कंप्यूटर एवं सूचना - प्रौद्योगिकी_महत्वपूर्ण नोट्स

Computer and Information Technology

कंप्यूटर की प्रत्येक पीढ़ी (Computer and their Generations) प्रमुख तकनीकी विकास को प्रदर्शित करता है जो मौलिक रूप से कंप्यूटर के काम, उनके आकार का छोटा होना, सस्ता तथा अधिक शक्तिशाली, कुशल और विश्वसनीय उपकरणों में परिवर्तन है।

पहली पीढ़ी (1940-1956 ) : वैक्यूम ट्यूब

पहला कंप्यूटर वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल Circuitry के लिए तथा मैगनेटिक ड्रम का मेमोरी के रूप में इस्तेमाल करता था। ये वजन में काफी भारी तथा आकार में कमरे के साइज में था। पहली पीढ़ी के कंप्यूटर मशीन लैंग्वेज पर निर्भर थे तथा कम स्तर की भाषा, प्रोग्रामिंग के रूप में समझ पाते थे। इनपुट के लिए पंच कार्ड और कागज टेप इस्तेमाल किए जाते थे तथा आउटपुट प्रिंट आउट के रूप में आते थे। उदाहरण- UNIVAC, ENIAC

दूसरी पीढ़ी (1956-63): ट्रांजिस्टर आधारित

वैक्यूम ट्यूब की जगह ट्रॉजिस्टर का इस्तेमाल करके दूसरी पीढी में कंप्यूटर को हल्का, सस्ता, तेज तथा ऊर्जा कुशल बनाया जा सका। कंप्यूटर अब एसेंबली लैंग्वेज समझने लगा तथा उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास हुआ। कोबोल और फोरट्रान का विकास इसी दौरान हुआ ।

तीसरी पीढ़ी (1974-71): एकीकृत परिपथ

तीसरी पीढ़ी में एकीकृत परिपथ (IC - Integrated Circuits) के विकास, जो सिलिकॉन चिप्स, अर्धचालकों पर आध ारित था, ने कंप्यूटर की कुशलता तथा क्षमता दोनों को आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ाया। इनपुट में पंचकार्ड की जगह की-बोर्ड, आ गए, मॉनीटर आउटपुट में आ गए तथा ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल शुरू हो गया।

चौथी पीढ़ी: माइक्रोप्रोसेसर (1971- वर्तमान)

माइक्रोप्रोसेसर आधारित कंप्यूटर में हजारों एकीकृत परिपथों को एक सिलिकॉन चिप पर बनाया गया। इससे पहले के कमरे के साइज का कंप्यूटर हाथ की हथेली में फिट हो सकने योग्य हो गया। Intel 4004 चिप में CPU, I/O सभी एक चिप में समेटे जा सकने योग्य हो गए।

पांचवीं पीढ़ी (वर्तमान और भविष्य में ) : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

पांचवी पीढ़ी के कंप्यूटर उपकरणों का आधार कृत्रिम बुद्धि है जिस पर अभी अब भी काम चल रहा है जबकि आवाजों की पहचान हो सकने योग्य डिवाइस प्रयोग में है। समानांतर प्रोसेसिंग तथा अतिचालकों का प्रयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को संभव बनाएगा।

कंप्यूटर के प्रकार

मुख्य रूप से ये तीन प्रकार के होते हैं:

1.एनालॉग कंप्यूटर: यह उस डाटा पर कार्य करता है, जो सतत् पैमाने (ब्वदजपदनवने बंसम) पर मापे गये हों, जैसे- कमरे का तापक्रम एनालॉग कंप्यूटर का सबसे सरल उदाहरण गाड़ियों में लगे 'स्पीडोमीटर' हैं।

2. डिजिटल कंप्यूटर: ये अंकीय डाटा के आधार पर कार्य करने वाले कंप्यूटर होते हैं। यह अंकगणित की मौलिक व तार्किक क्रियाओं को संपन्न करता है। यह दो प्रकार का होता है: (a) विशेष प्रयोजन, तथा (b) सामान्य प्रयोजन के लिए। विशेष प्रयोजन कंप्यूटर केवल एक विशेष प्रकार की ही संक्रिया संपन्न कर सकते हैं। इस संक्रिया के लिए 'प्रोग्राम' कंप्यूटर की 'मेमोरी' में संचयित रहता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सामान्य 'कैलकुलेटर' है। दूसरी ओर, सामान्य प्रयोजन कंप्यूटर में विभिन्न प्रोग्राम संचयित रहते हैं और इसमें नये प्रोग्राम भी डाले जा सकते हैं।

3. हाइब्रिड कंप्यूटर: इसमें उपरोक्त दोनों कंप्यूटरों की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। उदाहरणार्थ, इन्टेंसिव केयर यूनिट (आई. सी.यू.) में एनालॉग कम्प्यूटर रोगी की हृदय गति व तापमान माप सकता है। साथ ही, कंप्यूटर के डिजिटल भाग में यह सूचना प्रदान कर उपयुक्त चिकित्सकीय सुविधा हेतु परामर्श भी दे सकता है।

सुपर कंप्यूटर

वर्तमान में वे कंप्यूटर जिनकी कार्य करने की क्षमता 500 मेगा फ्लाप्स (Floating Points Operations per Second- FLOPS) तथा स्मृति भंडार कम से कम 52 मेगा बाइट हो, उन्हें सुपर कंप्यूटर कहा जाता है। सुपर कंप्यूटर में साधारणतः समानांतर प्रोसेसिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता है। समानांतर प्रोसेसिंग तकनीक में बहुत सारे माइक्रोप्रोसेसरों का प्रयोग एक दूसरे से जोड़कर किया जाता है। ये माइक्रोप्रोसेसर किसी समस्या को उनके मांगों में विभाजित करके उन मांगों पर एक साथ कार्य करते हैं। सुपर कंप्यूटर में 32 या 64 समानांतर परिपथों में कार्य कर रहे माइक्रोप्रोसेसरों के सहयोग से विभिन्न सूचनाओं पर एक साथ कार्य किया जाता है। सुपर कंप्यूटर की खोज 1960 में सेमुर के ( Seymour Cray) द्वारा कंट्रोल डाटा कार्पोरेशन (Control Data Corporation), जो कि बाद में के अनुसंधान में परिवर्तित हो गया, में की गई थी।

भारत में सुपर कंप्यूटर विकसित करने की जरूरत उस समय महसूस की गयी, जब क्रे.एक्स. एम.पी.-14' नामक सुपर कंप्यूटर अमेरिका से काफी कठिनाई व अधिक कीमत अदा करने के बाद प्राप्त किया जा सका। इस कंप्यूटर से यद्यपि कई तरह की गणनाए की जा सकती हैं, लेकिन भारत को सिर्फ मौसम संबंधी गणना की ही अनुमति प्राप्त थी। इस स्थिति से उबरने के लिए 1988 में पुणे (महाराष्ट्र) में स्थित सी-डैक (C-DAC) की स्थापना की गयी तथा इसके मात्र 3 वर्ष के बाद ही भारतीय वैज्ञानिकों ने परम' नामक व्यावसायिक स्तर के सुपर कंप्यूटर को बना डाला। अपने प्रथम मिशन में ही इसके द्वारा विकसित' परम-6000' तथा 'परम 6600' श्रृंखला के 30 सुपर कंप्यूटर विभिन्न शैक्षिक एवं शोध संस्थानों में लगाये गये अपने दूसरे मिशन के तहत सी-डैक' ने 'परम-9000' श्रृंखलाओं के सुपर कंप्यूटर विकसित किये, जो अमेरिकी सुपर कंप्यूटर क्रं. एक्स. एम. पी. - 14' से अक्षिक सक्षम थे।

28 मार्च, 1998 को भारत ने एशिया के सबसे बड़े सुपर कंप्यूटर का सफल निर्माण करके इस क्षेत्र में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी। अत्यधिक क्षमता वाले सुपर कंप्यूटर परम-10,000 का विकास भी सी-डैक ने ही किया है। एशिया में जापान के अतिरिक्त भारत ही एक ऐसा देश है, जिसने ऐसा कंप्यूटर विकसित किया है। वर्तमान में भारत का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर इसरो द्वारा SAGA. 220 का निर्माण किया गया है। यह 220 टेराफ्लाप (Trillion Floating Point Operations per Second) की गणना कर सकता है। यह ग्राफिक प्वाइंट यूनिट (ळ) आधारित सुपर कंप्यूटर है जिसका उपयोग अंतरिक्ष वैज्ञानिकों तथा एयरोस्पेस कंडीशन के लिए होगा।

हैकिंग (Hacking): यह शब्द नकारात्मक अर्थ वाला है जिसका मतलब है बिना अधिकार के कंप्यूटर से जानकारी चुराना। इसमें चोर कंप्यूटर प्रयोगकर्ता की असावधानी का लाभ उठाता है।

स्पूफिंग (Spoofing ) : अनावश्यक ई-मेल को कंप्यूटर प्रयोगकर्ता के पते पर भेजा जाता है परंतु ई-मेल का स्रोत एवं नाम को बदलने के बाद इससे ई-मेल की वास्तविक पहचान छुप जाती है।

फिसिंग (Pishing): इसमें भी जानकारी को गलत ढंग से प्राप्त किया जाता है। किसी वैध संस्था जैसे बैंक या बीमा कंपनी का झूठा प्रयोग करके उपभोक्ता से उसका कोड, अकाउंट नं. जैसे महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त कर लिए जाते हैं।

फार्मिंग (Pharming): जब कंप्यूटर प्रयोगकर्ता किसी संस्था को अपनी जानकारी दे रहा होता है, तो चोर बीच में इन सूचनाओं को चुराता रहता है तथा कंप्यूटर प्रयोगकर्ता को इस बात का पता भी नहीं चलता है।

विशिंग (Vishing ) : इसमें कॉल करने वाला व्यक्ति जब कस्टमर केयर से तथ्यों का आदान-प्रदान कर रहा होता है तो चोर बीच में ही कंप्यूटर ( कस्टमर केयर के) पर आने वाली सूचनाओं को चुरा लेता है।

बिट: 'बाइनरी इकाई' के आरंभिक एवं अन्तिम अक्षरों से बने संक्षिप्त शब्द, 0 से 1 को 'बिट' कहा जाता है। यह कम्प्यूटर सूचना की सबसे छोटी इकाई है।

बाइट: आठ बिटों से बनने वाले अक्षरों को 'बाइट' कहा जाता है। एक किलोबाइट में 1024 बाइट होते हैं एवं 10,48,576 बाइटों का एक मेगाबाइट होता है। कम्प्यूटर के स्मृति भंडार को मेगाबाइट (डमहंइपजम) में मापा जाता है।

मेमोरी

सभी कंप्यूटरों में आजकल जानकारी को रक्षित करने के लिए कुछ चीजों का इस्तेमाल होता है जिनको मेमोरी कहा जाता है। यह कम्प्यूटर के वे साधन, जिन पर सूचनायें एवं प्रोग्राम संचित रहते हैं।

ROM (Read Only Memory): यह एक स्थायी मेमोरी (स्मृति) भंडार है, जो विद्युत आपूर्ति समाप्त होने पर भी लोप नहीं होता है।

RAM (Random Access Memory ) : यह स्मृति तात्कालिक उपयोग के लिए होती है एवं अचानक विद्युत आपूर्ति बन्द होने पर यह लुप्त हो जाती है।

1. सॉफ्टवेयर (Software): ऐसे प्रोग्राम, जिन्हें 'हार्डवेयर' अर्थात् कंप्यूटर पर चला सकते हैं। प्रोग्राम, एप्लीकेशन अथवा सॉफ्टवेयर एक ही चीज के विभिन्न नाम हैं। दूसरे शब्दों में, प्रोग्राम तथा आंकड़े, जो कंप्यूटर को इच्छित काम करने के लिए दिये जाते हैं, सॉफ्टवेयर कहलाते हैं।

2.हार्डवेयर (Hardware ) : कंप्यूटर की समस्त मशीनरी ऑपरेशंस कंप्यूटर हार्डवेयर' के अंतर्गत आती है। कंप्यूटर तथा उससे जुड़ी अन्य मशीनें 'हार्डवेयर' कहलाती हैं। जैसे-प्रिंटर, स्क्रीन, कंप्यूटर आदि ।

3.प्रोग्राम (Programme): संकेतों का संग्रह, जो कि कंप्यूटर को बताता है कि किसी विशेष काम को कैसे किया जायेगा? बाइट (Bite ) : कंप्यूटर में किसी शब्द की लंबाई मापने की इकाई ।

5. बायोचिप्स (Biochips) : सिलिकॉन माइक्रोचिप्स की तकनीक के आधार पर कंप्यूटरों का विकास हुआ है। सिलिकॉन चिप्स पर कंप्यूटर परिपथ के लिए आवश्यक अनेक छोटे-छोटे परिपथ बनते हैं, लेकिन इसकी सीमाओं को देखते हुए वैज्ञानिकों ने अब बायोटेक्नोलॉजी (जैव प्रौद्योगिकी) का सहारा लेकर माइक्रोचिप्स की क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया है, जिससे 'वायोचिप्स' का विकास संभव हो सका है। इस आधार पर 'बायो- कंप्यूटर' की संकल्पना की गयी है।

6. रैम (Random Access Memory; (RAM): वह कंप्यूटर स्मृति, जिसे आंकड़ों तथा प्रोग्राम के अल्पकालिक संग्रहण हेतु प्रयोग किया जाता है। इसके डाटा को पढ़ा एवं सुधारा जा सकता है। ये तथ्य कंप्यूटर को बंद करने पर समाप्त हो जाते हैं।

7. रोम ( ROM Read Only Memory): इसमें स्थायी रूप से रिकॉर्ड किया गया निर्देश होता है, जिसे पढ़ा तो जा सकता है, परन्तु इसे सुधारा नहीं जा सकता। इसके निर्देश कंप्यूटर को बंद किये जाने के बावजूद समाप्त नहीं होते हैं।

8. चिप (Chip): अर्द्धचालक पदार्थ का वह छोटा-सा टुकड़ा, जिस पर इलेक्ट्रॉनिक सर्किट खुदा होता है। सिलिकॉन जैसी किसी अर्द्धचालक चिप पर बना संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक सर्किट 'एकीकृत सर्किट' (Integrated Circuit) कहलाता है। इसका उपयोग कंप्यूटरों, रेडियो, टेलीविजन तथा अन्य आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों में किया जाता है।

9. डाटा बेस (Data Base) : कंप्यूटर में संग्रहित सूचनाओं का भंडार डाटा बेस में से इच्छित जानकारी ढूंढ़ी जा सकती है और उसे कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखलाया जा सकता है।

10. प्रोग्राम ( Program): कार्य पूरा करने हेतु दिये गये निर्देशों की सूची।

11. माइक्रो-प्रोसेसर ( Microprocessor): सिलिकॉन चिप पर बना वह एकीकृत सर्किट, जिस पर कंप्यूटर का अधिकांश भाग होता है। इनका उपयोग छोटे कंप्यूटर बनाने तथा कैमरे, कपड़े सीने की मशीनों, कपड़े धोने की मशीनों आदि जैसे घरेलू उपकरणों में किया जाता है और उद्योगों में इनसे रोबोट तथा स्वचालित मशीनों को नियंत्रित किया जाता है।

12. मॉडेम (Modem): Modulator- Demodulator का सक्षिप्त रूप, जिसके द्वारा कंप्यूटर को टेलीफोन लाइन से जोड़ा जाता है। इसकी मदद से कंप्यूटर सूचनाएं टेलीफोन लाइनों द्वारा दूर-दूर तक भेजी जा सकती हैं। यह कंप्यूटर डिजिटल संकेतों को ध्वनि संकेतों में बदल देता है और उन्हें टेलीफोन लाइनों द्वारा भेज दिया जाता है। इसका उपयोग रेडियो प्रसारण में भी होता

13. सूचना प्रौद्योगिकी ( Information Technology): इलेक्ट्रॉनिक विधि से सूचना भेजने, प्राप्त करने तथा संग्रहित करने की पद्धति। इसमें कंप्यूटरों, डाटा-बेसों तथा मॉडेमों का उपयोग किया जाता है।

14. मेमोरी (Memory): कंप्यूटर का वह भाग, जहां निर्देश अथवा प्रोग्राम एवं सूचनाएं एकत्रित रहती हैं। दो तरह की स्मृतियां होती हैं- RAM एवं ROM

नेटवर्क तथा उसके प्रकार

जब दो या उससे ज्यादा कंप्यूटर जानकारी तथा संसाधनों का आदान-प्रदान करते हैं तो इसे कंप्यूटर नेटवर्क कहते हैं। इस प्रोसेस में एक डिवाइस डेटा प्रेषण प्राप्त करने में सक्षम हो तथा दूसरा डिवाइस डेटा प्राप्त / प्रेषण सकने में सक्षम हो तो इसे दो उपकरणों का नेटवर्क कहते हैं।

