जैव चिकित्सा तकनीकें _ Bio - Medical Technologies

Bio - Medical Technologies 12th Class Biology Notes

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में विभिन्न रोगों की जांच व निदान में कई प्रकार की विकसित तकनीकों का उपयोग किया जाता है । कई रोगों के निदान हेतु रक्त , मूत्र , कफ तथा मल परीक्षण किये जाते हैं ताकि रोग के उचित कारण व प्रकृति का निर्धारण कर उसकी समुचित चिकित्सा की जा सके ।

रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन का मापन हीमोग्लोबिनोमेट्री ( Haemoglobinometry ) कहलाता है । हीमोग्लोबिन रक्ताणुओं ( RBCs ) में पाया जाने वाला एक श्वसन वर्णक है ।

हीमोग्लोबिन का मापन हीमोग्लोबिनोमीटर ( Haemoglobinometer ) से किया जाता है । पारम्परिक विधि में साहली के हीमोग्लोबिनोमीटर ( Sahli's Haemoglobinometer ) का इस्तेमाल करते हैं जबकि उन्नत विधि में फोटोहीमोग्लोबिनोमीटर ( Photohaemoglobinometer ) या ऑटो ऐनालाइजर ( Autoanalyzer ) का उपयोग किया जाता है ।

हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा निम्नानुसार होती है -

आयु वर्गहीमोग्लोबिन ग्रा . / 100 मि.ली. रक्त
स्वस्थ व्यस्क पुरुष 15.5 ± 2.5
स्वस्थ वयस्क स्त्री 14 ± 2.5
बच्चे ( 3 माह ) 11.5 ± 2.5
बच्चे ( 3-6 साल )12 ± 1
बच्चे ( 10-12 साल ) 13 ± 1.5

सामान्य से कम हीमोग्लोबिन की मात्रा रक्ताल्पता रोग ( Anaemia ) का द्योतक है ।

कुल श्वेताणु गणना ( Total Leucocyte Count , TLC ) में W.B.C की संख्या कों गिना जाता है । रक्त में WBC की संख्या 6000 - 10000 प्रति घन मि.मी. होती है ।

श्वेताणुओं की गणना हेतु न्यूबॉर ( neubaurs ) के हीमोसाइटोमीटर ( Haemocytometer ) का प्रयोग किया जाता है ।

श्वेत रक्ताणुओं का सामान्य से अधिक होना श्वेताणु बहुलता ( Leucocytosis ) तथा सामान्य से कम होना श्वेताणुअल्पता या श्वेताणुन्यूनता ( Leucopenia ) कहलाता है ।
उदाहरणार्थ - रक्त कैंसर ( Leukemia ) में श्वेताणुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है जबकि टायफॉइड , तपैदिक , खसरा , डेंगू ज्वर , काला - अजर इत्यादि रोगों में संख्या घट जाती है ।

विभेदक श्वेताणु गणना ( Differential Leucocyte Count , DLC )

रक्त की इस जांच में भिन्न - भिन्न प्रकार की श्वेताणुओं का प्रतिशत ज्ञात किया जाता है । यह रक्त परीक्षण कुल श्वेताणु गणना से भी अधिक उपयोगी है क्योंकि विभिन्न रोगों में कुछ विशिष्ट प्रकार की WBC की संख्या में बढ़ोत्तरी अथवा कमी हो जाती है , अत : यह रोग निदान में महत्त्वपूर्ण है ।

स्वस्थ मनुष्य के रक्त में भिन्न - भिन्न प्रकार के श्वेताणुओं की सामान्य संख्या निम्नानुसार पायी जाती है -

  • न्यूट्रोफिल्स → 40 - 75 % ( 65 % )
  • लिम्फोसाइट्स → 24 - 45 % ( 26 % )
  • मोनोसाइट्स → 2 -10 % ( 6 % )
  • इओसिनोफिल्स → 0 - 6 % ( 2.8 ) %
  • बेसोफिल्स → 0 - 2 % ( 0.2 % )

