किसी राज्य में नागरिकता का मूल स्वरूप उस राज्य और समाज के साथ व्यक्ति के सामाजिक और राजनीतिक संबंधों के स्वरूप द्वारा निर्धारित होता है। व्यक्ति को अपने सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों, कत्तव्यों और दायित्वों का बोध होता है और यही बोध उसे उस राज्य की नागरिकता का अहसास कराता है।
नागरिकता एक राजनीतिक समुदाय की पूर्ण व समान सदस्यता है। समकालीन विश्व में राष्ट्रों ने अपने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान के साथ-साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किये हैं जिनके आधार पर कोई व्यक्ति भारतीय, रूसी या जापानी कहा जाता है। इन महत्वपूर्ण अधिकारों में मताधिकार अभिव्यक्ति या आस्था की आजादी व सामाजिक-आर्थिक अधिकार शामिल है। सम्पूर्ण और समान सदस्यता का अर्थ है कि नागरिकों को देश में जहां चाहे पढ़ने रहने व काम करने की समान अधिकार है। आज भीतरी व बाहरी के झगड़े ने कुछ लोगों से उनका यह अधिकार छीन रखा है। ऐसे विवादों का समाधान बल प्रयोग के बजाय संधि वार्ता और विचार-विमर्श से किया जाना चाहिये ।
समान नागरिकता की अवधारणा का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार व सुरक्षा प्रदान करना सरकारी नीतियों का मार्गदर्शक सिद्धांत हो। नीतियाँ तैयार करते समय लोगों की विभिन्न जरूरतों व दावों का ध्यान रखा जाना चाहिए। भारतीय संविधान विविधतापूर्ण समाज को समायोजित किया जिनमें अनुसूचित जातियाँ, जनजातियाँ, विभिन्न समुदाय, अधिकारों से वंचित महिलाओं आदि को पूर्ण व समान नागरिकता देने का प्रयास किया है।
नागरिकता का अर्थ
नागरिकता किसी व्यक्ति का किसी राजनैतिक समुदाय के साथ संबंधों का ही नाम है। यह ऐसे समुदायों की पूर्ण और समान सदस्यता का ही प्रतीक है। नागरिक शब्द से अभिप्राय है- वह व्यक्ति, जिसे राज्य की ओर से नागरिक व राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं और जिसे राज्य के प्रति कुछ कर्त्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है। इसके विपरीत, विदेशी वे व्यक्ति होते हैं जो किसी राज्य में स्थायी अथवा अस्थायी रूप से निवास करते हैं, लेकिन वे उस राज्य के नागरिक नहीं होते। उदाहरण के लिए, हजारों भारतीय श्रीलंका और दक्षिणी अफ्रीका में जाकर वहां बस गए हैं। इनमें से बहुत से लोगों को वहां की सरकार ने नागरिकता के अधिकार प्रदान कर दिए हैं, किन्तु फिर भी वहां वे विदेशी ही माने जाते हैं। वे वहां पीढ़ियों से रह रहे हैं, परन्तु जब तक वहां की सरकार उन्हें नागरिकता प्रदान नहीं करती, वे वहां के नागरिक नहीं माने जाएंगे। नागरिकों की भांति विदेशी भी कई तरह के अधिकारों के हकदार होते हैं। उनके जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा करना राज्य का कर्त्तव्य होता है।
नागरिक की परिभाषाएँ
प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तू ने नागरिक की परिभाषा इन शब्दों में की थी, “ एक नागरिक वह है, जिसने राज्य के शासन में कुछ भाग लिया हो और जो राज्य द्वारा प्रदान किए गए सम्मान का उपभोग कर सके।”
भले ही तत्कालीन परिस्थितियों में अरस्तु की उपर्युक्त परिभाषा सटीक रही हो, लेकिन अरस्तू की यह परिभाषा आधुनिक काल में अपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि आज नगर - राज्यों का स्थान विशाल राज्यों ने ले लिया है। फलतः 'नागरिक' शब्द का अर्थ भी बहुत अधिक व्यापक हो गया है। आधुनिक विद्वानों ने 'नागरिक' शब्द की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी है।
लॉस्की के अनुसार, “ नागरिक केवल समाज का एक सदस्य ही नहीं है, वरन् वह कुछ कर्त्तव्यों का यान्त्रिक रूप से पालनकर्ता तथा आदेशों का बौद्धिक रूप से ग्रहणकर्ता भी है।”
गैटिल के अनुसार, “ नागरिक समाज के वे सदस्य हैं, जो कुछ कर्त्तव्यों द्वारा समाज से बँधे रहते हैं, जो उसके प्रभुत्व को मानते हैं और उससे समान रूप से लाभ उठाते हैं। ”
सीले के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहते हैं, जो राज्य के प्रति भक्ति रखता हो, उसे सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों और जन सेवा की भावना से प्रेरित हो।”
नागरिक और विदेशी में अन्तर
भारत के नागरिक