कंप्यूटर नेटवर्क का वर्गीकरण भौतिक तथा संगठनात्मक स्तर पर अनेक प्रकार से हो सकता है, जिनमें प्रमुख हैं:

(क) स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (Local Area Network-LAN): लैन, कंप्यूटर को सीमित भौगोलिक क्षेत्र जैसे-स्कूल, घर, कंप्यूटर लैब, ऑफिश की इमारतों आदि को जोड़ सकता है। इसमें प्रत्येक डिवाइस एक नोड की तरह होता है। वर्तमान में यह ईथरनेट प्रौद्योगिकी पर आधारित है।

(ख) वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network-WAN): वैन विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र जैसे शहर, देश तथा अंतरमहाद्वीपिय दूरी तक के विशाल नेटवर्क को कवर करता है। यह कवरेज के लिए टेलीफोन लाइन, केबल तथा वायु तरंगों का उपयोग करता है। वैन नेटवर्क प्रोटोकॉल कनेक्टिविटी के लिए ज्डए 025 एवं फ्रेम रिले उपयोग करता है।

(ग) मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (Metropolitan Area Network - MAN): इन नेटवर्क का उपयोग सरकारी संस्थाओं और संगठनों के द्वारा उपयोग किया जाता है। इसका क्षेत्र लैन (छ) से ज्यादा तथा वैन से कम अर्थात् यह इन दोनों के बीच का नेटवर्क है।

(घ) कैम्पस एरिया नेटवर्क ( Campus Area Network-CAN): कैम्पस नेटवर्क एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र में लैन के इंटरकनेक्शन से निर्मित होता है। नेटवर्किंग उपकरण हैं- स्विच, राउटर, ऑप्टिकल फाइबर इत्यादि । इस नेटवर्क का प्रशासन पूरी तरह से नेटवर्क स्वामित्व वाले व्यक्ति के पास होता है।

(च) होम नेटवर्क: होम नेटवर्क ( Home network ) घर में कंप्यूटर तथा उसके उपसाधन के बीच कनेक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है।

(छ) निजी क्षेत्र नेटवर्क (पैन) : निजी क्षेत्र नेटवर्क (Personal Area Network-PAN) एक कंप्यूटर नेटवर्क है। यह एक व्यक्ति के कंप्यूटर तथा उसके विभिन्न सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों के बीच संचार के लिए इस्तेमाल होता है। यह एक पैन वायर्ड और वायरलेस उपकरण हो सकता है। इसकी पहुंच सामान्यतः 10 मी. की दूरी तक फैली हुई है।

इंटरनेट

इंटरनेट कंप्यूटर नेटवर्क के कनेक्शन की एक वैश्विक प्रणाली है जो इंटरनेट प्रोटोकॉल सुइट (TCP/IP) मानक का उपयोग कर विश्व के अरबों लोगों को जोड़ता है। यह नेटवर्क का एक नेटवर्क है। इंटरनेट सूचना एवं संसाधनों की विस्तृत रेंज, आपस में जुड़े हुए हाइपरटेक्स्ट के दस्तावेज जिनमें www तथा ई-मेल के लिए बुनियादी सुविधाएं शामिल हैं, उन्हें रखता है। आम बोलचाल में इंटरनेट तथा वर्ल्ड वाइड वेब (www) दोनों को समानार्थक मानकर चर्चा की जाती है। इंटरनेट कंप्यूटर के बीच एक वैश्विक डेटा संचार प्रणाली है जबकि वेब इस संचार प्रणाली में से एक सेवा है जो हाइपरलिंक्स औरURL जुड़े हुए संसाधनों का संग्रह है।

इंटरनेट का उद्भव एवं विकास अमेरिका के प्रतिरक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन स्थित एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी एरपा' (ARPA) की संकल्पना से हुआ था।

कार्यपद्धति इंटरनेट ऑप्टिकल फाइबर तारों से जुड़े कंप्यूटरों का एक व्यापक नेटवर्क है। इस प्रणाली में कंप्यूटरों के जाल को एक मुख्य कंप्यूटर आपस में टेलीफोन लाइन के द्वारा जोड़ता है। यहां जोड़ने का कार्य जब टेलीफोन लाइन की जगह आम तारों के द्वारा किया जाता है तो यह पद्धति नेटवर्किंग कहलाती है। कंप्यूटर तथा टेलीफोन आपस में मोडेम के माध्यम से जुड़े होते हैं। यह मोडेम कंप्यूटर के डिजिटल सिग्नल को टेलीफोन के मैग्नेटिक सिग्नल तथा मैग्नेटिक को डिजिटल सिग्नल में बदलता है।

भारत में इंटरनेट: सीमित रूप से इंटरनेट का प्रवेश 1987-88 में हो गया था। परन्तु जनसामान्य के लिए विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) द्वारा 15 अगस्त, 1995 से 'गेटवे इंटरनेट' सेवा द्वारा आरंभ की गई।

वर्ल्ड वाइड वेब (www): यह पूरे विश्व में फैला एक प्रकार का डाटाबेस है जिससे कोई भी इंटरनेट यूजर सूचनाएं प्राप्त कर सकता है। इसमें सूचनाओं को विषय के अनुसार शीर्षकों और उपशीर्षकों में विभाजित करके रखा गया है। वर्ल्ड वाइड वेब को ब्रिट टिम बर्नर्स-ली ने 1989 में विकसित किया था।

हाइपरटेक्स्ट ट्रांस्फर प्रोटोकॉल (HTTP): www पर HTTP का प्रयोग 1990 से हो रहा है। यह क्लाइंट सरवर प्रोटोकॉल है जिसके माध्यम से दो कंप्यूटर TCP / IP कनेक्शन पर कम्यूनिकेट कर सकते हैं।

यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर (URL) : यह इंटरनेट पर किसी भी वेबसाइट/पेज / फाइल का यूनिक एड्रेस है। जैसे-http:/ /www.google.co.in

हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (HTML): www पर इस्तेमाल में होने वाला लैंग्वेज है जिसे दिए हुए तरीके से लिखने पर पेज ले-आउट तथा शब्द फार्मेट नजर आते हैं।

इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस (IP address ) : यह संख्यात्मक लेबल होता है जो कंप्यूटर नेटवर्क में इंटरनेट प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करने वाले हर डिवाइस को दिया जाता है। यह IP 4 में चार ब्लाकों में फुलस्टॉप से बंटा होता है वही IP6 में हेक्साडेसीमल से बंटा होता है।

आईपीवी-6: इंटरनेट प्रोटोकॉल - 6 (IP 6) नई पीढ़ी का ऐसा इंटरनेशनल प्रोटोकॉल है जो इस्तेमाल किए जा रहे इंटरनेट प्रोटोकॉल - 4 (IP, 4) का स्थान लिया है।

इंटरनेट पर फाइल को साझा करने के लिए मशीन द्वारा समझा जाने योग्य एक पता होता है जिसे IP Address कहते हैं। या Address मानक इंटरनेट प्रोटोकॉल पर आधारित होते हैं। IP 4 वर्जन में ये किकतमे फुलस्टॉप के जरिए चार हिस्सों में विभाजित होते थे जैसे 217.11.138.1481 जबकि नया IP 6 डाटा नेटवर्किंग प्रोटोकॉल का उन्नयन है जो संख्या को हेक्साडेसिमल सिस्टम (Hexadecimal System) में बदलता है। नया मानक 8 हिस्सों में फुलस्टॉप के द्वारा विभाजित होंगे जैसे - 12 : क 8:1:1:1:1:1428:57

हार्डवेयर की आवश्यकता

विंडो विस्टा या उसके बाद के वर्जन (XP में कुछ परिवर्तन के साथ सुविधा ) ।

मैक 10.2

Linux

क्वांटम कंप्यूटर

परम्परागत कंप्यूटरों की सीमाओं के कारण होने वाली परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए क्वांटम कंप्यूटर की आवश्यकता के बारे में सर्वप्रथम रिचर्ड फिनमैन नामक वैज्ञानिक ने 1981 में अपना तथ्य प्रस्तुत किया। 1985 में डेविड डाउच ने इसकी सैद्धांतिक संरचना का विकास किया। ऐसे कंप्यूटरों के सामने एक सेकेंड में 1000 खरब बार ऑन व ऑफ होने वाले परम्परागत कंप्यूटर भी सामान्य लगेंगे। इसी से इनकी स्मरण क्षमता का पता चल जाता है। जहां तक परंपरागत कंप्यूटरों का प्रश्न है, तो ये 1 तथा 0 की सहायता से ही सारी गणनाएं निपटाते हैं, जबकि क्वांटम कंप्यूटरों में ऐसा नहीं होता है। इनमें क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) का उपयोग होता है। इनमें समस्त कंप्यूटेशनल मार्ग एक अकेले हार्डवेयर में लिया जाता है, जो कि इनकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। इस मार्ग में क्वांटम यांत्रिकी के अनुसार सुपरपोजीशन (Super-position) होता है, जिसके तहत अनावश्यक अंश धनात्मक व ऋणात्मक होकर समाप्त हो जाते हैं तथा गणना के लिए सिर्फ आवश्यक अंक ही बचे रह जाते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में कठिनाई यह है कि कई बार अनावश्यक व्यवधानों से गणना सीधी दिशा में नहीं चल कर वापसी की ओर चलने लगती है। अतः क्वांटम कंप्यूटर में इसका ध्यान रखना अत्यावश्यक है, क्योंकि यदि इसमें अनावश्यक अंश प्रभावी हो गये, तो फिर आवश्यक अंक की गणना में इसकी उपयोगिता ही समाप्त हो जायेगी। लेकिन परंपरागत कंप्यूटरों में ऐसा | नहीं होता है, क्योंकि इनमें 1 और 0 को ही प्रभावशाली बनाया जाता है।

गणना में अनावश्यक अंश न आने पायें, इसके लिए ऊर्जा स्तरों में स्पष्टता होनी चाहिए। अतः पहले इसके लिए सुस्पष्टता से रखे गये परमाणु या किसी अन्य कण का पूर्ण अध्ययन आवश्यक होता है। जहां तक क्वांटम कंप्यूटरों की कार्यविधि का प्रश्न है, तो इनके लिए पूर्ण पृथक्करण आवश्यक होता है। कोई भी परिभ्रमणशील अकेला फोटॉन (Photon), इलेक्ट्रॉन (Electron) या परमाणु (Atom) इन्हें गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे क्वांटम पैटर्न ही नष्ट हो सकता है। अतः ऐसे कंप्यूटरों के लिए वैज्ञानिक फोटॉन, इलेक्ट्रॉन तथा परमाणु जैसे कणों के व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं। यदि इसे पूर्णत: व्यावहारिक बनाना संभव हो सका, तो यह कंप्यूटर की दुनिया में एक जबर्दस्त मील का पत्थर साबित हो सकेगा।

आईपी टेलीफोनी (इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीफोनी)

आईपी टेलीफोनी इंटरनेट प्रोटोकॉल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए समान्य शब्द है जिसमें आवाज फैSMS, वायस मैसेज भेजने के लिए इंटरनेट के पैकेट स्विच नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है न कि पारंपरिक पब्लिक स्विचित टेलीफोन नेटव(STN) का।

एक आई पी टेलीफोन प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए आवश्यक है सिग्नलिंग तथा मीडिया चैनल की स्थापना, एनालॉग आवाज क डिजिटलीकरण, कूटबंधन, पैकेटाइजेशन तथा इंटरनेट प्रोटोकॉल के माध्यम से इन पैकेटों का पैकेट स्विचित नेटवर्क पर संचरण। वहीं दूस तरफ प्राप्तकर्ता के पास इसी तरह के कदम (विपरीत रूप में) आई पी पैकेट को प्राप्त करना, पैकेट को डिकोड करना तथा मूल आवाज को प्राप्त करने के लिए डिजिटल से एनालॉग में रूपांतरण। आई पी फोन की सबसे बड़ी खासियत इसका न्यूनतम लागत मूल्य है।

सामाजिक नेटवर्किंग सेवा

एक सामाजिक नेटवर्किंग सेवा एक ऑनलाइन सेवा मंच या साइट है जो सामाजिक नेटवर्क या सामाजिक संबंध के निर्माण और दर्शाने का कार्य करती है जिन लोगों के समान हित या गतिविधियां होती हैं।

वेब आधारित सामाजिक नेटवर्किंग सेवा लोगों को राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक सीमा के पार आपस में जुड़ने का मौका देते हैं। यह ई-मेल तथा त्वरित संदेशों के माध्यम से ऑनलाइन समुदाय बनाता है जहां एक गिफ्ट अर्थव्यवस्था तथा पारस्परिक परोपकारिता के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कई वेबसाइट सोशल नेटवर्किंग का उपयोग परोपकार (Philanthropy) के लिए कर रहे हैं। इस तरह के प्रयोग छोटे-छोटे तथा बंटे हुए उद्योगों को जिनके पास संसाधनों की कमी है इच्छुक उपयोगकर्ता तक पहुंचने में मदद करती है। सामाजिक नेटवर्क व्यक्तियों को डिजिटल संवाद करने का नया तरीका प्रदान कर रही है। प्रमुख सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइट हैं; ऑरकुट, फेसबुक, माईस्पेस, गूगल +, लिंक्ड एलएन।

इन वेबसाइटों के प्रयोग से वर्ल्ड वाइड वेब दुबारा परिभाषित हुआ है। यह वेब तकनीक के जरिए उपयोग की जाने वाली सुविधाओं का एक बड़ा हिस्सा बन गया है।

फैक्स: फैक्स (FAX)] एक ऐसी अत्याधुनिक मशीन है, जिसकी सहायता से ग्राफ चार्ट, हस्तलिखित अथवा मुद्रित दस्तावेजों को टेलीफोन नेटवर्क द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऐसे प्रेषित किया जा सकता है, जैसे प्राप्त करने वाले सिरे पर संदेश की मूलप्रति की फोटो कॉपी मिल रही हो। संदेश भेजने की यह प्रणाली काफी त्वरित एवं सस्ती होती है। इसमें प्रेषक अपने दस्तावेज को फैक्स मशीन में डाल कर प्रेषित किये जाने वाले स्थान का कोड नम्बर डायल (Dial) करता है। फैक्स मशीन के 'प्रकाशीय स्केनर' सदृश उपकरण द्वारा प्रेषित दस्तावेज का निरीक्षण होता है तथा तुलनात्मक अध्ययन करने वाले एक यंत्र 'कम्पेरेटर' की सहायता से उस दस्तावेज पर छपी श्याम श्वेत (Black & White) जानकारी को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर देती है। इन विद्युत | संकेतों को पुनः टेलीफोन लाइन द्वारा पूर्व निर्धारित स्थान पर भेज दिया जाता है, जिसे प्रिंटर पर छाप कर प्रेषित मूल दस्तावेज की प्रतिलिपि संबद्ध व्यक्ति या स्थान को उपलब्ध करा दी जाती है।

डाटाबेस सिस्टम (Database System): 'डाटाबेस' एक प्रकार की चतवहतंउउपदह होती है, जिसके अंतर्गत किसी भी प्रकार के आंकड़े कम्प्यूटर में सुव्यवस्थित ढंग से संग्रहित किये जा सकते हैं। आवश्यकतानुसार, इन्हें विभिन्न रूपों में मुद्रित किया जा सकता है। ब्वउचनजमते में ये डाटा शाखावली (भ्यमतंबील) के रूप में संग्रहित रहते हैं। देश में बड़े पैमाने पर अच्छे कंजईमे तैयार करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

इलेक्ट्रॉनिक मेल (Electronic Mail ): ई-मेल के अंतर्गत एक कम्प्यूटर में कोई संदेश टाइप करके उसे उससे जुड़े किसी भी कम्पयूटर तक भेजा जा सकता है। इस सूचना प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता अधिकाधिक सूचनाओं को अल्प समय में ही सही पते पर भेजना है। भारत सरकार ने NET तथा RABMN जैसी ई-मेल सुविधाएं विकसित की हैं, जो सुदूर क्षेत्रों में भी सूचनाएं भेजती हैं। निजी क्षेत्र की Courier Services की तरह ही निजी ई-मेल नेटवर्क भी उपलब्ध हैं। फैक्स की तुलना में ई-मेल अधिक प्रचलित होती जा रही है, क्योंकि यह निजी कम्प्यूटर पर आधारित हैं तथा उद्योग व्यापार में इससे कम लोगों को लगाकर ही अधिक सूचनाएं भेजी जा सकती हैं।