WBC की गणना में असामान्यता निम्न लिखित रोगों का संकेत करती है -

श्वेताणु गणना में असामान्यता की प्रकृति संभावित रोग का संकेत
( i ) न्यूट्रोफिल्स की संख्या में वृद्धि सामान्य मवाद उत्पन्न करने वाला संक्रमण , प्रदाह क्रिया का संकेत ।
( ii ) इओसिनोफिल्स की संख्या में वृद्धि अतिसंवेदनशीलता या ऐलर्जी रोग तथा परजीवी संक्रमण होने का संकेत
( iii ) बेसोफिल्स की संख्या में वृद्धि चिकन पॉक्स रोग
( iv ) लिम्फोसाइट्स की संख्या में वृद्धि काली ( कुकर ) खांसी
( v ) मोनोसाइट्स की संख्या में वृद्धि क्षय ( ट्यूबरकुलोसिस ) रोग का संकेत |
( vi ) T , लिम्फोसाइट्स में अत्यधिक कमी एड्स रोग का संकेत

रक्त के रक्ताणुओं के अवसादन ( Settle ) होने की दर को रक्ताणु अवसादन दर ( ESR ) कहते हैं । इसके मापन की दो विधियाँ प्रचलित -
( i ) वेस्टरग्रेन विधि ( Westergren method )
( ii ) विस्ट्रोब विधि ( Wintrobe method )

स्वस्थ व्यक्ति के रक्त का ई.एस.आर. ( ESR ) का मान निम्नानुसार होता -
पुरुष - 0-22 मि.मी. प्रति घंटा
स्त्री - 0-29 मि.मी. प्रति घंटा

आजकल रक्त के विभिन्न जैव रासायनिक तथा संरचनात्मक परिमापकों जैसे कुल इरिथ्रोसाइट गणना , श्वेताणु गणना , रक्ताणुओं का आकार , हीमोग्लोबिन की मात्रा , ग्लूकोस की मात्रा , यूरिया , कोलेस्टेरॉल , एन्जाइम्स , प्रोटीन्स इत्यादि की जांच हेतु कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित विकसित यंत्र उपलब्ध है जो कि ऑटोऐनालाइजर कहलाते हैं । इनसे एक ही समय में कई परिमापकों का विश्लेषण संभव है ।

रक्त / प्लैमा सीरम का पैरामीटर उपयोगिता
1. रक्त शर्करा या रक्त ग्लूकोस ( Blood Sugar or Blood Glucose ) सामान्य से अधिक हाइपर ग्लाइसीमिया , मधुमेह रोग ) का संकेतक ( Indicative of Diabetes mellitus )
2. सीरम कालेस्टेरॉल ( Serum Cholesterol ) सामान्य से अधिक मात्रा एथेरोस्क्लेरोसिस ( Atherosclerosis ) , वृक सम्बंधी रोग , मधुमेह तथा मिक्सीडिमा ( Myxedema ) का संभावित संकेतक , सामान्य से कम मात्रा संक्रमण , रक्ताल्पता , हाइपर थाइरॉइडिज्म का सूचक ।
3. सीरम लैक्टिक डिहाइड्रोजिनेस आइसोएन्जाइम्स की जांच ( Ld₁ , Ld₂ , Ld₃ , Ld₄ ,Ld₅ ) LD₁ व LD₂ की अधिकता मायोकार्डियल इन्फारक्शन ( Myocardial LD . ) infaraction ) का सूचक LD₄ , व LD₅ की अधिकता हिपेटाइटिस रोग का सूचक
4. सीरम ग्लुटामिक ऑक्सेलोऐसीटिक ट्रान्सऐमीनेस ( = ऐस्पार्टेट ट्रान्सऐमीनेस ,( SGOT or AST ) एन्जाइम सामान्य व अधिक मात्रा मायोकार्डियल इन्फारक्शन तथा यकृत की असामान्यता का सूचक
5. सौरम ग्लूटामिक पायरुविक ट्रान्सऐमीनेस अथवा ऐलेनिन ट्रान्सऐमीनेस ( SGOT Or ALT ) सामान्य स्तर से अत्यधिक बढ़ा हुआ मान संक्रमण जनित हिपेटाइटिस , टॉक्सिक हिपेटाइटिस , परिसंचरणीय आघात ( Cireulatory shock ) का सूचक ।
6. रक्त यूरिया ( Blood Urea ) सामान्य से अधिक मात्रा नेफ्राइटिस ( वृक्क सम्बंधी असामान्यता ) का सूचक ।
7. सीरम बिलीरूबिन ( ( Serum Bilirubin ) सामान्य से अधिक मात्रा रक्त अपघटनी पीलिया ( Haemolytic jaundice ) तथा | पर्नीशियस रक्ताल्पता ( Perniciousanae का सूचक
8. एलाइजा परीक्षण ( ऐन्टीजन - ऐन्टीबॉडी प्रतिक्रिया पर आधारित ) संक्रामक रोगों जैसे एड्स , हिपेटाइटिस , रुबेला , थाइरॉइड अपसामान्यता तथा लैंगिक संचरित रोगों की जांच हेतु प्रयुक्त ।
9. विडाल परीक्षण सीरोलोजी घनात्मक विडाल परीक्षण परिणाम टायफॉइड । ( आन्त्रिक ज्वर ) का सूचक ।