भारत का संविधान पूरे भारत वर्ष के लिए एकल नागरिकता की व्यवस्था करता है। प्रत्येक व्यक्ति जो संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) भारत के अधिकार क्षेत्र में निवास करता था और (क) जिसका जन्म भारत में हुआ है या (ख) उसके माता पिता में से एक भारत में जन्म लिया हो या (ग) जो कम-से-कम पांच वर्षों तक साधारणत: भारत में रहा है, वह भारत का नागरिक हो गया। नागरिकता अधिनियम, 1955 संविधान लागू होने के बाद भारतीय नागरिकता की प्राप्ति, निर्धारण और रद्द करने की संबंध में है।
संविधान के अनुच्छेद 5 से 8 तक भारत की नागरिकता के संबंध में व्यवस्थाएँ दी गई हैं तथा अनुच्छेद 9, 10 और 11 में भी इस संबंध में विशेष प्रावधान दिए गए हैं-
1. अनुच्छेद 5 ( क ) : इस अनुच्छेद के अनुसार वह व्यक्ति, जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और जो भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा है चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो, भारत का नागरिक है।
2.अनुच्छेद 5 (ख) और (ग) : वह व्यक्ति, जिसके माता या पिता में से कोई भी भारत में जन्मा था या संविधान के लागू होने के ठीक पाँच वर्ष पूर्व से मामूली तौर से भारत के राज्यक्षेत्र का निवासी रहा हो, भारत का नागरिक होगा।
3. अनुच्छेद 6: अनुच्छेद 6 के अनुसार ऐसा व्यक्ति, जो इस समय (26 जनवरी 1950) पाकिस्तानी राज्यक्षेत्र के अंतर्गत है, ने भारत में प्रव्रजन किया है, भारत का नागरिक समझा जाएगा।
(क) वह या उसके माता या पिता अथवा पितामह या मातामह में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियम) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था।
(ख) (i) वह व्यक्ति जिसने 19 जुलाई, 1948 से पूर्व ऐसा प्रव्रजन किया है और वह उस तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है।
(ii) वह व्यक्ति जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् ऐसा प्रव्रजन किया हो और नागरिकता प्राप्ति के प्रयोजन के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उसे भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया हो।
(iii) किन्तु वह व्यक्ति, इस प्रकार पंजीकृत नहीं किया जाएगा जो नागरिकता के अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले न्यूनतम छह मास तक भारत राज्य क्षेत्र का निवासी नहीं रहा हो।
4. अनुच्छेद 7: अनुच्छेद 7 के अनुसार वह व्यक्ति, जो 1 मार्च, 1947 के पश्चात् पाकिस्तान से आव्रजन होकर भारत आया है और उसने अनुच्छेद 6 (ख) के अधीन अपने आपको पंजीकृत करा लिया हो.. भारत का नागरिक होगा।
5. अनुच्छेद 8 : वह व्यक्ति, जो स्वयं या जिसके माता-पिता या पितामह 1935 के भारत शासन अधिनियम में परिभाषित प्रावधान के अनुसार भारत में जन्मा हो या था, किन्तु जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में मामूली तौर से निवास कर रहा है, विहित रूप में भारत के कौंसली या राजनयिक प्रतिनिधि को आवेदन करने पर भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत किया जा सकेगा।
6. अनुच्छेद 9 : यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है, तो वह भारत का नागरिक नहीं होगा।
7. अनुच्छेद 10: प्रत्येक वह व्यक्ति, जो नागरिकता विधि के उपबन्धों के अधीन नागरिक है, वह संसद द्वारा बनाई विधियों के अन्तर्गत भारत का नागरिक बना रहेगा।
इस अनुच्छेद के अनुसार, भारतीय संसद को नागरिकता के अधिकार को विधि द्वारा विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है संसद का यह अधिकार नागरिकता प्राप्ति से लेकर नागरिकता समाप्ति तक के सभी विषयों से संबंधित है।
नागरिकता अधिनियम, 1955
संविधान के अधीन अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए भारतीय संसद ने 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के अनुसार निम्न प्रकार से भारत की नागरिकता अर्जित की जा सकती है-
1. जन्म द्वारा नागरिकता
वह व्यक्ति, जिसका जन्म भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् हुआ हो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, किन्तु नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने के पश्चात् भारत में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति तब भारत का नागरिक होगा, जबकि उसके माता या पिता में से कोई भारत का नागरिक हो ।
2. आव्रजन द्वारा नागरिकता