विकीपीडिया

विकीपीडिया एक 'इंटरनेट इंसाइक्लोपीडिया' है, जिसे ज्ञान-विज्ञान का अब तक का सबसे बड़ा खजाना माना जा रहा है। वैसे तो इस विश्व ज्ञानकोष का जन्म हुए महज पांच वर्ष ही हुए हैं लेकिन कम समय में ही यह विश्व का सबसे बड़ा और समग्र संदर्भ ग्रंथ बन चुका है। करीब 8 करोड़ लोग 72 सर्वरों के सहारे इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं। पांच वर्ष पूर्व विकीपीडिया के जन्मदाता जिमी वेल्स ने इस नयी ज्ञानगंगा को इंटरनेट के जरिए प्रवाहित किया था। विकीपीडिया दूसरे विश्वकोशों की तुलना में इस मायने में अनुठा है जोकि दिन-प्रतिदिन अद्यतन होता रहता है।

इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है, इसकी सहज निःशुल्क उपलब्धता और पूरी तरह से लोकोन्मुखता जहां आप किसी भी आलेख में संशोधन, परिवर्तन के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं, जबकि दूसरे विश्वकोशी के सृजन एवं संशोधन के अधिकार कुछ गिने चुने विशेषज्ञों तक ही सीमित होते हैं। विकीपीडिया का पहला लेख जनवरी, 2001 में अस्तित्व में आया था।

विकीपीडिया का 'विकी' शब्द एक ऐसे सॉफ्टवेयर से लिया गया है जो कंप्यूटर उपभोक्ता को पूरी स्वतंत्रता देता है और वेब पेज सामग्री में मनचाहा संशोधन कर सकता है। इस तरह जब भी कोई विकीपीडिया पर किसी लेख में कोरे बदलाव करता है तो संबंधित लेख का एक नया स्वरूप तैयार हो जाता है।

वॉयस मेल (Voice Mail ): टेलीफोन संचार में वह प्रणाली जिससे टेलीफोन की आवाज को रिकॉर्ड किया जा सकता है, ताकि उसको पुनः सुना जा सके, वॉयस मेल कहलाती है। Modern Digital Electronic Telephone Exchanges, जो कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित होते हैं, को वॉयस मेल सिस्टम के साथ उचित प्रोग्राम द्वारा जोड़ा जा सकता है। इसमें टेलीफोन उपभोक्ताओं कोMain | Telephone Exchange की ओर से एक ध्वनि डाक पेटी प्रदान की जाती है, जिसके लिए एक Code Word भी दिया जाता हैं। जिस किसी व्यक्ति से बात करनी होती है, वह अगर फोन पर उपलब्ध नहीं होता है, तो भी टेलीफोन का प्रेषी 'कॉलर' अपना | संदेश कह सकता है। यह संदेश क्पहपजंस पहदसे में बदल जाता है तथा अनुपस्थित उपभोक्ता के Main Telephone Exchange में दर्ज हो जाता है। इस संदेश को Telephone पर सुनिश्चित कोड डायल कर पुनः सुना जा सकता है।

वीडियो कांफ्रेंसिंग (Video Conferencing ) : यह Television Broadcast से इस बात में भिन्न है कि इसमें वक्ता एवं श्रोता दोनों की आवाज एवं तस्वीरें एक-दूसरे तक पहुंचती रहती हैं। सही निर्णय लेने के लिए यदि वार्तालाप में सम्मिलित व्यक्तियों की प्रतिक्रिया, हाव-भाव तथा मुखाकृति देख-सुनकर जान लिया जाये, तो सुविधा होती है। आवाज के साथ-साथ आकृति का यह समन्वय सूचना को अधिक गहनता, विश्वसनीयता एवं उपयोगिता प्रदान करता है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए सुदृढ़ एवं | निरंतर electronic devices, जैसे- उपग्रह, सूक्ष्म तरंग अथवा fibre optic device का प्रयोग करने की बाध्यता होती है।

फैक्स (Fax) : अंग्रेजी के शब्द Facsimile का अर्थ प्रतिलिपि होता है। व्यावहारिक रूप में इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा मूल प्रति की प्रतिलिपि दूर भेजने वाली मशीन फैक्स कहलाती है। फैक्स नेटवर्क को 'POTS' कहते हैं, जिसमें दस्तावेज को डालकर, जिस स्थान पर प्रतिलिपि भेजनी होती है, उसका Code No. फैक्स मशीन में लगे टेलीफोन जैसे बटनों द्वारा दबाया जाता है। फिर फैक्स मशीन उस दस्तावेज पर छपी जानकारी को मसमबजतपब पहदंसे में परिवर्तित कर देती है। इस मसमबजतपब पहदंसे को पुन: telephone line द्वारा लक्षित स्थान पर भेजा जाता है, जहां एक अन्य मशीन इन पहदंसे को मूल रूप में ले आती है। इनसे मूल दस्तावेज की प्रतिलिपि छपकर प्राप्त हो जाती है।

Electronic Data Interchange (EDI): EDI की शुरुआत अमेरिका में 1970 के दशक में हुई थी, जबकि भारत में इसे 1990 के दशक में ही लाया गया। इस सेवा का उपयोग आयात, निर्यात के कागजातों के शीघ्र निपटारा करने में किया जाता है। इसके माध्यम से कागज के दस्तावेजों को लाने-ले जाने की असुविधाओं, दूरियों एवं अनिश्चितताओं से उत्पन्न विलंबों को काफी हद तक दूर किया जा सका है।

इनमरसैट (INMARSAT): International Maritime Satellite 65 देशों की एक सामूहिक उपग्रह प्रणाली है, जिसका प्रधान कार्यालय लंदन में स्थित है। इसके हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर में एक-एक तथा अटलांटिक महासागर में दो उपग्रह हैं। उनका उपयोग समुद्री जहाजों एवं वायुयानों तथा जमीनी वाहनों को सूचना देने के लिए होता है। T. Vs. के 532 ट्रांसमीटर तथा रेडियो के सौ से भी अधिक ट्रांसमीटर उपग्रह के माध्यम से संचार नेटवर्क से जुड़े हुए हैं।

Fiberglass System: प्रकाश संचरण की एक ऐसी प्रणाली बड़ी तेजी से विकसित हुई है, जिसके माध्यम से उच्च गति पर सूचनाओं को दूर तक भेजना संभव हो पाता है। इसमें सूचनाओं को एक विशेषlectric signal में बदल दिया जाता है, जिसे एनकोडिंग' कहते हैं। फिर उनको प्रेषक Transmitter द्वारा light signals में बदल कर Fibre Glass में से गुजारते हुए दूसरी जगह तक पहुंचाया जाता है। Receiver द्वारा इन light signals को electric signals में बदल दिया जाता है, जिसे decoding कहते हैं।

साइबर क्राइम

पिछले दो दशकों से भी कम समय में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से जुड़े क्षेत्रों में हुई प्रगति ने सरकारी, वैज्ञानिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक अवसंरचनाओं में क्रांति ला दी है। इंटरनेट के इस्तेमाल ने अलग-थलग पड़े सिस्टम्स तथा अत्यधिक निकटवर्ती नेटवर्क के साथ आपस में जुड़ गया है। इससे पूरी दुनिया एक वैश्विक गांव बन गया है।

भारत में 'आईटी कानून-2000' लागू होने के बाद साइबर अपराधों को पहली बार व्यवस्थित ढंग से परिभाषित किया गया है । इस अधिनियम के अनुसार 'कोई भी ऐसा गैर कानूनी कृत्य जिसमें कंप्यूटर एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया गया हो या उसे लक्ष्य बनाया गया हो या वह लक्ष्य तथा औजार दोनों हो, साइबर अपराध कहलाता है।

अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा कंप्यूटर अपराध को भी अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है जिसमें प्रमुख है- कंप्यूटर नेटवर्क को हैक करके उसमें संगृहीत आंकड़ों को चुराना और फिर अपने सामाजिक-राजनैतिक तथा व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्रियों के खिलाफ उनका इस्तेमाल करना। पीसी हैकिंग, साइबर फ्रॉड, साइबर टेररिज्म, साइबर ब्लैकमेलिंग, साइबर हैकिंग इत्यादि कंप्यूटर अपराध के ही रूप हैं।

कंप्यूटर वायरस

कंप्यूटर तकनीक में वायरस (Computer Viruses) की प्रकृति ठीक जैविक वायरस की तरह होती है। यह एक खास तरह का प्रोग्राम होता है जिसे इस तरह विकसित किया जाता है ताकि वह कंप्यूटर के डाटा को नुकसान पहुंचा सके। यह जैविक वायरस की तरह स्वयं को अन्य कंप्यूटर के संपर्क में आने पर उन्हें संक्रमित कर लेता है जिससे मूल प्रोग्राम सुचारू रूप से कार्य नहीं करता है। वर्ष 1950 में 'जॉन वान न्यमेन' ने सर्वप्रथम कंप्यूटर वायरस की कल्पना की थी

वायरस के प्रकार

1. निवासी वायरस ( Resident Virus): वायरस का यह एक स्थायी रूप है जो रैम (RAM) में रहता है। यह वहां से कंप्यूटर द्वारा की जाने वाली सभी कार्यों को नियंत्रित करता है। उदाहरण- Randex, CMJ, Meve

2.प्रत्यक्ष कार्यवाही वायरस (Direct Action Viruses): इस वायरस का मुख्य कार्य इसके चलाने पर दोहराना है तथा कार्यवाही करना। जब उचित दशा आते हैं तो यह वायरस फाइल और फोल्डर को संक्रमित कर देते हैं यह बैंच फाइल हार्ड डिस्क के रूट डायरेक्टरी में स्थित होता है तथा कंप्यूटर के बूट करने पर यह कार्य करता है। उदाहरण- Vienna Virus

3. ओवरराइट वायरस (Overwrite Viruses): इस वायरस की प्रकृति होती है संक्रमण वाले फाइल को पूरी तरह से मिटा देने की। इस प्रकार के वायरस को हटाने का एकमात्र उपाय फाइल को Delete करना ही है जिससे फाइल की मूल सामग्री नष्ट हो जाती है। उदाहरण- Way, Tri, Reboot

4. बूट सेक्टर वायरस (Boot Sector Virus): वायरस का यह प्रकार फ्लॉपी या हार्ड डिस्क के बूट सेक्टर को प्रभावित करता है। यह डिस्क का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जिसमें डिस्क के बारे में तथा प्रोग्राम की सारी जानकारियां स्थित होती है। उदाहरण- Plyboot. B, AntiExE

5 . मैक्रो वायरस (Macro Virus): मैक्रो वायरस वैसे फाइलों को निशाना बनाता है जिनका निर्माण मैक्रोज के प्रयोग करके बनाया गया है। उदाहरण- relax, Bablas

6. निर्देशिका वायरस (Directory Virus): निर्देशिका वायरस फाइल के पाथ को बदल देता है। जब हम EXE या .COM से संक्रमित प्रोग्राम फाइल को रन करते हैं तो यह स्वयं रन करने लगता हैं।

उदाहरण- क्पत. 2 टपतने

7. फैट वायरस (FAT Virus): फाइल आवंटन तालिका (File Allocation Table- FAT) डिस्क का एक भाग होता है जिसमें फाइलों का स्थान, खाली स्थान, बिना इस्तेमाल का स्थान आदि की जानकारी होती है। फैट वायरस इस सेक्शन पर हमला करते हैं तथा महत्वपूर्ण जानकारियों को नष्ट कर देते हैं।

ऑनलाइन सामग्री पर विवाद

केन्द्र सरकार ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर गैर धार्मिक एवं असामाजिक सामग्री प्रदर्शित करने की घटना पर कड़ा फैसला लेते हुए इन पर मुकदमा चलाने को अपनी मंजूरी प्रदान की हैं। इस संबंध में केन्द्र सरकार ने गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट समेत 21 वेबसाइट्स के खिलाफ निचली अदालत में रिपोर्ट दाखिल की। इस रिपोर्ट में सरकार की ओर से बताया गया है कि सोशल साइट्स पर विभिन्न धर्मों के बीच विद्वेष फैलाने वाली आपत्तिजनक सामग्री पाई गई है। ये वेबसाइट 'सूचना तकनीक प्रावधान 2011' का उल्लंघन कर रहे हैं। अतः केन्द्र सरकार ने सीआरपीसी की धारा 196 तहत इन 21 वेबसाइटों के खिलाफ राष्ट्रीय सम्मान, अखंडता और राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाने के मुद्दे पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है।

डिजिटल हस्ताक्षर

एक डिजिटल हस्ताक्षर, इलेक्ट्रॉनिक कागज को उसी प्रकार से प्रमाणित करता है जैसे हाथ से किए गए हस्ताक्षर प्रिंटेड कागज को। यह दस्तावेज भेजने वाले की पहचान तथा दस्तावेज का मूल रूप में होना सुनिश्चित करता है कि भेजने के दौरान इसमें कहीं भी किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ है। डिजिटल हस्ताक्षर का निर्गम सर्टिफिकेशन अर्थारिटी (CA) द्वारा किया जाता है तथा उस पर सर्टिफिकेशन अर्थारिटी के प्राइवेट की (Private Key) का हस्ताक्षर होता है। डिजिटल हस्ताक्षर में शामिल हैं- धारक (Owner), पब्लिक की, धारक का नाम, पब्लिक की की समाप्ति की तारीख, पब्लिक की के इश्यूकर्ता का नाम, डिजिटल हस्ताक्षर का क्रम संख्या तथा इश्यूकर्ता का डिजिटल हस्ताक्षर। डिजिटल हस्ताक्षर पब्लिक की इंफ्रास्टक्चर (PKI) टेक्नॉलाजी के द्वारा लागू होता है।

डिजिटल हस्ताक्षर सामान्यत: तीन प्रकार Class-1, Class-2 तथा Class-3 का होता है तथा तीनों Class में अलग-अलग स्तर के सुरक्षात्मक उपाय होते हैं। जैसे- MCA-21 के तहत काम करने वाली कंपनियों को Class-2 हस्ताक्षर करना होता है वहीं CA/CS/CW को इलेक्ट्रॉनिक डाटा MCA 21 के तहत फाइल करने पर Class 2 का हस्ताक्षर करना अनिवार्य है। डिजिटल हस्ताक्षर को निर्गत करने के लिए भारत में 7 सर्टिफिकेशन अथॉरिटी कार्य कर रहे हैं।

आधार योजना

आधार 12 अंकों वाला एक अद्वितीय नंबर है जिसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) देश के नागरिकों के लिए जारी करता है तथा इसकी सहायता से शासकीय एवं अर्ध-शासकीय एजेंसियां आवेदकों एवं लाभार्थियों की सही पहचान कर सकेगी। आधार के पंजीयन के लिए निवासियों की दस ऊंगलियों और आंख की बायोमैट्रिक स्कैनिंग की जाती है। इसके बाद उनकी तस्वीर खींची जाती है और प्रक्रिया पूरी होने पर एक नामांकन संख्या दी जाती है। नामांकन करने वाले एजेंसी द्वारा निवासियों को 20 से 30 दिन के भीतर आधार संख्या आवंटित की जाती है। यह आंकड़ा एक केन्द्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत की जाती है तथा उसे बुनियादी जनसांख्यिकी और बॉयोमीट्रिक जानकारियों से लिंक कर दी जाती है।

स्वचालित टेलर मशीन (ATM)

एटीम मशीन का आविष्कार जॉन शेफर्ड बैरन (John Shepherd Barron) द्वारा 1967 में किया गया था तथा इसे सर्वप्रथम बार्कलेज बैंक के एनफील्ड, ब्रिटेन शाखा में स्थापित किया गया था। आधुनिक एटीम पर उपभोक्ता की पहचान प्लास्टिक स्मार्ट कार्ड पर मैग्नेटिक पट्टी या चिप वाली स्मार्ट कार्ड का प्रयोग करने से होती है। इसमें कार्ड का विशिष्ट अंक, कार्ड समाप्ति की तारीख उपभोक्ता का एकाउंट नंबर होता है जिसकी पुष्टि उपभोक्ता अपना व्यक्तिगत पहचान संख्या (पिन) डालकर करता है। विभिन्न एटीम मशीन अलग-अलग तथा मिश्रण में ग्लोबल रियल-टाइम पेमेंट का उपयोग करते है जैसे Visa या Master Card | भारत सरकार की नेशनल पेमेंट कार्पोरेशन ने Visa या Master Card का विकल्प स्वदेशीय Rupay सिस्टम को 2011 में लांच किया है।

कृत्रिम बुद्धि ( Artificial Intelligence-AI )

कृत्रिम बुद्धि का तात्पर्य है कंप्यूटर के माध्यम से मनुष्य की बुद्धि और उसकी विचार प्रक्रिया का मॉडल बनाना ताकि कंप्यूटर भी मनुष्य के समान सोच-विचार कर सके। इसका आधार वाक्य है 'मनुष्य की बुद्धि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है- समस्याओं को हल करने की क्षमता'। व्यवहारिक दृष्टिकोण से वर्तमान में कृत्रिम बुद्धि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है विशेषज्ञ प्रणाली का विकास। इसके अंतर्गत ऐसी कंप्यूटर प्रणाली का विकास किया जाता है जो मानव विशेषज्ञों का स्थान ले सकें। यह निम्नलिखित दो तथ्यों पर आधारित है-