ECG इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी ( Electrocardiography - ECG )

चिकित्सा विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है जिसके द्वारा हृदय की कार्यशील अवस्था ( Functioning or beating heart ) में तंत्रिकाओं तथा पेशियों द्वारा उत्पन्न विद्युतीय संकेतों ( Electrical signals ) का अध्ययन कर उनको रिकॉर्ड किया जाता है । इस कार्य में प्रयुक्त उपकरण इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ कहलाता है तथा विद्युत संकेतों के ग्राफीकल रिकॉर्ड को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम ( electrocardiogram- ECG ) कहते हैं

डॉपलर इकोकार्डियोग्राफी ( Doppler Echocardiography ) - इस तकनीक द्वारा हृदय से गुजरने वाले रक्त प्रवाह के वेग ( Velocity ) को अप्रत्यक्ष रूप ( Indirectly ) में मापा जा सकता है ।

EEG इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राफी ( Electro - encephalography )

इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राफी तकनीक में मस्तिष्क के विभिन्न भागों की विद्युतीय क्रिया ( Electrical activity ) का मापन कर उनको आवर्धित रूप में रिकॉर्ड किया जाता हैं । सैटन ( Satton ) ने 1875 में सर्वप्रथम उद्भासित ( Exposed ) मस्तिष्क में विद्युतीय सक्रियता की खोज की । सन् 1929 में हैंस बर्जर ( Hans Berger ) ने मस्तिष्क की यथास्थिति ( Intact brain ) में भी सर्वप्रथम ऐसी विद्युतीय सक्रियता का रिकॉर्ड ट्रेस करने में सफलता प्राप्त की । मस्तिष्क की विद्युतीय सक्रियता में माइक्रोवोल्ट के स्तर की क्षणजीवी ( Transient ) तरंगें प्राप्त होती हैं । जिनको अधिक स्पष्ट व सुग्राही बनाने हेतु रिकॉर्ड करने से पूर्व उन्हें आवर्धित ( Amplified ) किया जाता है । इस प्रकार जो रिकॉर्ड प्राप्त होता है उसे इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राम ( Electroencephalogram ) कहते हैं ।

CT Scan कम्प्यूटेड टोमोग्राफिक क्रमवीक्षण ( Computed Tomographic Scan - CT scan )

एक चिकित्सा विज्ञान की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तकनीक हैं जिसमें ( X - rays ) के प्रयोग को कम्प्यूटर तकनीकी के साथ एक्स किरणों संयोजित करते हुए शरीर के किसी भाग का द्विविमीय अथवा त्रिविमीय ( Two or three dimensional ) अनुप्रस्थ काट ( Cross sectioned ) का चित्र ( Image ) प्राप्त किया जा सकता है । इस चित्र में समस्त अंग अलग - अलग स्पष्ट दिखाई देते हैं । इस तकनीक का विकास ब्रिटेन के . भौतिक विज्ञानी गॉडफ्रे हॉन्सफील्ड ( Godfrey lounsfield ) द्वारा 1968 में किया गया । इन्हें इस खोज के लिये 1979 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।

MRI मैग्रेटिक रेजोनेन्स ईमेजिंग ( Magnetic Resonance Imaging - MRI )