26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् भारत के बाहर पैदा होने वाले व्यक्ति को आव्रजन द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, यदि उसके माता-पिता में से कोई उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हैं। भारतीय संविधान में नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 के आधार पर माता की नागरिकता के आधार पर बच्चे को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता
भारतीय मूल के ऐसे व्यक्ति, जो भारतीय नागरिकता पंजीकरण करने से पहले कम-से-कम छह मास तक या पाँच वर्ष तक मामूली तौर पर भारत के नागरिक रहे हों तथा वे स्त्रियाँ, जिनका विवाह भारत के किसी नागरिक के साथ हुआ हो, भारत के नागरिक होंगे। भारतीय नागरिकों के अल्पवयस्क बच्चे तथा राष्ट्रमंडल के राज्यों के तथा आयरलैंड गणराज्य के वयस्क और स्वस्थ्य बच्चे भी भारत के नागरिक होंगे।
4. देशीयकरण द्वारा नागरिकता
कोई विदेशी व्यक्ति, देशीयकरण के लिए भारत सरकार को आवेदन करके भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकेगा। इसके लिए उसे निम्न शर्तें पूरी करनी होंगी:
(क) वह व्यक्ति, जो वयस्क हो चुका हो तथा प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं हो, तो वह भारत सरकार को नागरिकता के लिए आवेदन पत्र दे सकता है।
(ख) केन्द्रीय सरकार भी कुछ शर्तों की संतुष्टि के आधार पर उसे देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र देगी, जैसे-
- वह सच्चरित्र व्यक्ति हो ।
- वह राजनिष्ठा की शपथ ग्रहण करे।
- उसे भारतीय संविधान में उल्लिखित किसी भी एक भारतीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान हो।
- उस व्यक्ति ने अपने देश की नागरिकता का त्याग कर दिया हो तथा इस बात की सूचना केन्द्रीय सरकार को उपलब्ध करवाई हो।
- वह ऐसे किसी देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीयों को देशीयकरण द्वारा नागरिकता दिए जाने पर रोक हो ।
- देशीयकरण के लिए आवेदन से पूर्व 12 वर्ष तक भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो। इस संबंध में केन्द्रीय सरकार यदि उचित समझे तो इस अवधि को घटा सकती है।
- उक्त 12 वर्षों के पहले के कुल सात वर्षों में से कम-से-कम चार वर्षों तक भारत में या भारत सरकार की सेवा में रहा हो।
(ग) यदि कोई व्यक्ति विज्ञान, कला, साहित्य, विश्व शांति, दर्शन अथवा मानव विकास के क्षेत्र में विशेष कार्य कर चुका हो तो उसे बिना किसी शर्त को पूर्ण किए भी देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
5. राज्यक्षेत्र में विलयन से प्राप्त नागरिकता
किसी अन्य राज्य क्षेत्र के भारत में मिल जाने पर उस राज्यक्षेत्र के नागरिकों को भारत सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट करने पर भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
भारतीय नागरिकता का स्थगन
जिस प्रकार कोई व्यक्ति नागरिकता प्राप्त कर सकता है, इसके लिए उसे कुछ निश्चित नियम एवं शर्तें पूरी करनी होती हैं उसी प्रकार कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की नागरिकता समाप्त भी हो सकती है। निम्नलिखित परिस्थितियों में नागरिकता का लोप हो सकता है-
परित्याग
परित्याग एक स्वैच्छिक कार्य है, जिसके तहत् कोई व्यक्ति किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता धारण करने के लिए भारत की नागरिकता स्वेच्छा से छोड़ सकता है।
पर्यवास
पर्यवास, विधि के द्वारा होता कोई व्यक्ति किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता ग्रहण करता है वैसे ही उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है।
वंचित किया जाना
यदि भारत सरकार को इस बात का विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति ने भारत की नागरिकता कपटता से अर्जित की है या उसने अपने आप को भारतीय संविधान के प्रति अभक्त या अप्रतिपूर्ण प्रदर्शित किया है तो भारत सरकार उसे भारत की नागरिकता से वंचित कर सकती है।
विवाह द्वारा
यदि कोई स्त्री या पुरुष किसी अन्य देश के स्त्री या पुरुष के साथ विवाह कर लेते हैं तो उन्हें उस देश की नागरिकता स्वयं ही प्राप्त हो जाती है तथा भारत की नागरिकता समाप्त हो जाती है।
राष्ट्र विरोधी गतिविधियों द्वारा
यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। फौज से निष्काषित होने पर तथा देशद्रोह के मामलों में पकड़े जाने और सजा पाने आदि के मामलों में भी उस व्यक्ति की नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।
विदेश गमन
यदि कोई व्यक्ति विदेश में नौकरी करने जाता है और एक निश्चित अवधि के दौरान वापिस देश नहीं लौटता तो भी उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
पागलपन, फ़कीरी, संन्यास आदि के कारण
यदि कोई व्यक्ति पागल हो जाता है तो भी वह अपनी नागरिकता खो बैठता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति फ़कीरी, संन्यास आदि ग्रहण कर लेता है तो भी उसकी नागरिकता का लोप हो जाता है।
नागरिकता भारतीय संविधान के मूल में है। संविधान 'नागरिक' शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन अनुच्छेद-5 से लेकर 11 तक में उन व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जो नागरिकता के हकदार हैं। अनुच्छेद-11 संसद को कानून के जरिए नागरिकता के नियमन का अधिकार देता है और इसलिए 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया गया। अब तक इस अधिनियम में चार बार यानी 1986. 2003, 2005, 2015 में संशोधन किया जा चुका है। हालिया विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है और राज्यसभा में लंबित है। इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई, लेकिन अदालत ने कहा कि अभी इसकी संवैधानिकता की जांच करना जल्दबाजी होगी।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986
नागरिकता अधिनियम, 1955 में परिवर्तन कर नागरिकता संबंधी उपबंध को 1986 में संशोधित किया गया। उस संशोधित अधिनियम में नागरिकता का प्रावधान इस प्रकार किया गया है-
- भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति यदि भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होना चाहता है, तो उसे भारत में लगातार पांच वर्षों तक रहने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। इसके पूर्व यह अवधि मात्र छह मास की थी।
- किसी भी व्यक्ति का जन्म भारत में हो, उसे इस आधार पर भारतीय नागरिकता स्वतः प्रदान नहीं की जा सकती। जन्म के आधार पर मात्र उन्हीं लोगों को नागरिकता प्रदान की जा सकती है जिनके माता-पिता में से कोई एक पहले से ही भारत का नागरिक रहा हो । इससे पूर्व के अधिनियम में मात्र जन्म लेने से ही स्वतः नागरिकता प्राप्त होने का प्रावधान था।
- प्रवासी के रूप में रहने वाले विदेशी व्यक्ति के लिए देशीयकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के लिए भारत में निवास करने की जो शर्तें पूर्ववत् पांच वर्ष की थीं अब इस संशोधन द्वारा निवास करने की अवधि में वृद्धि करके दस वर्ष कर दी गयी। इस संशोधन अधिनियम के पश्चात् भारतीय पुरुष से विवाह करने वाली विदेशी महिला को नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992
संसद द्वारा 1992 में सर्वसम्मति से नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई कि भारत से बाहर जन्म लेने वाले बच्चे को यदि उसकी मां भारत की नागरिक है, तो भारत की नागरिकता प्राप्त होगी। ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भारत से बाहर पैदा होने वाले बच्चे को केवल उसी दशा में भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो। इस अधिनियम द्वारा बच्चे के माता और पिता दोनों को ही समान दर्जा प्रदान किया गया है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003
प्रवासी भारतीयों की नागरिकता सम्बन्धी नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 - प्रवासी भारतीयों व विदेश में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से संसद द्वारा अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया है। इसके लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2003 को सर्वसम्मति से पारित किया गया है। यह विधेयक लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। इस अधिनियम द्वारा 16 देशों आस्ट्रेलिया, कनाडा, पुर्तगाल, - आयरलैण्ड, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, न्यूजीलैंड, नीदरलैण्ड्स, फिनलैण्ड, स्वीडन, इजरायल, साइप्रस, स्विट्जरलैण्ड, इटली और यूनान में बसे भारतीय मूल के लोगों को उनकी विदेशी भी नागरिकता के साथ भारत की नागरिकता भी प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। उक्त देशों में रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत में आने-जाने की स्वतंत्रता होगी। किन्तु इन्हें भारत में कोई सार्वजनिक पद या नौकरी प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। इन्हें भारत में मत देने का अधिकार भी नहीं दिया गया है।