1. विशेषज्ञों की जानकारी एवं सूचना को एकत्रित करना ।

2. विशेषज्ञों की तार्किक प्रक्रिया एवं उनके निर्णय करने के तरीकों का अध्ययन करके उसके नियम तैयार करना । कृत्रिम बुद्धि शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1956 में सजॉन मैक कार्थी ने किया था।

डिजिटल कनवर्जेंस

डिजिटल कनवर्जेन्स (Digital Convergence) चार उद्योगों (सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और मनोरंजन ) को एक में अभिसरण (Conglomerate) को संदर्भित करता है।

यह उपभोक्ता और व्यापार उपयोगकर्ता के लिए नए अभिनव समाधान प्रदान करता है। डिजिटल प्रौद्योगिकी और डिजीटल सामग्री से बने संयुक्त उपकरण (जैसे स्मार्टफोन, लैपटॉप, इंटरनेट सक्षम मनोरंजन उपकरण तथा सेट टॉप बॉक्स), मिश्रित अनुप्रयोग (जैसे पीसी में गाना को डाउनलोड करना तथा मिश्रित नेटवर्क) (आईपी नेटवर्क) शामिल हैं।

इस स्थानांतरण प्रवृति के उदाहरण हैं माइक्रोसॉफ्ट के रइवग (आईटी से मनोरंजन के लिए), एप्पल प्वीवदम (आईटी से टेलिकॉम) और सोनी टंपव (उपभोक्त इलेक्ट्रॉनिक्स से आईटी) ।

राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी नीति-2011

राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी नीति- 2011 की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं;

1. IT तथा ITES क्षेत्र से आय को 88 अरब USD से बढ़ाकर 2020 तक 300 अरब डॉलर करना तथा निर्यात लक्ष्य वर्तमान 59 अरब डॉलर से बढ़ाकर 2020 तक 200 अरब डॉलर करना।

2. क्लाउड आधारित सेवाओं में भारत की वैश्विक भागीदारी को बढ़ाना तथा मोबाइल आधारित VAS (Value Added Services) को भी वैश्विक स्तर तक बढ़ाना।

3. सूचना आधारित 10 मिलियन नए पेशेवरों को तैयार करना ।

4. प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति को म. साक्षर करना ।

5. टियर-2 और टियर-3 शहरों में आईटी उद्योगों को बढ़ावा देना।

6. इस नीति का उद्देश्य लघु एवं मध्यम उपक्रमों तथा नए वेंचर्स को आईटी अपनाने के लिए वित्तीय लाभ उपलब्ध कराना।

क्लाउड कंप्यूटर

क्लाउड कंप्यूटर (Cloud Computing) इंटरनेट आधारित कंप्यूटर प्रक्रिया है जिसमें यूजर को अपने कंप्यूटर पर सभी सॉफ्टवेयरों और ऑपरेटिंग सिस्टम को लोड करने की आवश्यकता नहीं होती। ये सभी इंटरनेट के माध्यम से आवश्यकता के समय तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। क्लाउड कंप्यूटर से आंकड़ों ओर सूचनाओं को अप्रत्यक्ष रूप से इंटरनेट पर सेव कर सकते हैं। 'गूगल एक्स' क्लाउड कंप्यूटर का बढ़िया उदाहरण है जो बिजनेस एप्लीकेशन को ऑनलाइन उपलब्ध कराता है।

I Cloud - यह एप्पल की क्लाउड आधारित सेवा है जो यूजर को 5 GB तक क्लाउड में डाटा सेवा करने की मुफ्त सुविधा देता है जिसे यूजर किसी भी एप्पल उपकरण से इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर सकता है।

इंटरनेट बैंकिंग

इंटरनेट बैंकिंग को ऑनलाइन या नेट बैंकिंग भी कहते हैं। इंटरनेस बैंकिंग संबंधी मिलने वाली एक सुविधा है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति घर या कार्यालय या कहीं से भी कंप्यूटर का इस्तेमाल कर बैंक सुविधाओं; जैसे घर बैठे ही खरीददारी, पैसे का स्थानांतर के अलावा अन्य तमाम कार्यों और जानकारी के लिए बैंक से मिलने वाली सुविधा का लाभ उठा सकता है। इंटरनेट बैंकिंग सुविधाअ का लाभ उठाते समय बेहद सावधानियों की आवश्यकता होती है। आजकल 'फिशिंग' के द्वारा तकनीक के दुरूपयोग से इंटरनेट के जालसाज लोग खातों को हैक कर उन्हें हानि पहुंचा रहे हैं। इसके लिए बैंक के निर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

ई-लर्निंग

ई-लर्निंग सभी रूपों में सीखने और सिखाने की इलेक्ट्रॉनिक विधि है। सूचना तथा संचार प्रणालियां चाहे नेटवर्क लर्निंग हो या न हो सीखाने की प्रक्रिया को लागू करने के लिए एक विशिष्ट माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। ई-लर्निंग अनुप्रयोगों और प्रक्रियाओं में शामिल है - वेब आधारित शिक्षा, कंप्यूटर आधारित शिक्षा, आभासी शिक्षा ( Virtual Education) तथा डिजिटल सहयोग। इसके तहत शिक्षा सामग्री को इंटरनेट, इंटरनेट / एम्स्ट्रानेट, ऑडियो-वीडियो टेप, उपग्रह टीवी तथाCD ROM द्वारा पहुंचाया जाता है।

राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र

राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी - National Informatics Centre - NIC) भारत सरकार का एक प्रमुख वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थान है जिसकी स्थापना 1976 में सरकारी क्षेत्र में बेहतर पद्धतियों, एकीकृत सेवाओं तथा विश्वव्यापी समाधानों को अपनाने वाली ई-सरकार/ ई-शासन संबंधी समाधानों को प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था। वर्ष 1976 में तथा उसके बाद संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की 4.1 मिलियन यू.एस. डॉलर की सहायता से यह (एनआईसी) योजना कार्यरत है। रा. सू. वि. केन्द्र सूचना-प्रौद्योगिकी परियोजनाओं को केन्द्र तथा राज्य सरकारों के निकट सहयोग से निम्न क्षेत्रों में लागू कर रही है:

क) केन्द्र प्रायोजित योजना तथा केन्द्रीय क्षेत्र की योजना

ख) राज्य प्रायोजित तथा राज्य सरकार की योजनाओं।

ग) जिला प्रशासन द्वारा प्रायोजित योजना ।

राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि उसके सभी प्रयोक्ताओं को सूचना प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में नवीनतम प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो। यह सरकार के समग्र समाधान प्रदायकों में से एक है तथा बहुत से सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित अनुप्रयोगों में सक्रिय रूप से शामिल है।

रोबोटिक्स

इलेक्ट्रॉनक्सि, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और विभिन्न यांत्रिकी उपकरणों की मदद से कठिन और बार-बार किए जाने वाले कार्यों को बिना मानव की सहायता से किए जाने को रोबोटिक्स कहते हैं। तकनीकी भाषा में यांत्रिक मानव को रोबोट कहते हैं। कंप्यूटर को रोबोट में परिवर्तित करने के लिए निम्न तीन गुण होने चाहिए-

1. वातावरण से सूचना प्राप्त करने वाले सेंसर

2. प्राप्त हुए सूचनाओं को नवीन रूप में परिवर्तित करने वाले माइक्रोप्रोसेसर

3. एक एक्टुएटर्स जो वातावरण में परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊर्जा को नियंत्रित करे। सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड भारत की स्वदेशी रोबोट उत्पादन इकाई है।

अर्धचालक

अर्धचालक (Semiconductors) विद्युत चालकता युक्त एक सामग्री है जो परिमाण में चालक एवं विसंवाहक (Insulator) के मध्य पाया जाता है। इसका तात्पर्य है कि इसकी चालकता 10 से 10% सीमेंस प्रति सेंटीमीटर होती है। अध 'चालक आधुनिक उपकरणों जैसे ट्रांजिस्टर, सोलर सेल, अनेक प्रकार के डायोड जिसमें एलईडी भी शामिल है, डिजिटल और एनालॉग एकीकृत परिपथों ( Integrated Circuit) के निर्माण का आधार है। इसी तरह अर्धचालक (Semiconductor) सौर फोटोवोल्टिक पैनलों में प्रयुक्त होकर प्रकाश ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर लेते हैं।

सामान्यतः अर्धचालक क्रिस्टलीय ठोस होते हैं लेकिन एमॉरफश और लिक्विड अर्धचालक भी पाए जाते हैं। व्यावसायिक रूप से उपयोग होने वाले अर्धचालकों को बनाने के लिए सिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है।

फोटोवोल्टिक (Photovoltaics-PV) उपकरण

फोटोवोल्टिक एक विधि है जो सौर विकिरण को सीधे प्रत्यक्ष विद्युत शक्ति में अर्धचालकों की मदद से परिवर्तित कर देता है। फोटोवोल्टिक विद्युत उत्पादन के लिए सोलर पैनल की आवश्यकता होती है जिसमें अनेक सौर कोशिकाएं युक्त होती है।

नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सोलर सेल और फोटोवोल्टिक एरे (तितंले) की मांग बढ़ती जा रही है। वर्ष 2011 के अंत तक 67GW सौर फोटोवोल्टिक का उत्पादन हुआ था जो कुल विश्व ऊर्जा की मांग का 0.5% है। फोटोवोल्टि प्रभाव को सर्वप्रथम एलेक्जेंडर - एडमंड बेकवेरल ( Alexandre Edmond Becqueral) ने 1839 में दर्शाया था।

एलईडी और ओएलईडी (LED and OLED)

प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एलईडी) एक अर्धचालक (Semiconductor) प्रकाश का स्रोत है। एलईडी का उपयोग मुख्यतः संकेतक लाइटों के रूप में किया जाता है जबकि इसका उपयोग अन्य प्रकार के लाइटों के रूप में बढ़ रहा है। एलईडी की शुरूआत 1962 में एक व्यवहारिक इलेक्ट्रानिक घटक के रूप में शुरू की गई थी जो कम तीव्रता का लाल प्रकाश उत्सर्जित कर सकता था। जबकि आधुनिक संस्करणों में दृश्य, पराबैंगनी तथा अवरक्त तरंगदैधैर्य की उच्च क्षमता से युक्त प्रकाश उत्सर्जित कर सकते हैं। जब एक एलईडी को स्वीच ऑन किया जाता है तो इसके इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान छिद्र के सामने फिर से जुड़ने लगते हैं तथा फोटॉन के रूप में ऊर्जा को मुक्त करते हैं। इस प्रभाव को इलेक्ट्रो इमल्शन कहा जाता है तथा प्रकाश का रंग अर्धचालक के अंदर ऊर्जा अंतराल के द्वारा निर्धारित होता है।

ओएलईडी

जैविक प्रकाश उत्सर्जक डायोड (Organic Light-Emitting diode) एक प्रकाश उत्सर्जक डायोड है जिसमें जैविक यौगिकों की एक परत लगी होती है जिसमें विद्युत के प्रवाहित होने पर प्रकाश उत्पन्न होता है। यह जैविक अर्धचालकों पदार्थ दो इलेक्ट्रोड के बीच स्थित होते हैं जिसमें कम से कम एक पारदर्शी होता है।

ओएलईडी परिवार के दो घटक हैं; प्रथम वे जो छोटे अणुओं पर आधारित होते हैं तथा दूसरा जो पॉलिमर को रखते हैं।

प्लाज्मा

प्लाज्मा डिस्प्ले पैनल एक प्रकार का फ्लैट पैनल डिस्प्ले है जो बड़ी टीवी 30 इंच (76 सेमी.) या उससे बड़े में आमतौर पर प्रयोग होता है। इनकों विद्युत चार्ज आयनित गैसों के छोटे कोशिकाओं को उपयोग में लाने के कारण इन्हें प्लाज्मा कहते हैं। इसका मुख्य घटक सामान्यतः फ्लोरोसेंट लैप के नाम से जाना जाता है।

प्लाज्मा डिसप्ले के फायदे और नुकसान

फायदे: 1. बेहतर पिक्चर,2. एलसीडी की तुलना में ज्यादा बड़े एंगल से देखने की सुविधा तथा उच्च कोणों पर पिक्चर गुणवत्ता में गिरावट नहीं।

नुकसान: एलसीडीटीवी की तुलना में अत्यधिक विद्युत की खपत अत्यधिक ऊंचाई पर गैसों के स्क्रीन के अंदर तथा बाहर के दबाव में अंतर के कारण बेहतर ढंग से काम नहीं करना ।

लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (एलसीडी)

एलसीडी एक फ्लैट पैनल डिस्प्ले, इलेक्ट्रॉनिक विजुअल डिस्प्ले तथा वीडियो डिस्प्ले है जो लिक्विड क्रिस्टल के प्रकाश मॉडुलेटिंग (Modulating) के गुणों का उपयोग करता है। लिक्विड क्रिस्टल स्वयं सीधे प्रकाश उत्सर्जित नहीं करता है। एलसीडी का व्यापक रूप से उपयोग कंप्यूटर मॉनीटर बनाने, टेलीविजन उपकरणों के निर्माण, घड़ियों तथा वीडियो गेम के स्क्रीन निर्माण में उपयोग होता है। एलसीडी ने कैथोड के ट्यूब (ब्ज) डिस्प्ले को उपयोग में पूरी तरह से हटाने में कामयाब रहा है।

कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (सीएफएल)

सीएफएल एक फ्लोरोसेंट लैंप है जो पारंपरिक विद्युत बल्ब की जगह प्रकाश उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है। लैंप में एक ट्यूब होता है जो या तो सीधा या मुड़ा हुआ होता है जिसके आधार में कॉम्पैक्ट इलेक्ट्रॉनिक ब्लास्ट होते हैं।

सभी फ्लोरोसेंट लैंपों की तरह सीएफएल में पारा (Mercury) होता है। ये विद्युत के प्रयोग से पारा वाष्प को तैयार करते हैं जो छोटी- तरंगों का पराबैंगनी प्रकाश उत्पन्न करते हैं जिससे दृश्य प्रकाश उत्पन्न होता है। पारंपरिक बल्ब टंगस्टन फिलामेंट से बने होते हैं, और ये 100 वाट विद्युत को केवल 2% प्रकाश में परिवर्तित करते हैं वहीं फ्लोरोसेंट लैंप 22 प्रतिशत प्रकाश में परिवर्तित होते हैं।

इनकी आयु भी पारंपरिक बल्ब की तुलना में 10 से 20 गुणा अधिक होते है।

हालांकि फ्लोरोसेंट लैंप से अल्प मात्रा में पराबैंगनी किरणों के उत्सर्जन से स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है। जो व्यक्ति पराबैंगनी किरणों से संवेदनशील होते हैं उन्हें गंभीर बीमारी होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

कैथोड रे ट्यूब (सी.आर.टी.)

कैथोड रे ट्यूब एक वैक्यूम ट्यूब है जिसमें एक इलेक्ट्रॉन गन (इलेक्ट्रॉनों का एक स्रोत) तथा एक छवियों को देखने के लिए फ्लोरोसेंट स्क्रीन होता है। इसमें इलेक्ट्रॉन बीम को कम या ज्यादा करके फ्लोरोसेंट स्क्रीन पर दृश्यों को लाया जाता है। दृश्य विद्युत वेबफॉर्म, पिक्चर रूप में प्रदर्शित होते हैं। सीआरटी का इस्तेमाल मेमोरी उपकरणों के रूप में भी होता है। सीआरटी को उपभोक्ता वस्तुओं में इस्तेमाल होने पर इसमें मोटे ग्लास का उपयोग होता है जो उत्पन्न होने वाले अधिकतर एक्स-रे को रोक लेता है।

उच्च स्पष्टता टेलीविजन (एच.डी.टी.वी.)

