिक्रियायें ( Catabolic processes ) कहते हैं ।

कुहने ( Kuhne - Germany ) ने 1878 में एन्जाइम शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग यीस्ट विलयन के किण्वन के लिए किया था ।

बुकनर ( Buchner , 1897 ) ने सर्वप्रथम यीस्ट कोशिकाओं में जाइमेज ( Zymase ) ( प्रथम खोजा गया एन्जाइम ) को खोजा था ।

सह एन्जाइम ( Co - enzyme ) को फ्रिट्ज लिप - मैन ( Fritg Lip man ) ने खोजा ।

इमिल फिशर ( Emil Fisher ) ने एन्जाइम क्रियाविधि के लिए ताला कुंजी सिद्धान्त दिया था ।

सेक और अल्टमेन ( T . Cech and Altman ) अप्रोटीनी एन्जाइम ( RNA के उत्प्रेरकीय अणु ) जिसे राइबोजाइम ( Ribozyme ) भी कहते हैं , की खोज की ।

सभी एन्जाइम प्रोटीन होते हैं लेकिन यह आवश्यक नहीं कि सभी प्रोटीन एन्जाइम हो ।

RNA सम्बंधन ( Splicing ) में सहायक एन्जाइम राबोजाइम RNA का बना होता है ।

ऐसे एंजाइम जो केवल प्रोटीन के बने होते हैं , सरल एन्जाइम ( Simple enzymes ) कहलाते हैं ।

अधिकांश एन्जाइम्स में प्रोटीन के साथ एक अप्रोटीनी भाग भी जुड़ जाता है , तो इसे संयुग्मित एंजाइम या होलो एन्जाइम या पूर्ण एन्जाइम ( Tholoenzyme ) कहते हैं । प्रायः होलोएन्जाइम एंजाइम अणु की संरचना में निम्न दो भाग होते हैं -
( 1 ) प्रोटीन युक्त भाग - एपोएंजाइम ( Apoenzyme )
( 2 ) प्रोटीन रहित भाग या अप्रोटीनीय - सहकारक या कोफेक्टर ( Co factor )

प्रास्थेटिक समूह ( Prostheticgroup ) - जब एन्जाइम के एपोएन्जाइम ( प्रोटीन भाग ) से कार्बनिक प्रकृति का अप्रोटीन भाग ( सहकारक ) सघनता एवं दृढ़ता से जुड़ा रहता है तो ऐसे अप्रोटीन भाग ( सहकारक ) को प्रास्थेटिक समूह कहते हैं । उदाहरण - साइटोक्रोम तथा फ्लेवो प्रोटीन ।

सक्रिय कारक ( Activator ) — ये प्रायः धातु होते हैं तथा लवणों के आयन्स के रूप में कार्य करते हैं । अणु के मध्य सेतु ( ब्रिज ) निर्माण करना है । उदा . K , Fe , Cu , Mg , Zn , Mn , Ca .

सहएंजाइम ( Co - enzyme ) जब एन्जाइम के एपोएन्जाइम ( प्रोटीन भाग ) से अप्रोटीन भाग का सम्बन्ध ( जुड़ाव ) ढीला , आसानी से अलग होने वाला तथा पुनः संलग्न होने वाला होता है तो अप्रोटीन भाग को सहएन्जाइम ( Co - enzyme ) कहते हैं ।

एन्जाइमों के विशिष्ट गुण

  • केवल एक विशिष्ट एन्जाइम केवल एक ही रासायनिक अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है ।
  • जब एन्जाइम आधारी अणु के विशेष समावयवी रूप पर ही क्रियाशील होते है , इस गुण को त्रिविम विशिष्टता कहते है ।
  • एन्जाइम की उपयुक्त क्रिया के लिये है - 25°C - 35°C तक का तापक्रम सर्वाधिक प्रभाव कारी होता है । तापमान में 10°C वृद्धि करने पर अभिक्रिया की पर 2 - 3 गुना बढ़ जाती है ।
  • एन्जाइम के द्वारा होने वाली अभिक्रियाएं उत्क्रमणीय होती है ।
  • एन्जाइम अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित होकर रासायनिक क्रियाओं की दर को बढ़ा देते है ।
  • एन्जाइम के अणु कोलायड़ी रूप में पाये जाते है , कोलाइडी स्वरूप होने के कारण एन्जाइम्स अणु का सतह क्षेत्रफल बहुत अधिक हो जाने के कारण अभिक्रिया की दर काफी तीव्र होती है ।
  • आधारी पदार्थ की सान्द्रता बढ़ने पर एन्जाइम क्रिया की दर एक सीमा तक बढ़ती है तथा उसके पश्चात् स्थिर हो जाती है
  • कुछ रासायनिक यौगिक तथा धातु जैसे - Co , Ni , Mg , Mo आदि एन्जाइम क्रिया को त्वरित करते है ।
  • एन्जाइम जल के सम्पर्क में आने पर क्रियाशीलता को बढ़ाते है ।
  • एक विशेष pH की सीमा में एन्जाइम कार्य करते है एन्जाइम pH = 5.0 से 7.5 के मध्य दक्षता पूर्वक कार्य करते है ।
  • कुछ रासायनिक पदार्थ जीवधारियों के लिये विष का कार्य करते है व अभिक्रिया की दर को कम करते है , इन्हें एन्जाइम निरोधक कहलाते है ।