एम . आर . आई . तकनीक की खोज का श्रेय फेलिक्स ब्लॉक ( Felix Bloch ) एवं एडवर्ड एम . परसेल ( Edward M. Purcell ) को जाता है , जिन्हें इसके लिये 1952 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । चिकित्सा विज्ञान में इसका उपयोग रेमण्ड दैमेडियन ( Raymond Damadian ) द्वारा प्रारम्भ किया गया । यह सी.टी. स्कैन से भी अधिक श्रेष्ठ तथा निरापद परीक्षण तकनीक है जिसमें मरीज को किसी भी तरह के आयनकारी विकिरणों जैसे X- किरणों से उद्भासित नहीं किया जाता है । इस विधि से अंगों या ऊतकों के अत्यधिक स्पष्ट त्रिविमीय चित्र प्राप्त होते हैं ।

एम.आई.आई तकनीक नाभिकीय मैग्रेटिक रेजोनेन्स के सिद्धान्त पर कार्य करती है ।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में विभिन्न रोगों के निदान में कई प्रकार की विकसित तकनीकों का प्रयोग किया जाता है ।

रक्त जांच द्वारा शारीरिक व कार्यिकीय अवस्था तथा असामान्यता का पता लगाया जा सकता है ।

रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन का मापन हीमोग्लोबिनोमीटर द्वारा किया जाता है । सामान्य मात्रा से कम हीमोग्लोबिन की मात्रा रक्ताल्पता रोग की सूचक है ।

रक्त कोशिकाओं ( रक्ताणुओं कुल श्वेताणुओं ) की गणना न्यूबॉर हीमोसाइटोमीटर द्वारा की जाती है । विभेदक श्वेताणु गणना ( DLC ) द्वारा भिन्न - भिन्न प्रकार के श्वेताणुओं की प्रतिशत संख्या की गणना की जाती है ।

रक्ताणुओं ( RBCs ) के अवसादन होने की दर रक्ताणु अवसादन दर ( ESR ) कहलाती है । इसे वेस्टरग्रेन तथा विन्ट्रोबविधि द्वारा ज्ञात करते हैं

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी ( ECG ) द्वारा हृदय की कार्यशील अवस्था में तंत्रिकाओं तथा पेशियों द्वारा उत्पन्न विद्युतीय संकेतों को रिकॉर्ड किया जाता है । इसके द्वारा हृदय संबंधी रोगों का निदान किया जाता है ।

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी ( ECG ) द्वारा हृदय की कार्यशील अवस्था में तंत्रिकाओं तथा पेशियों द्वारा उत्पन्न विद्युतीय संकेतों को रिकॉर्ड किया जाता है । इसके द्वारा हृदय संबंधी रोगों का निदान किया जाता है ।

इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राफी ( EEG ) द्वारा मस्तिष्क के विभिन्न भागों की विद्युतीय क्रिया का मापन कर , रिकार्ड किया जाता है । यह मस्तिष्क सम्बन्धी असामान्यताओं के निदान में सहायक है ।

कम्प्यूटेड टोमोग्राफिक क्रमवीक्षण ( CT Scan ) में X- किरणों एवं कम्प्यूटर तकनीकी को संयोजित करते हुए शरीर के किसी भाग का द्विविमीय या त्रिविमीय अनुप्रस्थ काट चित्रित किया जा सकता है । यह मस्तिष्क , मेरुरज्जु , छाती , उदर इत्यादि से सम्बन्धित रोगों के निदान में सहायक होती है ।

मैग्रेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग ( MRI ) सी.टी. स्कैन से अधिक श्रेष्ठ तथा निरापद तकनीक हैं । जिसमें मरीज को आयनकारी विकिरणों का खतरा नहीं होता है । इस तकनीक से किसी भी तल में स्पष्ट व उत्कृष्ट चित्र प्राप्त हो सकते हैं । मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु की जांच में यह विधि काफी उपयोगी है ।

पराध्वनि स्कैनिक ( सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउण्ड स्कैनिंग ) में अत्यधिक उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को प्रयुक्त कर उनकी शरीर ऊतकों द्वारा परावर्तित प्रतिध्वनियों को विद्युतीय संकेतों में बदलकर शरीर के अंगों का द्विविमीय चित्र प्राप्त करते हैं । यह प्रसव व प्रसूति संबंधी गड़बड़ियों तथा गर्भस्थ शिशु की जांच में अधिक उपयोगी है ।