यह एक प्रकार का वीडियो है जिसका रिजॉल्यूशन परंपरागत टेलीविजन की तुलना में काफी अधिक होता है। एच.डी.टी.वी. | में प्रति फ्रेम एक या दो मिलियन पिक्सल होता है जो कि परंपरागत टेलीविजन से 5 गुणा अधिक है। (12807205921600ए 720च के लिए तथा 1920 x 1080 = 2.073,600, 1080p के लिए)। प्रारंभ में एच.डी.टी.वी. प्रसारण के लिए एनॉलॉग सिग्नल का प्रयोग करता था जबकि आजकल वीडियो संपीड़न तकनीक का उपयोग करते हुए डिजिटल प्रसारण कर रहा है।

ट्रिपल प्ले

दूरसंचार के क्षेत्र में ट्रिपल प्ले एक मार्केटिंग शब्द है जिसमें एक ही ब्राडबैंड कनेक्शन में उच्च गति इंटरनेट, टेलीविजन तथा फोन की सुविधा को उपलब्ध कराने से है। ट्रिपल प्ले संयुक्त व्यापार मॉडल (Combined Business model) पर ध्यान केन्द्रित करता है न कि तकनीकि मुद्दों को हल करने या समान मानक सुनिश्चित करने पर पहली बार ट्रिपल प्ले का उपयोग इतालवी (Itatian ) वेब ऑपरेटर, फास्ट वेब (Fastweb) द्वारा 2001 में किया गया था।

लेसर

लाइट एम्प्लिफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन (Light Amplibication by Stimulated Emission of Radiation) को संक्षिप्त रूप में लेसर ( LASER) कहते हैं। प्रकाश तरंगों पर आधारित 'लेसर' एक ऐसी युक्ति है जिसमें विकिरण के प्रेरित उत्सर्जन द्वारा एकवर्णी प्रकाश (Monochromatic Light) प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार लेसर तरंगों की आवृति समान होती है तथा इसके विभिन्न तरंगों की कला (चैम) भी स्थिर होती है। इसके मूलभूत सिद्धांतों की चर्चा सर्वप्रथम 1917 में आइंस्टीन द्वारा की गई थी परंतु वास्तविक खोज 1960 में अमेरिका की हेजेज अनुसंधान प्रयोगशाला में थियोडोर मेमैन द्वारा की गई।

लेसर की उपयोगिता

दूरी मापने में लेसर की सहायता से लम्बाई तथा समय के मात्रकों का अत्यंत शुद्ध एवं स्थायी निर्धारण किया जाता है। इसके द्वारा लम्बी दूरियां अत्यंत शुद्धता के साथ नापी जा सकती हैं। इसके अलावा, इसकी सहायता से अणु एवं परमाणुओं की आन्तरिक संरचनाओं को भी आसानी से समझा जा सकता है।

होलोग्राफी में साधारण फोटोग्राफी से किसी वस्तु का केवल द्विविमीय चित्र (Two dimensional photography) प्राप्त होता है। इसके लिए सामान्य प्रकाश का उपयोग किया जाता है। परन्तु लेसर प्रकाश के उपयोग से एक विशेष प्रकार की त्रिविमीय फोटोग्राफी (Three dimensional photography) का प्रादुर्भाव हो सका है, जिसे होलोग्राफी (Holography) कहा जाता है। इसका उपयोग सिनेमा, दूरदर्शन तथा उच्च कोटि के माइक्रोस्कोप में किया जाता है।

संगीत के क्षेत्र में वर्तमान में लेसर का उपयोग डिस्को संगीत रिकॉर्डिंग में भी हो रहा है।

सूचना सम्प्रेषण में लेसर में सूचना सम्प्रेषण की असीमित क्षमता होती है। इस क्षेत्र में यह प्रकाश रेडियो तरंगों एवं सूक्ष्म तरंगों की अपेक्षा काफी अधिक उपयोगी साधन सिद्ध हो रहा है।

औद्योगिक क्षेत्रों में औद्योगिक क्षेत्र में डाटा नेटवर्क उपलब्ध कराने में लेसर की भूमिका सराहनीय है। लेसर एक संकेन्द्रित एवं आसानी से नियंत्रित करने लायक ऊर्जा स्रोत है। इसका उपयोग वेल्डिंग करने में किया जाता है। इस दौरान वेल्डिंग किये गये क्षेत्र के बगल में कोई क्षति नहीं होती है। इसके अलावा, काफी कठोर वस्तुओं को काटने, कपड़ा काटने एवं इंजीनियरों द्वारा मकानों एवं पुलों का सर्वेक्षण करने, टूटे बर्तनों का पता लगाने आदि में भी लेसर का उपयोग किया जा रहा है।

नाभिकीय संलयन में: लेसर के प्लाज्मा हीटिंग (Plasma Heating ) का उपयोग रिएक्टरों में प्रयुक्त ईंधनों के कृत्रिम निर्माण में होता है। इस विधि में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए लेसर एक प्रमुख साधन है।

दूरी मापने में: लेसर बीम बिना किसी बिखराव (Divergence) के काफी दूर तक संचरित होते हैं। माप परिशुद्धता के कारण इनके द्वारा ऊंचाई की माप मानचित्र निर्माण तथा सर्वेक्षण कार्य सरलतापूर्वक किये जाते हैं। सेना द्वारा दुश्मनों के ठिकानों का पता लगाने में भी यह उपयोगी है।

मौसम संबंधी जानकारी में इसके लिए 'लिडार' (Lidar) नामक एक यंत्र प्रयुक्त होता है, जिसमें लेसर बीम का प्रयोग किया जाता है। इससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर हवा एवं बादलों की गति के बारे में भविष्यवाणी की जाती है।

'लेसर मेमोरी' (Laser Memory) नामक उपकरण द्वारा विमानचालक रास्तों का चयन उचित ढंग से कर पाते हैं। 'स्टार वार' (Star War) में भी लेसर का ही प्रयोग होता है तथा उपग्रह आदि को अंतरिक्ष में ही नष्ट करना संभव हो पाता है।

समुद्री अध्ययन में समुद्र के अंदर की चीजों का अध्ययन करने के लिए लेसर युक्त कैमरों का प्रयोग किया जाता है।

लेसर युक्त उपकरणों से भूकंप के बारे में भी भविष्यवाणी की जाती है।

सफाई कार्य में: स्मारकों, भवनों, पुरातात्विक अवशेषों आदि को साफ-सुथरा रखने तथा उनको नवीनता प्रदान करने के लिए हाल ही में लेसर तकनीक का विकास किया गया है।

संचार के लिए लेसर का उपयोगः टेलीफोन की तारों द्वारा सूचना संचारण में यह समस्या है कि एक समय में केवल एक ही सूचना संचारित होती है। लेसर टेक्नोलॉजी पर आधारित ऑप्टिकल फाइबर की केबलों की सहायता से करीब 2,000 टेलीफोन संदेशों को एक साथ संचारित किया जा सकता हैं इनका भार भी तांबे की तारों की अपेक्षा काफी कम होता है। 50 मीटर ऑप्टिकल फाइबर का भार करीब 25 किलोग्राम होता है जबकि इसी लंबाई के तांबे के तार वजन लगभग 5 टन होता है।

चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में लेसर का उपयोग मुख्यतः सर्जरी के लिए होता है। लेसर का प्रयोग सर्जरी में तीन प्रकार से हो सकता है, काटने के लिए, कोशिकाओं को जलाकर नष्ट करने के लिए तथा कोशिकाओं को जोड़ने के लिए। ऑपरेशन के समय स्कालपेल प्रयोग करने का नुकसान यह है कि इसमें रुधिर वाहिनियों के कट जाने के कारण खून बहने लगता है, परन्तु यदि ऑपरेशन के लिए लेसर का प्रयोग किया जाये तो रक्त नहीं बहता, क्योंकि लेसर किरणें रुधिर वाहिनियों को कटने पर तुरंत ही सील कर देती हैं। इस प्रकार कटा हुआ भाग हमेशा सूखा रहता है। कार्बन डाई ऑक्साइड लेसर का प्रयोग हानिकारक कैंसर कोशिकाओं को जला कर नष्ट करने के लिए किया जाता है।

लेसर का प्रयोग मेडिकल वेल्डिंग में भी होता है जिसे कोएग्युलेशन कहते हैं। इसमें ऑर्गन लेसर की नीली हरी किरणों को घाव को स्थान पर डाला जाता है जो त्वचा की भूरी कोशिकाओं और लाल रुधिर कणिकाओं द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। और ये कोशिकाएं आपस में चिपक कर रक्त का थक्का बना लेती हैं जिससे रक्त बहना तुरंत बंद हो जाता है। लेसर का सबसे मुख्य उपयोग आंखों की सर्जरी में होता है। कुछ लोगों में आंखों के पीछे का रेटिना अपने स्थान से हट जाता है उसे फिर से चिपकाने के लिए लेसर का प्रयोग किया जाता है। लेसर रेडियल केरेटोटोमी प्रक्रिया द्वारा लेन्स के आकार को ठीक किया जाता है। हृदय की बाइपास सर्जरी, न्यूरासर्जरी आदि अतिसंवेदनशील शल्यचिकित्सा में भी लेसर अत्यंत उपयोगी हैं फाइबर ऑप्टिकल एन्डोस्कोपी भी लेसर पर आधारित है जिसमें बिना ऑपरेशन किये शरीर के आंतरिक अंगों की जांच-पड़ताल और इलाज किया जाता है। लेसर का उपयोग गॉल ब्लैडर तथा किडनी के पत्थर को तोड़ने में भी किया जाता है।

अंतरिक्ष विज्ञान में लेसर का प्रयोग: लेसर का अंतरिक्ष विज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण उपयोग विभिन्न ग्रहों एवं उपग्रहों की दूरी मापने में किया जाता है। लेसर का प्रयोग पृथ्वी के सतह पर होने वाली गतिविधियों का सही-सही पता लगाने के लिए किया जाता है। विभिन्न महाद्वीपों का पृथ्वी की सतह पर घूमने का अध्ययन बहुत ही सूक्ष्मता से किया जा सकता है। पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले किसी उपग्रह के प्रयोग से लेसर किरण को पृथ्वी के किसी स्थान पर डाला जाता है और उसे पृथ्वी पर किसी दूसरे स्थान पर प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार इन महाद्वीपों की सापेक्षित गति का अनुमान लगाया जाता है।

प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सामरिक दृष्टि से लेसर का प्रयोग काफी महत्वपूर्ण हो गया। युद्ध स्थल में टैंकों और तोपों की सही स्थिति की जानकारी के लिए एवं उनको लक्ष्य बनाने के लिए लेसर का प्रयोग होता है। मार्क्स टारगेट सीकर नामक संयंत्र भी लेसर पर आधारित है। इसमें सैनिक अपने लक्ष्य को लेसर डेजिग्नेटर की सहायता से मार्क कर देता है फिर एक मिसाइल टारगेट की दिशा में छोड़ दी जाती है जिसमें टारगेट सीकर नामक संयंत्र लगा रहाता है। सीकर लक्ष्य से टकरा कर लौटने वाली लेसर किरणों के आधार पर जाकर सीधे लक्ष्य पर वार करता है।

लेसर का उपयोग अन्य क्षेत्रों में भी किया जा रहा है। एक ओर जहां लेसर किरणों का उपयोग दूरसंचार साधनों एवं उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक में किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरणीय प्रदूषण को नियत्रित करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। आजकल प्रतिरक्षा के क्षेत्र में भी लेसर का उपयोग काफी अधिक हो रहा है। ऐसी आशा की जाती हैं कि निकट भविष्य में लेसर मानव जीवन का एक अभिन्न साथी बन जायेगा।

भारत में लेसर प्रौद्योगिकी

भारत में लेसर प्रौद्योगिकी की शुरुआत काफी पूर्व में ही हो गयी थी । सर्वप्रथम 1964 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र द्वारा गैलियम - आर्सेनिक (Ga-As) लेसर का विकास किया गया। बार्क (VkWEcs) एवं टी. आई.एफ.आर. द्वारा 20 किलोमीटर की दूरी में प्रकाशीय संचार लिंक स्थापित करने (1965-66) में इसका उपयोग किया गया था। इसके बाद से लेसर एवं इससे संबंधित अध्ययन लगातार जारी है। इन लेसर किरणों की गुणवत्ता भी काफी अधिक हैं। वर्तमान में भारत में लेसर के क्षेत्र में काफी प्रगति हो रही है। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की लेसर स्पेक्ट्रोस्कोपी प्रयोगशाला तथा ऐसे ही कई अन्य शोध संस्थानों में लेसर के क्षेत्र में अनुसंधान हो रहे हैं। देश के कुछ प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में लेसर थिरेपी तथा लेसर सर्जरी आरंभ हो चुकी है। लेसर के उपयोग से कैंसर का उपचार भी किया जा रहा है। केन्द्रीय सरकार के संस्थान के रूप में स्थापित मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर में CAT (Centre for Advanced Technology) संस्थान में लेसर किरणों के उत्पादन एवं इनके विभिन्न उपयोगों पर सतत अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। बार्क ने 500 केईवी का डीसी एक्सेलेरेटर सफलतापूर्वक विकसित किया है जो वाशी, नवी मुंबई के ब्रिट (बीआरआईटी) कॉम्पलेक्स में लगा है। यह एक्सेलेरेटर सतह सुधार अध्ययनों तथा प्रयोगों में इस्तेमाल होता रहा है। मैसर्स रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे उद्योग इसे प्लास्टिक शीट्स और ग्रेन्यूल्स की क्रासलिंकिंग के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। मैसर्स हिन्दुस्तान लीवर्स लिमिटेड इस सुविधा का उपयोग करके अपने यहां उत्पादित गेहूं के आटे को विकिरण विहीन करने की योजना बना रही है। इस एक्सेलेरेटर की मदद से बार्क और चेन्नई के वैज्ञानिक आई.आई.टी मद्रास डाई इलेक्ट्रिक्स और इंसुलेटरों पर विकिरण से होने वाले नुकसान का अध्ययन कर रहे हैं।

लेसर की कार्य प्रणाली

लेसर के तीन मुख्य भाग होते हैं:

(i) उर्जा स्रोतः जो बिजली, साधारण प्रकाश या लेजर किरण में से कोई एक हो सकता है।

(ii) सक्रिय माध्यम: यह वह माध्यम है जिससे लेसर की उत्पत्ति होती है। यह ठोस हो सकता है जैसे- रूबी क्रिस्टल, द्रव हो सकता है जैसे- कुछ डाई, गैस हो सकता है जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड ।

(iii) रिजोनेटर (Resonator ) : यह दो आंशिक रूप से परावर्तक दर्पणों से बना होता है जो इस नली के दोनों किनारों पर स्थित होते हैं, जिसमें सक्रिय माध्यम स्थित होता है। ये परावर्तक दर्पण सक्रिय माध्यम में उत्पन्न लेसर बीम की तीव्रता को बढ़ाने का कार्य करते हैं।

सक्रिय माध्यम में उपस्थित परमाणुओं को जब ऊर्जा स्रोत से ऊर्जा दी जाती है, तो वे एक सीमा तक उस ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं परन्तु इस सीमा के पश्चात से अतिरिक्त ऊर्जा को प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करते हैं। इस प्रकार ज्यों ही एक परमाणु प्रकाश का उत्सर्जन करता है वह अपने आस-पास के परमाणुओं को भी प्रकाश उत्सर्जन के प्रेरित करता है और इस प्रकार उत्सर्जन की एक श्रृंखला बन जाती है जो उत्तरोत्तर बड़ी होती जाती है। नली के किनारों पर लगे परावर्तक दर्पण इस प्रकार उत्पन्न प्रकाश को बार-बार भीतर की ओर परावर्तित करते रहते हैं और अंत में एक समय ऐसा आता है जब प्रकाश की इन सारी किरणों का तरंगदैर्ध्य एक समान हो जाता है। इस स्थिति को एम्लीफिकेशन कहते हैं। नली के एक सिरे पर एक छोटा छिद्र होता है, जिसमें से लेसर किरण बाहर निकल सकती है।

राष्ट्रीय लेसर कार्यक्रम (एन.एल.पी.) का मुख्य लक्ष्य महत्वपूर्ण लेसर विकास एवं उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना है, जिससे देश में सस्ते मूल्य पर स्वदेशी लेसर तथा लेसर-आधारित उपकरण सुगमता से उपलब्ध हो सकें और इनके आयात में कमी लाकर राजकोषीय घाटे को कम किया जा सके और लेसर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति की जा सके। चेन्नई के क्रिस्टल संवृद्धि केंद्र ने कुछ लेसर उत्पादन क्रिस्टल का उत्पादन के लिए चयन किया है। सी.एस.ओ. ने विभिन्न उपकरणों के लिए विविध प्रकार के होलोग्राम विकसित किए हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक समाज का कोई भी पहलू लेसर के प्रयोग से अछूता नहीं रह गया है। चाहे वह सिनेमा का पर्दा हो या युद्ध का मैदान, हॉस्पीटल हो या डांस क्लब हर जगह आज लेसर लाइटों का प्रयोग हो रहा है। लेसर हमारे आधुनिक जीवन शैली का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है।

3D

3D अर्थात तीन आयामी जिसमें लंबाई, चौड़ाई तथा ऊंचाई हो 3D फिल्म में इन्हीं चीजों के भ्रम का एहसास कराया जाता है। एक नियमित कैमरा से त्रिविम फोटोग्राफी के लिए छवियों को रिकार्ड दो दृष्टिकोणों से उत्पन्न किया जाता है तथा विशेष प्रक्षेपण हार्डवेयर आईवेयर भ्रम की गहराई उत्पन्न करते हैं। निम्नलिखित कुछ तकनीक हैं जिनकी सहायता से 3D फिल्मों को विकसित किया जाता है:

Anaglyph - त्रिविम फिल्मों के निर्माण के लिए यह शुरूआती तकनीक है। इस तकनीक से पहली फिल्म 1915 में प्रदर्शित हुई थी।