एन्जाइम क्रिया की विधि

प्रणाली को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है -
1 . एन्जाइम क्रियाधार जटिल का निर्माण
2 . सक्रियण ऊर्जा में कमी ।

एन्जाइम क्रियाधार जटिल ( या संकुल ) का निर्माण ( Formation of enzyme substarate complex = ESC ) - सभी प्रकार के एंजाइम अभिक्रिया में भाग लेने वाले क्रियाधारों से मिलकर एक अस्थायी यौगिक का निर्माण करते हैं , जिसे एन्जाइम क्रियाधार संकुल ( Enzyme substrate complex ) कहते हैं । कुछ समय बाद यह संकुल टूटकर उत्पाद बनाता है और एन्जाइम को पृथक कर देता है ।

प्रत्येक एंजाइम की सतह पर विशिष्ट प्रकार के स्थल पाये जाते हैं जहाँ पर क्रियाकारक जुड़ते हैं , इन स्थानों को सक्रिय स्थल ( Active Sites ) कहते हैं । जब क्रियाधार ( Substrate ) अणु एंजाइमों के इन स्थलों से जुड़ते हैं तो एंजाइम का आकार परिवर्तित हो जाता है ।

ताला - चाबी सिद्धान्त ( Lock & Key Theory ) यह सिद्धान्त इमिल फिशर ( Emil & Fisher ) ने 1898 में प्रतिपादित किया था । इस सिद्धान्त के अनुसार जिस प्रकार एक विशेष ताले को विशेष चाबी से ही खोला जा सकता है , ठीक उसी प्रकार एक विशेष क्रियाधार अणु एंजाइम के सक्रिय स्थल से बंध बना सकता है और परस्पर जुड़कर एंजाइम सब्स्ट्रेट काम्पलैक्स बना लेता है । बाद में ES काम्पलैक्स टूटकर उत्पाद व एन्जाइम में बदल जाता है । यहाँ पर क्रियाकारक या क्रियाधार चाबी की भाँति तथा एंजाइम के सक्रिय स्थल ताले की भाँति व्यवहार करते हैं ।

प्रेरित आसंजन सिद्धान्त ( Induced Fit Theory ) इस सिद्धान्त को कोशलैण्ड ( Koshland ) ने 1966 में प्रतिपादित किया था । इस सिद्धान्त के अनुसार एंजाइम की सतह पर मिलने वाले सक्रिय स्थल दृढ़ नहीं होते हैं अर्थात् इन स्थलों का आण्विक विन्यास परिवर्तनशील या लचीला ( flexible ) होता है । जैसे ही एंजाइम क्रियाधार अणु के संपर्क में आते हैं , एंजाइम के सक्रिय स्थल उनके अनुरूप होकर उनके साथ जुड़कर एन्जाइम सब्स्ट्रेट काम्पलैक्स बना लेते हैं । बाद में ES संकुल टूटकर उत्पाद बना लेता है और एन्जाइम को मुक्त कर देता है ।

इस सिद्धान्त के अनुसार एंजाइम के सक्रिय स्थल पर दो समूह पाये जाते हैं -
( 1 ) अवलम्बन समूह - ये क्रियाकारक को सक्रिय स्थल पर स्थिर करने का कार्य करते हैं ।
( 2 ) उत्प्रेरक समूह - ये क्रियाकारक को उत्पाद में बदलने का कार्य

न्यूनतम ऊर्जा का वह मान जो क्रियाधार अणुओं को अभिक्रिया में भाग लेने के लिए सक्रिय करता है , उसे सक्रियण ऊर्जा ( activation energy ) कहते हैं ।

अधिक तापमान पर ऊष्मीय विदोलन ( thermal agitation ) द्वारा अधिक अणुओं का सक्रियण होता है । परन्तु एन्जाइम की उपस्थिति में ऐसी अभिक्रियाएँ सामान्य ताप पर होती हैं क्योंकि एन्जाइम अभिकारक अणुओं की सक्रियण ऊर्जा को कम कर देते हैं ।

एन्जाइमों का वर्गीकरण ( Classification of Enzymes )