रेडियो इम्यूनो ऐसे ( RIA ) तकनीक में रेडियो सक्रिय आइसोटोप पदार्थों का उपयोग सूचक के रूप में करते हुए ऐन्टीजन ऐन्टीबॉडी प्रतिक्रिया के सिद्धान्त पर किसी महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक घटक की अति सूक्ष्म मात्रा का मापन किया जा सकता है ।

महत्वपूर्ण प्रश्न

ESR ज्ञात करने के लिए किस विधि का उपयोग सामान्यतया किया जाता है ? वेस्टरग्रेन विधि ( Westergren method )

सामान्य ESR कितना होता है ? पुरुष → 0-22 तथा स्त्री - 0-29

सामान्यतय DLC में किसकी गणना नहीं की जाती है ? सामान्य विभेदक श्वेताणु गणना में T₄ लिम्फोसाइट्स की गणना नहीं की जाती है ।

स्वस्थ स्त्री व पुरुष में हीमोग्लोबिन कितना होता है ? पुरुष = 14-16 gm % स्त्री - 12-14 gm %

रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन का मापन किसके द्वारा किया जाता है ? साहली के हीमोग्लोबिनोमीटर ( Shali's Haemoglobinometer ) का इस्तेमाल करते हैं ।

साहली हीमोग्लोबिनोमीटर में कौनसे अम्ल का तथा किस सान्द्रता में उपयोग किया जाता है ? N HCl ; N/10 HCl

TLC , DLC तथा ESR का पूरा रूप लिखें । ( i ) TLCD Total Leucocyte count
( ii ) DLCDDifferential leucocyte count
( iii ) ESR = Erythrocyte sedimentation rate

सबसे कम तथा सर्वाधिक पाये जाने वाली WBC के नाम लिखें । सबसे कम बेसोफिल ( 0.2 % )
सर्वाधिक न्यूट्रोफिल ( 65 % )

सीरम बिलिरूबिन की अधिकता किस का सूचक है ? हीमोलाइटिक पीलिया तथा पर्नीशियस एनीमिया ।

विडाल परीक्षण ( widal test ) किस रोग को निदान के लिए किया जाता है ? टायफाइड ( Typloid )

रक्त में यूरिया की अधिकता किसका सूचक है ? वृक्क सम्बन्धी असामान्यता का ।

EEC से प्राप्त मस्तिष्क क्रिया का रिकॉर्ड क्या कहलाता है ? इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राम ( Electroencephalogram )

SQUID का पूरा नाम लिखें । Super Conducting Quantum Interference Device .

EEG किन रोगों के निदान में सहायक है ? मस्तिष्क के अर्बुद ( Tumours ) मिर्गी रोग ( Epilepsy ) , एनसिफेलाइटिस ( Encephalitis ) आदि के निदान में सहायक हैं ।

CT Scan तकनीक का विकास किसने किया । ब्रिटेन के भौतिक विज्ञानी गॉडफ्रे हॉन्सफील्ड ( Godfrey Hounsfield ) द्वारा 1968 में किया गया ।

फेलिक्स ब्लॉक ( Felix Bloch ) एवं एडवर्ड एम . परसेल ( Edward M. Purcell ) को किस खोज के लिए 1952 का नोबेल पुरस्कार दिया गया । एम.आर.आई तकनीक की खोज के लिए ।

सोनोग्राफी में कौनसी ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है । 20KHz आवृत्ति की पराश्रव्य ( Ultrosonic ) ध्वनि का ।

अन्तःस्रावी तंत्र के विकारों के निदान में किस तकनीक का उपयोग किया जाता है ? रेडियो प्रतिरक्षी आमापन ( RIA )

मस्तिष्क मृत्यु ( Brain death ) के निर्धारण में कौनसी तकनीक उपयोगी है ? EEG ( इलेक्ट्रोएनसिफेलोग्राफी )