Polarization System ध्रुवीकरण सिस्टम से एक त्रिविम गति फिल्म को पेश करने के लिए दो छवियों को पेश कर रहे अलग-अलग माध्यमों को एक ही स्क्रीन पर आरोपित कर दिया जाता है। इसमें दर्शक जो चश्मा पहनता है उनमें ध्रुवीकरण की एक जोड़ी विभिन्न कोणों पर स्थित होती है। (दक्षिणावर्त/परिपत्र ध्रुवीकरण 90 डिग्री के कोण पर तथा 45 और 135 डिग्री में वामवर्त रैखिक ध्रुवीकरण के साथ)

Eclipse विधि इस विधि में एक एलसीडी शटर चश्मा प्रयोग किया जाता है।

हस्तक्षेप फिल्टर प्रौद्योगिकी ( Interberence Filter Technology) Dolby 3D दाएं और बाएं आंखों के लिए अलग-अलग तरंगधैर्य की लाल, हरे और नीले रंग के प्राकश का उपयोग करता है। चश्मा जो प्रत्येक तरंगधैर्य को फिल्टर करते हैं 3D छवि उत्पन्न करता है।

एनीमेशन

एनीमेशन 2D या 3D कलाकृति या मॉडल का तेजी से प्रदर्शन होने वाला क्रम है जिससे गति का भ्रम उत्पन्न होता है। 2D एनीमेशन को बनाने के लिए कम्प्यूटर में 2D बिटमैप ग्राफिक्स का प्रयोग किया जाता है या 2D वेक्टर ग्राफिक्स के द्वारा संपादित किया जा सकता है।

अतिचालक

ऐसे पदार्थ जिनमें विशेष परिस्थिति में विद्युत प्रतिरोध शून्य हो जाता है तथा वे विद्युत के पूर्ण चालक बन जाते है अर्थात् उनमें यदि विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो बिना किसी ऊर्जा क्षय के निरंतर प्रवाहित होती रहेगी, वे अतिचालक पदार्थ (Super Conductors) कहलाते हैं, तथा उनका यह विशेष गुण अतिचालकता कहलाता है। अतिचालकता की खोज 1911 में नीदरलैंड के एक भौतिकशास्त्री हाइके कैमरलिंघ ओंस ने की थी।

अतिचालकों के प्रकार

अतिचालक दो प्रकार के होते हैं- टाईप-1 और टाईप 21 सीसा, पारा और टिन के अत्यंत शुद्ध नमूने टाईप-1 प्रकार के अतिचालक हैं और उच्च तापमान वाले सेरेमिक अतिचालक जैसे- Ba, Cu, O, YBCO vkSj Bi, CaSr, Cu, O, टाईप-2 प्रकार के अतिचालक है।

उपयोगिता: चालकों में प्रतिरोधक गुण के कारण ऊर्जा का काफी बड़ा भाग अनुप्रयुक्त रह जाता है। अतिचालक पदार्थ के उपयोग से ऊर्जा का अधिकाधिक प्रयोग किया जा सकता है। यह अतिचालकता की प्रथम व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। अतिचालकों का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है, जिनका विवरण निम्नलिखित है:

i) दूर-दूर तक विद्युत का वितरण (Transmission) बिना ऊर्जा क्षय के संभव हो सकेगा।

ii) परम्परागत चालकों में विद्युत प्रवाह से ताप ऊर्जा का निर्माण होता है। परन्तु अतिचालकों के उपयोग से इस गर्मी से इनसुलेटरों के गलने की संभावना समाप्त हो जायेगी, क्योंकि प्रतिरोध रहित अतिचालकों से विद्युत धारा के प्रवाह के समय ताप ऊर्जा का निर्माण होगा।

iii) छोटे विद्युत चुम्बकीय अतिचालक की सहायता से शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्रों का निर्माण हो सकता है।

iv) इन्टीग्रेटेड सर्किटों (ICs) के लिए तापमान घातक होता है, लेकिन अतिचालकों में धारा के प्रवाह के समय ताप उत्पन्न नहीं हो सकेगा। अतः इन्टीग्रेटेड सर्किटों के निर्माण में अतिचालक का उपयोग क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है।

v) स्क्विड (अतिचालकीय क्वांटम इन्टरफेरेन्स डिवाइसेज) का उपयोग हृदय रोग के उपचार में सहायक हो सकता है। मैग्नेटो कार्डियोग्राम की सहायता से हृदय में उत्पन्न विद्युत धारा का अध्ययन किया जा सकता है।

vi) अतिचालक विद्युत चुम्बकीय वलयों का उपयोग कर किसी भी वस्तु को पृथ्वी पर अथवा पृथ्वी से आकाश में प्रेषित किया जा सकता है।

vii) न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेन्स (एन.एम.आरए) अथवा मैग्नेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग (एम.आर.आई) की मदद से शरीर के किसी भी आंतरिक अंग का विस्तृत चित्र प्रस्तुत किया जा सकता है, जो अनेक रोगों के इलाज में काफी सहायक सिद्ध होगा।

(viii) मैग्नेटिकली लेमिनेटेड ट्रेन्स (एम.एल.टी.) परिवहन क्षेत्र में क्रांति ला सकता है। इस तरह की गाड़ियों में पहिये नहीं होते हैं। ये रेलगाड़ियां अन्य वाहनों की अपेक्षा काफी तेज चलती हैं, क्योंकि ये रेलगाड़ियां पटरियों से 4 इंच ऊपर हवा में टंगी हुई चलती हैं, जिससे घर्षण उत्पन्न नहीं होता है और गति सीमा में बाधा भी नहीं आती है। इस प्रकार की रेलगाड़ियां जापान एवं जर्मनी में चलायी जा रही हैं। जापान में इसकी गति सीमा 350 किलोमीटर से भी अधिक है। इसके अलावा, अतिचालकता का उपयोग उच्च शक्ति वाले छोटे विद्युत कारों एवं कम्प्यूटरों में भी किया जा रहा है।

राष्ट्रीय इलेक्टॉनिक नीति - 2011

केन्द्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 3 अक्टूबर, 2011 को राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक नीति का प्रारूप जारी किया, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं;

वर्ष 2020 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश के साथ 400 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार का लक्ष्य। इसमें 55 अरब अमेरिकी डॉलर का चिप डिजाइन कारोबार तथा 80 अरब डॉलर का सॉफ्टवेयर उद्योग से नियति भी शामिल है।

वर्ष 2020 तक 2.8 करोड़ रोजगारों का सृजन का लक्ष्य

देश की आवश्यकताओं की पूर्ति व अंतर्राष्ट्रीय बाजार हेतु नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स सहित वैश्विक प्रतिस्पर्धा इलेक्ट्रानिक प्रणाली डिजाइन एवं विनिर्माण का सृजन

भारत को इलेक्ट्रानिक विनिर्माण हब बनाने हेतु प्रारूप नीति में देश में 200 इलेक्ट्रानिक विनिर्माण क्लस्टर की स्थापना तथा ग्रीन फील्ड इलेक्ट्रानिक क्लस्टर की स्थापना के लिए आर्थिक सहायता का प्रस्ताव है।

परास्नातक शिक्षा को बढ़ावा देना तथा वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 2500 पीएचडी डिग्री प्रदान करना।

सुपर कम्प्यूटर के निर्माण में अतिचालक पदार्थों के उपयोग से उसमें उत्पन्न होने वाले तापीय ऊर्जा की मात्रा बहुत कम की जा सकती है। इसके उपयोग से सुपर कम्प्यूटरों का आकार भी छोटा किया जा सकता है तथा उसकी क्षमता बढ़ायी जा सकती है। इस प्रकार ऐसे सुपर कम्प्यूटर विकसित किए जा रहे हैं जिनको अंतरिक्ष वाहनों में रखकर बाह्य अंतरिक्ष के खोज के कार्यों में उपयोग में लाया जा सकता है। बी.एच.ई.एल. द्वारा एक अतिचालकीय उच्च श्रेणी की चुम्बकीय विभाजक प्रणाली का विकास किया गया है इसके उपयोग से मूल खनिज अयस्कों से सूक्ष्म आकार के दुर्बल चुम्बकीय अशुद्धियों को दूर करने में महत्वपूर्ण सफलता मिली है।

भारत में संरक्षणात्मक अतिचालकीय चुम्बकीय विभाजकों का उपयोग कुद्रेमुख परियोजना में जिरकोनियम प्रसंसकरण में किया जाता है। अतिचालकों का उपयोग करके विद्युत सर्किटों को अत्यंत कठोरता से बंद किया जा सकता है। भारत हैवी इंजीनियरिंग लिमिटेड (BHEL) ने अन्य संस्थानों की मदद से अतिचालक पदार्थों का उपयोग करके एक छोटे आकार तथा कम क्षमता का विद्युत जनरेटर बनाया है। इसके व्यावसायीकरण के लिए संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है।

भारत में अतिचालकता अतिचालकता के क्षेत्र में विकास के मद्देनजर 1987 में एक प्रोग्राम मैनेजमेंट बोर्ड (पी.एम.बी.) की स्थापना की गयी। 1991 में इसे परिवर्तित कर राष्ट्रीय अतिचालकता विज्ञान व तकनीकी बोर्ड (एन.एस.एस. टी.बी.) का रूप प्रदान किया गया। अनुसंधान के प्रथम चरण (1988-91) में राष्ट्रीय अतिचालकता कार्यक्रम के अंतर्गत 65 प्रोजेक्ट चलाये गये, जिनकी प्रयोगशालायें डी.ए.ई., सी.एस.आई.आर. एवं आई.आई.टी. तथा अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों में स्थित थीं। इसके दूसरे चरण (1991-95) के अनुसंधानों के अंतर्गत 6 नये प्रोजेक्ट प्रारंभ किये गये। इसके अंतर्गत वायट्रियम, विस्मथ एवं थैलियम जैसे अतिचालकों के विशेष एवं उच्चस्तरीय प्रयोग किये गये। बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.एस.आई.) के ठोस अवस्था संरचनात्मक रासायनिक इकाई में उच्च तापमान वाले अतिचालकों पर शोधकार्य किये जा रहे हैं। यहां अतिचालकों के पतले फिल्मों के निर्माण पर कार्य जारी है। हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा एक त्रिवीमीय कॉपर ऑक्साइड अतिचालक की खोज की गयी है। अभी तक इस ऑक्साइड के उच्च तापीय अतिचालकों का द्विवीमीय उपयोग ही संभव था। वायट्रियम ऑक्साइड नामक एक अन्य अतिचालक की खोज भी की गयी है, जो उच्च तापमान पर भी अतिचालकता का गुण प्रदर्शित करता है।

राष्ट्रीय अतिचालक अनुसंधान कार्यक्रमः भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 'राष्ट्रीय अतिचालक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम में संलग्न प्रमुख भारतीय संस्थाएं निम्नलिखित हैं ' :

1. राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL), दिल्ली

2. केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान- पिलानी

3. केन्द्रीय कांच एवं सैरेमिक अनुसंधान संस्थान कोलकाता

4.क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला-त्रिवेन्द्रम

5. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई

6. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC), बंगलौर

7. भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC),

8. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), चेन्नई ।

इलेक्ट्रानिक हार्डवेयर प्रौद्योगिकी पार्क योजना (EHTP )

निर्यातोन्मुखी इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (EHTP) योजना 1 अप्रैल 1993 को आरंभ की। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है-

1. केंद्र सरकार की पहल के बिना भी राज्य सरकारें सार्वजनिक या निजी प्रतिष्ठान तथा व्यक्ति अधोसंरचना हेतु ईएचटीपी की स्थापना कर सकते हैं।

2. ईएचटीपी में घरेलू बाजार गमन निम्नवत होगा;
(क) उपकरणों के संदर्भ में 25%
(ख) अवयवों के संबंध में 30%
(ग) पदार्थों के संबंध में 15.20%

3. हालांकि ईएचटीपी इकाई मूल्य परिवर्द्धन हेतु स्वतंत्र होगा तथापि उच्च मूल्य परिवर्धन उच्चतर बाजार गमन घटक के द्वारा प्रोत्साहित होगा।

4. ईएचटीपी इकाई के अंतर्गत समस्त आयात जैसे पूंजीगत वस्तुएं, कच्चे माल और अवयव शुल्क मुक्त होंगे।

निर्याप्त प्रोत्साहन पूंजीगत वस्तु (EPCG- Export Promotion Capital Goods Scheme) योजना सरकार द्वारा वैसे इलेक्ट्रॉनिक उद्योग जो निर्यातोन्मुख हैं उनके लिए निर्याप्त प्रोत्साहन के लिए ईपीसीजी योजना प्रस्तुत की हैं;

1. जीरो ड्यूटी ईपीसीजी इसके लिए वे इकाइयां पात्र होंगी जो शून्य शुल्क देकर पूंजीगत वस्तुओं का आयात करती है तथा उनके द्वारा बचाए गए आयात शुल्क का 6 गुणा अगले 6 वर्ष में पूरा करना होगा।

2. 3% ईपीसीजी : इसके अन्तर्गत इकाइयां 3% आयात शुल्क देकर बचाए गए आयात शुल्क का 8 गुणा अगले 8 वर्ष में पूरा करना होगा।

राष्ट्रीय क्षमता विकास

इलेक्ट्रानिक उद्योग के क्षमता विकास के लिए निजी तथा सरकारी पर्यास के अन्तर्गत एनएसडीसी एक गैर मुनाफे वाली कंपनी है। इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय श्रमिक वर्ग की कुशलता को बनाना तथा पहले से कुशल श्रमिकों की कुशलता में इजाफा करना है। एनएसडीसी की मुख्य भूमिकाएं निम्नलिखित हैं;

1. वित्त प्रदान करना तथा वित्तीय प्रोत्साहन देना

2. सम्बद्ध सुविधाएं देना ।

3. प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना।

मल्टीप्लेक्सिंग

दूरसंचार तथा कंप्यूटर नेटवर्क में मल्टीप्लेक्सिंग कई एनॉलाग तथा डिजीटल संदेशों को जोड़कर एकल परिपथ में संयुक्त कर साझा माध्यम द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य महंगे संसाधनों को साझा करने में हैं। इसकी शुरूआत टेलीग्राफ से होती हैं।

मल्टीप्लेक्सिंग के प्रकार

1. स्पेश-डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग

2. फ्रीक्वेंशी-डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग

3. टाइम डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग

4. कोड-डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग

ऑप्टिकल फाइबर

ऑप्टिकल फाइबर पारदर्शी, लचीला, फाइबर है जो शुद्ध ग्लास (सिलिका) से बना होता है, इसकी मोटाई मानव बाल के बराबर होती हैं। यह वेबगाइड या प्रकाश टाइप के रूप में कार्य करता है जो प्रकाश को फाइबर के दोनों सिरों पर संचारित करता है। अभियांत्रिकी तथा एप्लाइड विज्ञान जो इसके निर्माण और विकास से संबंधित होते है, फाइबर ऑप्टिक्स कहा जाता है। ऑप्टिकल फाइबर का व्यापक रूप से इस्तेमाल फाइबर ऑप्टिकल कम्यूनिकेशन के लिए किया जाता है जो लंबे दूरी तक ज्यादा बैंडविड्थ के साथ प्रसारण की सुविधा प्रदान करता है।

मोडेम

मोड्यूलेटर-डी-मोड्यूलेटर अर्थात मोडेम कंप्यूटर को बाहरी सूचना एवं दूरसंचार उपकरण से जोड़ने का कार्य करता है। इसका मुख्य कार्य बाहरी एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में बदलना व आंतरिक डिजिटल सिग्नल को एनॉलाग में बदलना है। यह सिग्नल मोड्यूलेशन प्रवृत्ति पर आधारित है।

ISDN - इंटीग्रेटेड सर्विसेज डिजिटल नेटवर्क: इसके अंतर्गत डिजिटल सूचना को सामान्य टेलीफोन नेटवर्क पर 128 इचे की रफ्तार पर प्रेषित किया जा सकता है। इसमें डाटा, विडियो और आवाज का एक साथ प्रसारण संभव है।

भारत में बी.एस.एन.एल., रिलांयस तथा एयरटेल, आई.एस.डी.ए. की सुविधा उपलब्ध कराने वाली प्रमुख कंपनी है।

PSTN पब्लिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क (पीएसटीएन) : यह विश्व का सार्वजनिक सर्किट स्विच टेलीफोन नेटवर्क है। इसमें शामिल होते हैं टेलीफोन लाइन, फाइबर ऑप्टिकल केबल, माइक्रोवेब ट्रांसमिशन, संचार उपग्रहों, सेल्यूलर नेटवर्क, तथा समुद्र के नीचे बिछे केबल, जो किसी भी टेलीफोन को किसी भी तरह के संचार उपक्रम से संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं। यह मूलतः फिक्सड लाइन एनॉलाग प्रणालियों का एक नेटवर्क है जो अब पूरी तरह से डिटिजल हो गया है।