अन्तर्राष्ट्रीय जैव रसायन संघ ( IUB - International Union of Bio chemistry ) ने समग्र औपचारिक अभिक्रिया समीकरण ( Overall formal reaction equation ) के आधार पर एन्जाइमों को वर्गीकृत करने की सिफारिश की थी ।

एन्जाइम कमीशन ने प्रत्येक एन्जाइम को एक एक एन्जाइम कूट ( EC Enyme code ) की संख्या दी तथा सभी एन्जाइमों को 6 वर्गों में विभेदित किया ।

हाइड्रोलेजेज एन्जाइम छोटे अणुओं को जोड़कर बड़े आण्विक यौगिकों के निर्माण की उत्प्रेरित करते हैं तथा इस क्रिया में जल के अणु मुक्त होते हैं उदा , फ्यूमेरेज व इनोलेज आदि एन्जाइम ।

ऑक्सिडो रिडक्टेज ( Oxido - Reductase ) - ऐसे एन्जाइम्स जो कोशिका में होने वाली ऑक्सीकरण व अपचयन क्रियाओं में भाग लेते हैं , ऑक्सीडो - रिडक्टेज कहलाते हैं । ऑक्सीकरण - अपचयन अभिक्रिया के दौरान ये एन्जाइम क्रियाधारों में से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन को निकालने या जोड़ने की क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं । इन्हें निम्न उपवर्गों में बाँटा गया है -

( i ) ऑक्सिडेज ( Oxidases ) - ये एन्जाइम्स सबस्ट्रेट अणु से हाइड्रोजन हटाकर उसे ऑक्सीकृत करते हैं और ऑक्सीजन को अवकृत कर जल का निर्माण करते हैं । उदाहरण - साइटोक्रोम ऑक्सीडेज ।

( ii ) परऑक्सीडेज ( Peroxidases ) - ये एन्जाइम्स HO , को ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग करते हैं । उदाहरण - रिडक्टेज ।

( iii ) डीहाइड्रोजिनेजेज ( Dehydrogenases ) ये एंजाइम्स एक अणु से हाइड्रोजन को दूसरे अणु में स्थानान्तरित करने का कार्य करते हैं । उदाहरण - एल्कोहल डीहाइड्रोजिनेज ।

आइसोमेरेजेज ( Isomerases ) - ये एन्जाइम्स सबस्ट्रेट अणुओं में अन्तराआण्विक पुनर्विन्यास को उत्प्रेरित करते हैं अर्थात् ये सबस्ट्रेट अणु का समावयवी अणु बनाते हैं । जैसे फास्फोहेक्सो आइसोमिरेज ।

लाइजेज ( Lyases ) - ये एन्जाइम्स सब्स्ट्रेट अणु से बिना जल अपघटन किये सहसंयोजक बंध तोड़कर कुछ समूहों के हटाने की क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं । जैसे - हिस्टीडीन डिकार्बोक्सीलेज एवं एल्डोलेज ।

लाइगेजेज ( Ligases ) - ये एन्जाइम्स संघनन क्रिया द्वारा नये पदार्थ के संश्लेषण को प्रेरित करते हैं । इस क्रिया के लिए ATP की आवश्यकता होती है तथा दो यौगिकों को सहसंयोजक बंधों द्वारा जोड़ा जाता है । इन्हें सिन्थेटेज एन्जाइम्स के नाम से भी जाना जाता है । जैसे — C - C बंध निर्माण हेतु Acetyl - Co.A Carboxylase की आवश्यकता होती है । अन्य उदाहरण - पाइरुवेट कार्बोक्सीलेज , सिट्रेट सिन्थेटेज ।

महत्वपूर्ण तथ्य

ऑक्सीकरण व अपचयन अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने वाले एन्जाइम का वर्ग ऑक्सीडोरिडक्टेजेज है ।

एन्जाइम की खोज सर्वप्रथम एडवर्ड बुकनर ने की थी ।

सर्वप्रथम बुकनर ने यीस्ट कोशिकाओं में जायमेज एन्जाइम की खोज की ।

सर्वप्रथम जे . बी . सुमनर ( 1926 ) ने यूरिऐज एन्जाइम का विशुद्ध क्रिस्टलीय रूप प्राप्त किया ।

अप्रोटीनी एन्जाइम ( RNA के उत्प्रेरकीय अणु ) की अर्थात् राइबोजाइम की खोज सर्वप्रथम सेक एवं आल्टमेन ने की थी ।

प्रोस्थेटिक समूह - जब कार्बनिक प्रकृति का अप्रोटीन भाग एपोएन्जाइम से सघनता से व दृढ़तापूर्वक अनुबंधित रहता है तो उसे प्रोस्थेटिक समूह कहते हैं । उदा . साइटोक्रोम व फ्लेवोप्रोटीन ।