इसके अतिरिक्त चूंकि अनुच्छेद 15 (1) केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर विभेद की मनाही करता है और इसमें निवास संबंधी किसी शर्त का कोई उल्लेख नहीं है, अतः जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने “जोशी बनाम् मध्य भारत राज्य (1955) " के बाद में यह अभिनिर्धारित किया कि राज्य अपने राज्य में आयुर्विज्ञान महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए फीस के विषय में अपने निवासियों को विशेष रियायत दे सकता है।
जम्मू-कश्मीर राज्य को इस संदर्भ में विशेषाधिकार प्राप्त है। जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान मंडल को यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह अपने राज्य में स्थायी रूप से रह रहे नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान कर सकता है जैसे-
- राज्य सरकार के अधीन नियोजन के,
- राज्य में अचल सम्पत्ति के अर्जन के,
- राज्य में बस जाने के, तथा
- छात्रवृत्तियाँ या इसी प्रकार की अन्य सहायता के संदर्भ में जो राज्य
सरकार अपने नागरिकों को प्रदान करें। संविधान निर्माताओं ने एकीकृत भारतीय राष्ट्र तथा संयुक्त बंधुत्व का निर्माण करने के लक्ष्य को सामने रखकर इकहरी भारतीय नागरिकता का प्रावधान करने का निर्णय किया था। भारत के सभी नागरिकों को चाहे उनका जन्म किसी भी राज्य में हुआ हो, बिना किसी भेदभाव के देश भर में एक जैसे अधिकार तथा कर्त्तव्य प्राप्त हैं।
अध्यादेश 2005 की उदघोषणा
बाद में 28 जून, 2005 को नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश, 2005 की उदघोषणा की गई। यह संशोधन नागरिकता अधिनियम 1955 की चौथी अनुसूची को हटाने सम्बन्धी प्रावधानों से युक्त है। इसके अनुसार भारतीय मूल के लोग, जिनके माता पिता या दादा / दादी 26 जनवरी, 1950 के बाद प्रवासित हुए हों अथवा 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिकता की योग्यता उनके पास रही हो अथवा ऐसे क्षेत्र में हों जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का अंग बन गया हो, उनके उस समय के छोटे बच्चे जो अब ऐसे देश में रह रहे हों, जहाँ पर दोहरी नागरिकता का किसी भी प्रकार का प्रावधान उपलब्ध हो, ओवरसीज (सीमा पारीय) भारतीय नागरिकता (ओसीआई) प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार पाकिस्तान तथा बांग्लादेश को छोड़कर अन्य सभी देशों के नागरिकों को इस प्रावधान के अंतर्गत ओवरसीज भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है। नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश, 2005 के द्वारा ओसीआई जिनका पंजीकरण 5 वर्ष के लिए हुआ है कि भारत में ठहरने / रुकने की अवधि दो वर्ष से घटाकर 1 वर्ष कर दी जाएगी।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 6 जनवरी, 2015 से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है, जिसके तहत भारतीय नागरिक अधिनियम 1955 में निम्न संशोधन किए गए हैं।
- वर्तमान में भारतीय नागरिकता के लिए भारत में लगातार एक वर्ष तक रहना अनिवार्य है, लेकिन, अगर केन्द्र सरकार संतुष्ट है तो विशेष परिस्थितियों में इसमें छूट दी जा सकती है। इस प्रकार की विशेष परिस्थितियों के बारे में लिखित रिकॉर्ड दर्ज करने के बाद विशेष 12 माह के लिए छूट दी जा सकती है, जो अधिकतम 30 दिन के लिए अलग-अलग अंतराल के बाद दी जा सकती है।
- भारतीय नागरिकों के ओ. सी. आई. नाबालिग बच्चों का प्रवासी भारतीय नागरिक (ओ. सी. आई.) के तौर पर पंजीकरण की शर्तों को उदार बनाया जाएगा।
- ऐसे नागरिकों के बच्चों या पोता-पोतियों अथवा पड़ पोता-पोतियों के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा। धारा 7 ए के तहत पंजीकृत प्रवासी भारतीय के पति या पत्नी या भारतीय नागरिक के पति या पत्नी सी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा और जिनकी शादी दो वर्ष की अवधि के लिए पंजीकृत या कायम रही हो, वे तुरंत ही इस धारा के तहत आवेदन कर सकते हैं।