मोबाइल फोन काम कैसे करता है: मोबाइल फोन या सेल फोन एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे विशेष बेस स्टेशनों के एक नेटवर्क के आधार पर आवाज या डेटा को पूरे भौगोलिक क्षेत्र में भेजा और प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए पूरे भौगोलिक क्षेत्र को कई छोटे क्षेत्रों में बांट कर प्रत्येक क्षेत्र में एक एंटीना स्थापित कर दिया जाता है। जब व्यक्ति मोबाइल फोन को लेकर एक सेल से दूसरे सेल में जाता है तो MISO (मोबाइल टेलीफोन स्वीचींग ऑफिश) के तहत उसका सिग्नल ट्रॉसफर हो जाता है।

जीएसएम जीएसएम (ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्यूनिकेशन) जिसे शुरू में ग्रुप स्पेशल मोबाइल के नाम से जाना जाता था, यूरोपीयन टेलिकम्यूनिकेशन स्टेन्डर्ड इन्स्टीट्यूट के द्वारा 2जी तकनीक के लिए बनाया गया था। यह 1 जी एनॉलाग सेल्यूलर नेटवर्क की जगह पर लाया गया था। यह स्टैण्डर्ड बाद में सर्किट स्वीच के द्वारा डाटा हस्तांतरण में तथा बाद में ळचै (ग्लोबल पैकेट रेडियो सर्विस) द्वारा डाटा हस्तांतरण में प्रयोग की जाने लगी। बाद में डाटा हस्तांतरण की दर को मक्ळम् (इन्हेंस्ड डाटा रेट फॉर जीएसएम इवाल्यूशन) तकनीक के द्वारा बढ़ाया गया।

जीएसएम सेल्यूलर नेटवर्क अपने क्षेत्र के पास के एन्टीना से कनेक्ट हो जाता है जिसकी अधिकतम दूरी 35 km ( 22 मील) है। जीएसएम नेटवर्क के पांच अलग-अलग तरह के सेल एन्टीना होते हैं जो हैं- मैक्रो, माइक्रो, पीको, फेमटा और अम्ब्रेला सेल। इन सभी एन्टीना का कवरेज क्षेत्र कार्यान्वयन वातावरण के अनुसार बदलता रहता है।

जीएसएम की प्रमुख विशेषताओं में सिम (SIM सब्सक्राइबर आइडेंटीफिकेशन मॉडयूल) है। यह बदला जा सकने वाला एक स्मार्ट कार्ड होता है जिसमें यूजर की पहचान तथा उसका फोन बुक होता है।

विश्व का पहला जीएसएम कॉल फिनलैंड के प्रधानमंत्री हैरी हॉल्केरी के द्वारा टाम्परे के महापौर को 1 जुलाई, 1991 को किया था। पहला ळैड नेटवर्क टेलीनोकिया और सीमेंस द्वारा बनाया गया था तथा रेडियोलिजा के द्वारा चालू किया गया था। एसएमस सेवा का आरंभ 1992 में किया गया था। भारत में लैंड नेटवर्क की शुरूआत अगस्त 1995 में टेलस्ट्रा (आस्ट्रेलिया तथा बी. के. मोदी ग्रुप के संयुक्त उपक्रम) द्वारा किया गया था। यह मोबाइल क्रांति कोलकाता से आरंभ हुई थी। उस समय एक हैंडसेट की कीमत 40,000 रु. तथा कॉल दर 17रु. मिनट था। इसका शुभारंभ पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कॉल करके किया था।

सीडीएमएसीडीएम यानी कोड डिवीजन मल्टीपल एक्सेस (CDMA ) एक चैनल अभिगम विधि है जो विभिन्न रेडियो संचार प्रौद्योगिकी के लिए प्रयोग किया जाता है। डेटा संचार की कई अवधारणाओं में एक अवधारणा है कई टांसमीटरों पर संदेश एक साथ भेजने की। इस अवधारणा को बहुअभिगम कहा जाता है। एक से अधिक लोग जब एक ही समय में जब एक दूसरे से बात करते हैं तो उस समस्या से बचने के लिए समय विभाजन, आवृत्ति विभाजन और कोड डिवीजन का प्रयोग किया जाता है। सीडीएमए कोड डिवीजन का एक उदाहरण है।

सीडीएमए वन कुआलकोम के द्वारा विकसित पहली डिजिटल सेलुलर मानक है इसे Interim standard 95 (IS- 95) कहा जाता है तथा इसका ब्रांड नाम बकउंवदम है।

CDMA 2000 : इसे IMT multi-carrier (IMT-MC) के नाम से भी जाना जाता है। यह 3G परिवार का सदस्य हैं जो आवाज, डेटा और संदेश भेजने के लिए कड तकनीक का प्रयोग करता है। CDMA - 2000 टेलिकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन-अमेरिका का पंजीकृत ट्रेडमार्क है।

WCDMA (UMTS): वाइड बैंड सीडीएमए वायु अंतरफलक में पाया जाने वाला 3G मोबाइल तकनीक है। यह 5MHz के रेडियो चैनल के जोड़े पर प्रसारित होता है।

मोबाइल की पीढ़ियां

पीढ़ियों का नामाकरण सेवाओं के मौलिक स्वभाव में हुए परिवर्तनों को व्यक्त करता है जो कि बैंडविड्थ नई आवृत्ति अँड आदि में होता है। नई पीढ़ी की सेवाएं लगभग हर 10 साल में बदलकर अपने उच्च स्तर की ओर चली जाती है। ये 1981 मे एनॉलॉग IG से शुरू होकर डिजिटल 2G जो कि 1992 में शुरू हुआ, 2001 में 3G तथा 10 से कम वर्ष में 2009 में 4G का आरंभ तक की कहानी है।

1G: 1G तकनीकी विकास, जो 1G तकनीक को अपने पहले के तकनीक से अलग करती थी वह है बात करते हुए यात्रा करने के दौरान एक साइट से अगले साइट में कॉल हस्तांतरण। यह 1979 में जापान की NTT कंपनी द्वारा शुरुआत किया गया था।

2G : 1990 के दशक में 2G तकनीक की शुरूआत हुई थी। यह लैंड मानकों का प्रयोग करता था। यह IG के एनालॉग तकनीक की जगह डिजिटल तकनीक का प्रयोग करता है। 1991 में पहला ळैड तकनीक रेडियोलिजा नाम से फिनलैंड में शुरू हुआ था। इसमे SMS Message भेजने की व्यवस्था थी जो आगे चलकर डाटा हस्तांतरण में परिवर्तित हो गया। इसका अन्य लेवल 2.5G तथा 2.75 है।

3G: 2G में डाटा हस्तांतरण की धीमी सुविधा जो कि वर्तमान में त्वरित हस्तांतरण की मांग है। इस कमी को पूरा करने के लिए 3ळ तकनीक का प्रयोग होता है। उळ डाटा हस्तांतरण के लिए पैकेट स्वीचिंग का प्रयोग करता है जबकि 2जी में सर्किट स्वीचिंग का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें त्वरित डाटा हस्तांतरण के कारण यह विडियो कॉल की सुविधा प्रदान करता है। 3 ळ तकनीक 2100 MHz के रेंज पर काम करता है तथा इसका बैंडविड्थ 15-20 MHz है। यह HSDPA+ तकनीक का उपयोग करते हुए अधिकतम 42 डइचे का स्पीड दे सकता है।

4G: 4G मोबाइल तकनीक चौथी पीढ़ी की मोबाइल तकनीक है जो गति की स्थिति में 100 डइपजधे की स्पीड प्रदान करती है तथा कम गति या स्थिर होकर उपयोग करने की स्थिति में हइपजधे की स्पीड प्रदान करती है।

दुनिया का पहला LTE (Long Term Evolution) पर आधारित 4G सेवा 2009 में दो स्कैंडिनोवियाई शहर स्टॉकहोम और ओस्लो में खोला गया। 4G प्रणाली के द्वारा व्यापक और सुरक्षित आई.पी. आधारित सभी मोबाइल ब्रांडबैंड, वायरलेस मॉडेम, स्मार्ट फोन आदि को प्रदान करने की उम्मीद की जा रही है।

मोबाइल बैटरी

बैटरी मोबाइल की जीवन है। इसके बिना मोबाइल के प्रयोग को संभव नहीं बनाया जा सकता। यही कारण है कि मोबाइल फोन के डिजाइनरों का प्रयास होता है कि हल्के से हल्का तक पावर को कम से कम क्षति के साथ उनका लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सके।

  1. मोबाइल फोन में निम्नलिखित चार प्रकार के रिचार्जेबल बैटरी का प्रयोग होता है। इनमें से प्रत्येक के कुछ फायदे तथा नुकसान लिथियम पॉलिमर (ली- पॉली) Li-poly) बैटरी: ली-पॉली सेल फोन के लिए सबसे आधुनिक एवं सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी है। यह सबसे ज्यादा हल्के होते हैं तथा 'मेमोरी इफेक्ट' से प्रभावित नहीं होते हैं तथा 40 प्रतिशत तक ज्यादा उर्जा प्रदान करते हैं निकल हाइब्रिड बैटरी से।'मेमोरी इफेक्ट' के तहत रिचर्जिबल बैटरी चार्जिंग को खत्म दिखाने के बाद भी अपनी क्षमता को कम करके कुछ समय के लिए आंकड़ों को याद रख सकता है।
  2. लिथियम आयन (ली - आयन) (Li-ion) बैटरी ली-आयन बैटरी सेल फोन के लिए वर्तमान में सर्वाधिक लोकप्रिय तकनीक है। इसकी केवल एक ही खराबी है कि वे महंगे होते हैं जिसके कारण ये केवल शीर्ष मोबाइल कंपनियों के द्वारा ही प्रयोग में लाए जाते हैं। लिथियम आयन बैटरी को ज्यादा ओवर चार्ज (लगातार 24 घंटे तक चार्जर में लगा रहना) पर बैटरी को नुकसान पहुंचाता है।
  3. निकेल कैडमियम (Nicd) बैटरी: Nicd बैटरी सेल फोन की पुरानी तकनीक है। यह एक रिचार्जेबल बैटरी है जिससे अधिकतर लोग परिचित हैं। इसकी एक बहुत बड़ी समस्या है इसका 'मेमोरी इफेक्ट' जो चार्जिंग के खत्म होने पर पूरी तरह डिस्चार्ज हो जाता है तथा आंकड़े संरक्षित नहीं रह पाते हैं। इसके निर्माण में जो रसायनों का प्रयोग होता है वे पर्यावरण के अनुकूल नहीं है तथा उनका निपटान एक बढ़ती हुई समस्या हैं। यह मोबाइल बैटरी की एक सस्ती किस्म है जो मोबाइल की कुल लागत को कम करने में मदद करती हैं।
  4. निकेल मेटल हाइब्रीड बैटरी: NIMH बैटरी Nicd बैटरी से उन्नत होने का दावा करते है क्योंकि इनमें कैडमियम शामिल नहीं है। इनका निर्माण गैर विषैले सामग्री से होता है जो पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये आकार और वजन की तुलना में उच्च क्षमता को प्रदान करते हैं तथा बहुत सीमित मात्रा में 'मेमोरी इफेक्ट' भी प्रदान करते हैं।

Wi-Fi : वाई फाई एक तंत्र है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिना भौतिक संपर्क के डेटा के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है। 'वाई-फाई', वाई-फाई एलांयस का ट्रेड मार्क है जो कि IEEE 802-11 मानक का उपयोग करता है।

यह डेटा हस्तांतरण के लिए रेडियो फ्रीक्वेंशी तकनीक का प्रयोग करता है जब RF तरंगों को ऐंटीना में प्रवाहित किया जाता है तो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड तैयार होता है। यह फील्ड एक्सेस प्वाइंट (AP) के माध्यम से वायरलेस तरंगों के द्वारा प्राप्त करने वाले उपकरण के कनेक्ट होने पर हस्तांतरण शुरू करता है।

एक Wi-Fi के द्वारा 30 क्लाइन्ट को 103मी. के परिधि में डेटा हस्तांतरण कर सकता है जो कि घर के अंदर 20 मी. तक करता है I

Wi max- Worldwide interoperability for microwave Access एक संचार तकनीक है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में उच्च गति से इंटरनेट सेवा को प्रदान करती है। यह 2011 में अपने परिवर्धित रूप में 1gbit निश्चित स्टेशन से बिट रेट प्रदान करता है। यह एक चौथी पीढ़ी (4G) का संचार तकनीक है जो 50 km की त्रिज्या में सेवा प्रदान करता है। इसके बैंडविड्थ को भी कई क्लाइंटों में विभाजित किया जा सकता है। इसके प्रयोग से शहरों में मोबाइल ब्राडबैंड कनेक्टिविटी, आईपीटीवी (IPTV) दूरसंचार (VOIP) तथा व्यापार की निरंतरता के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी का एक प्रमुख स्रोत है।

ब्लूटूथ : यह कम दूरी के लिए संचार हस्तांतरण तकनीक है जो कि कम दूरी 10m में 1 mbps के स्पीड से 2.4GHz फ्रीक्वेंशी का उपयोग करता है। ब्लूटूथ स्कॉडनेवियाई शब्द Biantand / Blatann का इंगलिश रूप है। यह सम्मान 10वीं सदी के राजा हेराल्ड-I को डेनिश पिछड़ी हुई जनजातियों को एक ही साम्राज्य में मिलाने के लिए दिया गया था।

WiB: (Wireless Broadband) यह एक वायरलेस ब्राडबैंड इंटरनेट तकनीक है जिसे दक्षिण कोरियाई दूरसंचार उद्योग द्वारा विकसित किया गया। वाइब्रो के द्वारा 2012 के अंत तक 10उइपजधे की ब्राडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान हो पाएगी।

WAP: Wireless Application protocol (वायरलेस एप्लीकेशन प्रोटोकॉल) एक तकनीक मानक है जिसका प्रयोग वारयलेस मोबाइल नेटवर्क के लिए किया जाता है। वैप ब्राउजर एक वेब ब्राउजर है जो मोबाइल उपकरणों में डेटा सेवा की सुविधा प्रदान करता है जिससे इंटरनेट की सुलभता मोबाइल उपकरणों पर संभव हुई है। जैसे:

  • मोबाइल फोन से इ-मेल भेजना।
  • न्यूज हेडलाइन
  • गानों का डाउनलोड
  • खेलों के समाचार
  • स्टॉक मार्केट प्राइस की टूकिंग
  • वैप मानक प्रोटोकॉल सूट को विभिन्न (CDMA ) IS - 95 तथा GSM तकनीकों को साफ्टवेयर के रूप में प्रयोग करता है।

    GPRS : जनरल पैकेट रेडियो सेवा General Packet Radio Service) एक पैकेट आधारित वायरलेस संचार सेवा है जो 56kbps की दर से मोबाइल फोन और कम्प्यूटरों को डेटा सेवा की सुविधा प्रदान करती हैं। कचै का उपयोग चार्ज डेटा की मात्रा पर निर्भर करता है जो सर्किट स्वीच में चार्टिज प्रति सेकेंड या प्रति मिनट पर निर्भर करता है।

    ब्राडबैंड तथा इसके उपयोगः ब्राडबैंड दूरसंचार सिग्नल को व्यक्त करता है जिसमें दूसरे सिंग्नल की अपेक्षा ज्यादा बैंडविड्थ होता है। भारत में दूरसंचार विभाग द्वारा 256 इचे से उपर की पहुंच वाला इंटरनेट एक्सेस ब्राडबैंड कहलाता है। ब्राड बैंड के प्रमुख उपयोग हैं-

  • हाई स्पीड इंटरनेट
  • केबल टीवी नेटवर्क इंटरनेट के द्वारा
  • ऑन लाइन क्लासरूम की सुविधा
  • गांवों में पंचायत स्तर पर उनके कामों के निपटारे के लिए क्योस्क की सुविधा ।
  • सैटेलाइट फोन: सैटेलाइट फोन एक वायरलेस फोन है जो साधारण मोबाइल फोन के सेल साइटों की जगह ऑरबिट सैटेलाइट या परिक्रमा करते उपग्रहों से जोड़ता है। ये भी साधारण मोबाइल फोन की तरह आवाज हस्तांतरण, एसएमएस तथा कम बैंडविड्थ की इंटरनेट सेवा देता है। मोबाइल नेटवर्क में पूरे क्षेत्र को कई छोटे-छोटे भागों में बांट दिया जाता है तथा प्रत्येक क्षेत्र में एक एंटीना लगा होता है। इसे टॉवर भी कहते हैं। जब एक व्यक्ति बात करते हुए एक सेल से दूसरे सेल में जाता है तो वह ड (मोबाइल टेलिफोन स्वीचिंग ऑफिस) का प्रयोग करता है। सैटेलाइट फोन इसी जगह स्म्क (लो अर्थ ऑरबिट) उपग्रह का प्रयोग करता है। जब सैटेलाइट फोन को ऑन किया जाता है तो यह जितने सैटेलाइट या ग्रुप सैटेलाइट के साथ जुड़ा होता है सभी तक सिग्नल चला जाता है। जब व्यक्ति कॉल करता है तो उसके नजदीकी परिक्रर्मित उपग्रह तक सिग्नल जाता है जो जमीन के द्वारा जुड़े गेटवे से कनेक्ट होता है। तब गेटवे अपने पहुंच तक कॉल संभव बनाता है।