ECG के द्वारा किन रोगों का निदान किया जाता है ? ई.सी.जी. से हृदय धमनी सम्बन्धी रोग ( Coronary artery dis ease ) , हृदयघनाग्रात ( कोरोनरी थ्रोम्बोसिस ) , हृदयावस्थीशूल ( पेरीकार्डाइटिस ) , हृदयपेशीरुग्णता ( कार्डियोमायोपेथी ) , मध्य हृदयपेशी शूल ( मायोकार्डाइटिस ) इत्यादि का निदान किया जाता है ।

मेरूरज्जू से सम्बन्धित रोगों के निदान की कौन सी पद्धति है ?मेरु रज्जु ( Spinal cord ) से सम्बन्धित असामान्यताओं का निदान मैग्रेटोएनसिफेलोग्राफी ( Magnetoen - cephalography ) द्वारा किया जा सकता है ।

कुल श्वेताणु गणना ( टी.एल.सी. ) किसके द्वारा की जाती है ? ' TLC की गणना हेतु न्यूबॉर ( Neubaurs ) के हीमोसाइटोमीटर ( Haemocytometer ) के द्वारा की जाती है ।

ल्यूकोसाइटोसिस क्या है ? श्वेत रक्ताणुओं का सामान्य से अधिक होना श्वेताणु बहुलता ( Leucocytosis )

ई.एस.आर. का मान किन रोगों में बढ़ जाता है । कई प्रकार की जीर्ण रोग अवस्थाओं ( Chronic diseases ) जैसे तपैदिक तथा प्रदाह क्रिया रोगों जैसे यूमेटॉइड आर्धाइटिस , मल्टीपल माइलोमा अथवा अर्बुद , लसीकाभ अर्बुद इत्यादि में ई.एस.आर.का मान बढ़ जाता है

हृदय स्पंदन को रिकॉर्ड करने वाले यंत्र का नाम लिखिये । स्टेथोस्कोप ( Stethoscope )

ई.ई. जी . शरीर के किस अंग के निदान से संबंधित है ? मस्तिष्क के विभिन्न भागों का ।

एम.आर.आई. में x- किरणों के स्थान पर किसका प्रयोग किया जाता है ? MRI में X - rays के स्थान पर अत्यधिक प्रबल क्षेत्र तथा रेडियो तरंगों के वातावरण में उत्पन्न हाइड्रोजन परमाणुओं के केन्द्रकों ( Nuclei ) के विद्युत आवेश व लघु चुम्बकीय गुणों को उपयोग में लाया जाता है ।

सोनोग्राफी में किसके क्रिस्टल प्रयुक्त होते हैं ? सोनोग्राफी में लैड जिर्कोनेट ( Lead zirconate ) नामक पदार्थ के क्रिस्टल रखे जाते हैं ।

आर.आई ए . में सूचक का कार्य कौन करता है ? RIA में रेडियो आइसोटोप पदार्थ का उपयोग सूचक के रूप में होता है ।

सामान्यतः रक्त में श्वेताणुओं की संख्या प्रति घन मि.मी. कितनी होती है ? 5000-10,000 प्रतिघन मिमी .

डॉप्लर इकोकार्डियोग्राफी तकनीक का किसमें उपयोग किया जाता है ? हृदय से गुजरने वाले रक्त प्रवाह के वेग को अप्रत्यक्ष रूप में मापने

उस युक्ति का नाम लिखिए जिसके द्वारा अल्ट्रासाउण्ट तरंगों के प्रयोग द्वारा हृदय की संरचना के प्रतिबिम्ब प्राप्त किये जा सकते हैं । इकोकार्डियोग्राफी ।

CT Scan तकनीक के सैद्धान्तिक आधार की विवेचना किए भारतीय वैज्ञानिक ने प्रस्तुत की ? श्री गोपालसमुद्रम एन . रामाचन्द्रन ने ।

सोनोग्राम ( Sonogram ) किसे कहते हैं ? सोनोग्राफी द्वारा पर्दे पर प्रदर्शित प्रतिबिम्बों के फोटों को सोनोग्राम कहते हैं ।

RIA ( Radio - Immuno Assay ) की खोज किसने की ? रोसेलिन एवं येलो ने ।

सी.टी स्केन में कौनसी विकिरणों का प्रयोग किया जाता है ? X- किरणों को ।

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