सह एन्जाइम - जब अप्रोटीन भाग एपोएन्जाइम से ढीले या आसानी से अलग होने योग्य व पुनः जुड़ने योग्य रूप से अनुबंधित रहता है तो इस भाग को सहएन्जाइम कहते हैं । उदा . NAD , NADP , FAD , CoA आदि ।

सक्रियक - जब एन्जाइम का अप्रोटीन भाग कोई अकार्बनिक प्रकृति का धातु आयन होता है तो उसे सक्रियक कहते हैं । उदा . Fe

सक्रिय स्थल - एन्जाइम के प्रोटीन भाग में पाये जाने वाले ऐसे एक या अधिक विशेष स्थलों को जहाँ आधारी अभिकारक जुड़ता है , उन्हें सक्रिय स्थल कहते हैं ।

एन्जाइम इष्टता - अधिकतर एंजाइम विशेष अवस्थाओं में ही सर्वोत्तम क्रियाशील दर्शाते हैं । जिसे एन्जाइम इष्टता कहते हैं ।

एन्जाइम क्रिया के लिए अनुकूल ताप 20°C से 35°C होता है ।

अनुकूल ताप की सीमा में प्रति 10°C तापक्रम में वृद्धि होने पर अभिक्रिया की दर में 2 से 2 ½ गुना तक वृद्धि हो जाती है ।

अधिकांश एन्जाइम 5.0 से 7.5 pH की परास में दक्षतापूर्वक कार्य करते हैं ।

प्रतिस्पर्धी निरोधक - प्रतिस्पर्धी ऐसे पदार्थ होते हैं जो जिनकी संरचना क्रियाधार अणओं मिलती है तथा जो एन्जाइम अणुओं के सक्रिय स्थलों से जुड़ कर क्रियाधार अणुओं से प्रतिस्पर्धा रखते हैं । उदा . मेलोनिक अम्ल , सक्सीनिक अम्ल का प्रतिस्पर्धी निरोधक होता है ।

अप्रतिस्पर्धी निरोधक या कोशिका आविष - वे पदार्थ जो एन्जाइम अणुओं से स्थायी रूप से जुड़कर उनमें संरचनात्मक परिवर्तन लाते हैं तथा एन्जाइम अणु को विकृत कर देते हैं , उन्हें अप्रतिस्पर्धी निरोधक कहते हैं । उदा . Pb+ + , Hg+ + , Ag+ +

एन्जाइम क्रियाविधि का प्रेरित आसंजन सिद्धान्त कोशलैण्ड ( 1966 ) ने प्रतिपादित किया था ।

सक्रियण ऊर्जा - किसी अभिक्रिया को प्रारंभ करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को सक्रियण ऊर्जा कहते हैं ।

एन्जाइम के नाम के अन्त में एज ( ase ) प्रत्यय डयूक्लॉक्स ( Duclawc , 1883 ) नामक वैज्ञानिक के प्रस्ताव के अनुसार लगाया जाता है ।

एन्जाइम कमीशन ने सभी एन्जाइमों को निम्न प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत किया -
1 . ऑक्सीडोरिडक्टेजेज
2 . ट्रांसफेरेजेज
3 . हाइड्रोलेजेज
4 . लायेजेज
5 . आइसोमरेजेज
6 . लाइगेजेज

एन्जाइम शब्द का प्रयोग सबसे पहले विली कुहने ने किया ।

सभी एन्जाइम रासायनिक रूप से प्रोटीन से बने होते है ।

क्रियाधार अणु की अपेक्षा एन्जाइम अणु का आकार बड़ा होता है ।

राइबोजाइम एन्जाइम RNA का बना होता है ।

दो यौगिकों को सहसंयोजक बन्धों द्वारा जोड़ने वाला अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने वाले एन्जाइमों को लाइगेजेज कहते है ।

IUB का पूरा नाम - International Union of Biochemistry

सेक एवं एल्टमेन ने राइबोजाइम एन्जाइम की खोज की ।

सरल एन्जाइम - ऐसे एन्जाइम जो केवल प्रोटीन के बने होते है उन्हें सरल एन्जाइम कहते है

संयुग्मित एन्जाइम - वे एन्जाइम जिनमें प्रोटीन के साथ एक अप्रोटीनी भाग भी जुड़ा होता है । उसे संयुग्मित एन्जाइम या होलो एन्जाइम या पूर्ण एन्जाइम कहते है । इनमें एपोएन्जाइम ( प्रोटीन भाग ) एवं सहकारक या कोफेक्टर ( अप्रोटीनी भाग ) होते है ।

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