- वर्तमान पी. आई. ओ. कार्डधारकों के संबंध में केन्द्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर यह स्पष्ट कर सकती है। कि किस दिनांक से सभी मौजूदा पी. आई. ओ. कार्डधारकों को ओ. सी. आई. कार्डधारकों के रूप में बदलने का निर्णय किया जाए।
भूमि अधिग्रहण कार्यमुक्ति, संकट, भारतीय नागरिकता की पहचान और अन्य संबंधित मुद्दों के लिए भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 है। इस अधिनियम के तहत जन्म, पीढ़ी, पंजीकरण, विशेष परिस्थितियों में स्थान का विलय या किसी स्थान में शामिल किये जाने के साथ ही नागरिकता समाप्त होने और संकट के समय में भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है।
भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ) कार्डः पीआईओ कार्ड आवेदक को भारतीय मूल का व्यक्ति होना चाहिए जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, चीन और नेपाल के अलावा किसी भी देश का नागरिक है; या किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट आयोजित किया गया हो या भारतीय नागरिक का एक व्यक्ति या भारतीय मूल के व्यक्ति; भारतीय विदेशी नागरिक (ओसीआई) कार्ड ओसीआई कार्ड विदेशी नागरिकों के लिए है जो 26.01.1950 को भारत के नागरिक बनने के योग्य थे या उस तिथि के बाद या उसके बाद भारत के नागरिक थे। बांग्लादेश और पाकिस्तान के नागरिकों के आवेदनों की अनुमति नहीं है।
प्रवासी भारतीय कार्ड : संसद में एक नया विधेयक लंबित है (नागरिकता (संशोधन) विधेयक), जो कि मौजूदा भारतीय नागरिक (ओसीआई) कार्ड और भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ) के कार्ड को दूर करने की कोशिश करता है, और उन्हें प्रतिस्थापित करता है एक नया विदेशी भारतीय कार्ड के साथ, जबकि पीआईओ कार्ड धारकों को एक अलग वीजा की जरूरत नहीं है और 15 साल तक कई प्रविष्टियों के साथ भारत में प्रवेश कर सकते हैं; ओसीआई कार्ड भारत में आने के लिए एक बहु प्रवेश, बहुउद्देश्यीय आजीवन वीजा है। ओसीआई कार्ड धारकों की कृषि भूमि प्राप्त करने के अलावा आर्थिक, वित्तीय और शैक्षिक मामलों के संबंध में गैर-निवासी भारतीयों के साथ समानता है। एक पीआईओ कार्डधारक को स्थानीय पुलिस अधिकारियों के साथ किसी भी एक यात्रा पर भारत में 180 दिन से अधिक रहने के लिए पंजीकरण करना आवश्यक है।
ओसीआई दोहरी नागरिकता नहीं है ओसीआई कार्ड धारक के लिए कोई मत अधिकार नहीं हैं।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 लोकसभा में पारित
लोकसभा में 08 जनवरी 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित कर दिया गया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में जवाब देते हुए कहा, इस विधेयक से असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा। गृहमंत्री ने यह भी कहा कि असम के लोगों को भरोसा देना चाहता हूं कि यह बिल असम विशेष नहीं है। यह विधेयक भारत में आकर रहने वाले शरणार्थियों के लिए है।
विदित हो कि यह विधेयक 2016 में पहली बार पेश किया गया था। असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों प्रदर्शन जारी है। लोगों का कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक की मुख्य विशेषताएं
- यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा।
- यह विधेयक वर्ष 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विभिन्न विपक्षी दलों की माँग को देखते हुये विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था। समिति की रिपोर्ट के अनुरूप तैयार नये विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी स्वीकृति दी थी।
- विधेयक पर लोकसभा में चर्चा का जवाब देते हुये गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने असम के लोगों को आश्वासन दिया कि उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान अक्षुण्ण रखी जायेगी तथा शरणार्थियों का बोझ सिर्फ असम पर नहीं आयेगा ।
- गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह विधेयक विशेष तौर पर असम के लिए नहीं है। तीनों पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश) से यहाँ आने वालों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी और वे देश में कहीं भी रहने और काम करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
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