    सैटेलाइट फोन का उपयोग अधिकतर आपात काल के समय उपयोगी होता है, जब स्थानीय सेल नेटवर्क एंटीना प्राकृतिक आपदाओं आदि से क्षतिग्रस्त हो जाता है। सैटेलाइट फोन उपग्रहों से जुड़कर तब भी काम कर रहे होते हैं।

    आईफोन व आईपोड

    आईफोन एप्पल कंपनी का इंटरनेट और मल्टीमीडिया युक्त स्मार्टफोन है जिसे एप्पल कंपनी के सीईओ स्वर्गीय स्टीव जॉब्स ने 9 जनवरी 2007 को पहले आईफोन को प्रस्तुत किया था। एप्पल ने अपनी 5वीं पीढ़ी का आईफोन iphone 4s को 4 अक्टूबर 2011 को लांच किया।

    आईफोन में ios ऑपरेटिंग सिस्टम पाया जाता है जोMac OSX ऑपरेटिंग सिस्टम परिवार का सदस्य है। ऑपरेटिंग सिस्टम के कारण हाई स्पीड इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट, वेब ब्राउजिंग तथा एप्पल एप्लीकेशन स्टोर से अनेकों एप्प डाउन लोड कर सकते हैं।

    आईपैड आईपैड एक टैबलेट कंप्यूटर है जिसका निर्माण, विकास तथा विपणन एप्पल कंपनी के द्वारा किया जाता है। मुख्यतः | ऑडियो-विजुअल मीडिया के रूप में किताब, पत्रिकाओं, फिल्म गाने तथा खेल आदि को यह बेहतर तरीके से संभव बनाता है। इसका आकार और वजन स्मार्टफोन और लैपटॉप कंप्यूटर के बीच आता है। पचक में भी पवे ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग होता है जो डंब वेग परिवार का सदस्य है। इसमें केवल प्रोग्राम रन कर सकता है जो एप्पल के द्वारा स्वीकार्य हो या एप्पल स्टोर से डाउनलोड किए गए हों। यह LAN और इंटरनेट के लिए वाई-फाई कनेक्शन का उपयोग करता है।

    ग्लोबल पोजशनिंग सिस्टम

    ग्लोबल पोजशनिंग सिस्टम (GPS) एक अंतरिक्ष आधारित उपग्रह नेविगेशन प्रणाली है जो सभी मौसम में पृथ्वी पर या पृथ्वी के पास समय एवं स्थान की जानकारी प्रदान करती है। इसे अमेरिका के द्वारा संचालित किया जाता है तथा जीपीएस रिसीवर द्वारा प्राप्त किया जा सकता हैं।

    अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा 1973 में इसे बनाया गया था तथा पूरी तरह से 24 उपग्रहों से युक्त होकर 1994 में चालू हो गया था। यह वैश्विक हवाई यातायात के लिए रीढ़ की हड्डी है।

    जीपीएस की तरह अन्य देशों की भी कुछ नेविगेशन प्रणाली है जैसे रूस की ग्लोनास (GLONASS), यूरोपीय यूनियन की गैलीलियो पोजिशनिंग सिस्टम, चीन की कंपास नेविगेशन सिस्टम तथा इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम ।

    मोबाइल विकिरण

    मोबाइल संचार एक माध्यम के रूप में रेडियो आवृत्ति का प्रयोग करता है और जिस दर पर आरएएफ ऊर्जा (Radio frequency-RF) शरीर द्वारा अवशोषित होती है उसे विशिष्ट अवशोषण दर यानी एसएआर (Specific Absorption Rate- SAR) कहा जाता है।

    वैश्विक अध्ययन के अनुसार आरएएफ ऊर्जा का अधिक अवशोषण जो एसएआर की सीमा से परे हो, स्वास्थ्य से संबंधि त गंभीर विकारों को जन्म दे सकती है। वर्तमान में भारत अंतर्राष्ट्रीय गैर-आयनीकृत विकिरण संरक्षण एसोसिएशन आयोग (International Commission on Non-lonising Radiation Protection Association - ICNIRP ) मानदंडों के तहत 2 वाट/ किलोग्राम एसएआर का अनुसरण करता है। हाल ही में एक अंतर मंत्रालयी समिति ने मोबाइल टावरों से होने वाले विकिरण के प्रभावों को लेकर कुल 9 अनुशंसाएं की है। ये निम्नलिखित हैं;

  • मोबाइल टावरों से होने वाले विकिरण घनत्व की स्वीकार्य सीमा को 1/10 कम किया जाए।
  • घनी आबादी वाले क्षेत्रों, स्कूलों और अस्पतालों के निकट मोबाइल टावर लगाना प्रतिबंधित किया जाए।
  • बड़े शहरों में विकिरण स्तर की लगातार जांच और निगरानी की जाए और इसकी सारी जानकारी केन्द्रीय स्तर पर रखी जाए।
  • दूरसंचार मंत्रालय देश के हर मोबाइल बेस स्टेशन और उससे होने वाले विकिरण की जानकारी रखे और इसे सार्वजनिक करें।
  • मोबाइल कंपनियां शहर के प्रमुख स्थानों पर विकिरण का स्तर जांच कर जनता के लिए प्रदर्शित करें।
  • भविष्य में अधिक क्षमता के ऊंचे टावरों की जगह कम क्षमता के छोटे टावरों को लगाने की अनुमति दी जाए।
  • विकिरण के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों पर विस्तृत अध्ययन करवाया जाए।
  • मोबाइल हैंडसेट के इस्तेमाल के समय हैंडस फ्री का इस्तेमाल प्रोत्साहित किया जाए।
  • दूरसंचार मंत्रालय विकिरण के खतरे को देखते हुए एक पुस्तिका छपवानी चाहिए, जिसमें जनता को 'क्या करे और क्या न करे की जानकारी दी जाए।
  • वैसे सरकार ने नवीनतम मानदंडों के तहत मोबाइल हैंडसेट पर एसएआर को दर्शाना अनिवार्य कर दिया है।

    भारत में दूरसंचार उद्योग

    भारत में दूरसंचार उद्योग की स्थापना 1881-82 में कोलकाता में हुई थी तथा 700 लाइनों में क्षमता वाला पहला स्वचालित टेलीफोन एक्सचेंज 1913-14 में शिमला में चालू किया गया था।

    1 अक्टूबर, 2000 को नए सार्वजनिक उपक्रम बीएसएनएल का गठन किया गया तथा पहले के सभी दूरसंचार सेवा विभाग के कार्य इसे सौंप दिए गए। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) नामक स्वतंत्र विनियामक की स्थापना 1997 में की गई थी I

    राष्ट्रीय दूरसंचार नीति- 1994

    1. मांग के अनुसार टेलीफोन की उपलब्धता ।
    2. उचित दरों पर विश्वस्तर की सेवाओं की व्यवस्था ।
    3. दूरसंचार उपकरण के प्रमुख निर्माता एवं नियतिक के रूप में पहचान बनाना।
    4. गांवों में बुनियादी दूरसंचार सेवाएं उपलब्ध कराना।

    राष्ट्रीय दूरसंचार नीति- 1999

    1. उचित दरों पर कारगर सेवा उपलब्ध कराना।
    2. ग्रामीण, पिछड़े, पर्वतीय क्षेत्रों में सेवाओं का विस्तार
    3. अनुसंधान और विकास प्रयासों को बढ़ावा देना ।
    4. ऑपरेटरों की संख्या और उनके चयन का तरीका ट्राई की सिफारिशों के आधार पर निर्धारित होना।
    5. प्रवेश शुल्क और राजस्व का हिस्सााई की सिफारिश पर लागू होना ।

    राष्ट्रीय दूरसंचार नीति-2011

    1. ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन घनत्व को वर्तमान 35 से बढ़ाकर 2017 तक 60 और 2020 तक 100 करना ।
    2. वर्ष 2014 तक ऑटिकल फाइबर के माध्यम से सभी ग्राम पंचायतों को उच्च स्पीड के ब्राडबैंड उपलब्ध कराना।
    3. एक देश एक लाइसेंस की धारणा बनाने का प्रयास करना ।
    4. मोबाइल फोन को केवल संचार उपक्रम के रूप में बदलकर सुरक्षित वित्तीय लेन-देन की सुविधा से युक्त करना ।
    5. वर्तमान ब्राडबैंड स्पीड की 256 इचे से बढ़ाकर 2011 तक 512 इचे और 2015 तक 2 उइचे और उसके बाद 100 उइचे तक करना।
    6. प्रौद्योगिकी तटस्थ एकीकृत लाइसेंसों को दो अलग श्रेणियों में रखा जाएगा।
      (क) नेटवर्क सर्विस ऑपरेटर व कम्युनिकेशन नेटवर्क सर्विस ऑपरेटर
      (ख) सर्विस डिलीवरी ऑपरेटर व कम्युनिकेशन सर्विस डिलीवरी ऑपरेटर

    भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरणः भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण भारतीय दूरसंचार उद्योग के नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र संस्था है। इसकी स्थापना 20 फरवरी, 1997 को संसद के अधिनियम द्वारा हुआ था।

    दूरसंचार नीति 1994 को लागू करने के बाद इसने अत्यधिक मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा घरेलू निवेश को आकर्षित किया। इनको नियंत्रित करने के लिए ट्राई की स्थापना की गयी थी। ट्राई का नियंत्रण शुल्क दरों, भए मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी, इंटरकनेक्शन आदि पर विस्तृत रूप से दशा- निर्देश देने से होता है।

    मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी

    मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं को मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर बदलने के समय अपने मोबाइल नंबर को बनाए रखने की सुविधा प्रदान करता है। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने 25 नवंबर, 2010 को हरियाणा के रोहतक में (एमएनपी) की शुरूआत की।

    दूरसंचार विधेयक

    दूरसंचार विधेयक (The Telecom Commercial Communications Customer Preference Regualation- 2010) रेग्यूलेशन व्यवसायिक कॉल तथा SMS दोनों पर लागू होता है। पिछला रेग्यूलेशन जो पूरी तरह से क्छक लागू होता था, वहीं इस रेग्यूलेशन के लागू होने के बाद पूरी तरह से व्यवसायिक प्रतिबंधों के साथ-साथ कुछ व्यवसायिक कॉल तथा SMS की सुविधा से युक्त होगा। उपभोक्ता का रजिस्ट्रेशन पहले के 45 दिनों की जगह मात्र 7 दिनों में होगा, जो 1909 नंबर पर कॉल याडै करके किया जा सकता है।

    यूनिवर्सल सर्विस ऑबलिगेशन फंड

    यूनिवर्सल सर्विस ऑबलिगेशन फंड (USOF) ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में वहनीय और तर्कसंगत मूल्य पर लागों को टेलीफोन सेवा को प्रदान करना है। इसे 27 मार्च, 2002 को लागू किया गया था। दूरसंचार नीति 1999 के अनुसार (यूएसओएफ) के लिए संसाधन यूनिवर्सल एक्सेस लेवी के द्वारा किया जाता है। जो कि विभिन्न ऑपरेटरों द्वारा अर्जित धन पर लगाया जाता है।

    दूरसंचार का सामाजिक-आर्थिक पहलू

    जहां पहले भारत में गांव की अवधारणा को सामाजिक, आर्थिक, संरचनात्मक विकास के क्रम में पिछड़ेपन का पर्यायवाची माना जाता था वहीं दूरसंचार के प्रभाव से क्रान्तिकारी परिवर्तन नजर आ रहे है। इस परिवर्तन को लाने में सूचना क्रांति की महती भूमिका रही है। संचार लोगों को सूचनाओं से सुसज्जित करने में अहम भूमिका निभाता है। आज ग्रामीण और किसानों को संचार के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त करने के विभिन्न कार्यक्रम हैं जो ग्रामीणों को उनके कार्यों में सुगमता लाने सहायक सिद्ध हो रहे है। इनमें प्रमुख हैं;

    1. किसान कॉल सेंटर
    2. ई-चौपाल
    3. ग्राम ज्ञान केन्द्र
    4. कल्याणी
    5. कृषि दर्शन
    6. विभिन्न कमोडिटी एक्सचेंजों के त्वरित रेट।

    गांवों को इन सुविधाओं के अलावा शहरी क्षेत्रों में दूरसंचार सुविधाओं का उपयोग कर व्यापार की सुविधा, ऑनलाइन क्लासरूम, टेलीमेडिसीन, वी-सैट ऐंटीना के द्वारा एटीएम सेवा आदि प्रमुख है। दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति आज भ्रष्टाचार को कम करने में भी प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

    स्पेक्ट्रम, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का छोटा रूप है। यह उस विकिरण ऊर्जा को कहते हैं, जो धरती को घेरे रहती है। इस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (ईएमआर) का मुख्य स्रोत सूरज है। साथ ही, यह ऊर्जा तारों और आकाशगंगाओं से भी मिलती है। इसके अलावा, यह ऊर्जा धारती के नीचे दबे रेडियोएक्टिव तत्वों से भी मिलती है। ईएमआर का एक रूप दिखाई देने वाली रोशनी है, जबकि दूसरा रूप रेडियो फ्रिक्वेंसी (आरएफ) स्पेक्ट्रम होता है। साथ ही, ईएमआर में इन्फ्रारेड और अल्ट्रावायलेट किरणों जैसी कई दूसरे प्रकार और असर वाली वेवलेंथ भी होती हैं। हर देश को एक समान ही आरएफ स्पेक्ट्रम मिलता है। इसका इस्तेमाल निम्नलिखित तरीके से होता है:

  • एक वेव या तरंग की लंबाई, उसकी फ्रिक्वेंसी (वेवलेंथ या साइकल प्रति सेकंड) और उसकी ऊर्जा से इसका इस्तेमाल तय होता है।
  • रेडियो वेव तुलनात्मक रूप से काफी लंबे होते हैं। इनकी वेवलेंथ । किलोमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तक की होता है। इसकी फ्रिक्वेंसी भी 3 किलोहर्ट्ज ( 3,000 साइकिल प्रति सेकंड) से लेकर 3 गीगाहर्ट्ज (3 अरब साइकिल प्रति सेकेंड) तक के बीच होती है। इसे माइक्रोवेव्स के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, बिजली के मामले में वेव की लंबाई कई-कई किलोमीटर तक की होती है।
  • सेंटीमीटर और मिलीमीटर की रेंज वाले माइक्रोवेव्स की फ्रिक्वेंसी 300 गीगाहर्ट्ज तक की हो सकती है। इसके अलग-अलग प्रकार के इस्तेमाल को देखते हुए इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। खाना पकाने वाले माइक्रोवेव में सैकड़ों व बिजली का इस्तेमाल आरफ वेवलेंथ को पैदा करने में होता है।
  • ये वेवलेंथ 32 सेमी (915 मेगाहर्ट्ज ) से लेकर 12 सेमी (2.45 मेगाहर्ट्ज ) तक के होते हैं। छोटी ऊर्जा स्रोतों वाले उपकरण से पैदा होने वाले माइक्रोवेव का इस्तेमाल संचार के साधानों के रूप में होता है और ये काफी कम ऊर्जा पैदा करते हैं I
  • इन्फ्रारेड वेव छोटी होती हैं और वे काफी गर्म होती हैं। लंबी दूरी वाले इन्फ्रारेड बैंड्स का इस्तेमाल रिमोट कंट्रोल के लिए होता है। साथ ही, इनका इस्तेमाल बहुत कम गर्मी पैदा करने वाले बल्बों में होता है।
  • 700-400 नैनोमीटर के वेवलेंथ (करीब 430-750 टेराहर्ट्ज ) का इस्तेमाल सफेद रोशनी पैदा करने के लिए होता है।

  • छोटी वेवलेंथ से अल्ट्रावॉयलेट किरणों का निर्माण होता है, जो आपको पहुंचा सकती हैं। समुद्र के किनारे की धूप में 53 फीसदी इन्फ्रारेड, 44 फीसदी दिखाई देने वाली रोशनी और 3 फीसदी अल्ट्रावॉयलेट किरणें होती हैं।
  • कुछ छोटी वेव को एक्सरे कहते हैं और सबसे छोटी को गामा किरणें कहते हैं, जिनका इस्तेमाल चिकित्सा और उद्योगों में होता है।
  • आरएफ स्पेक्ट्रम का सबसे फायदेमंद इस्तेमाल दूरसंचार और इंटरनेट में होता है। दूरसंचार और ब्रॉडबैंड के लिए 700-900 मेगाहर्ट्ज की छोटी फ्रिक्वेंसी काफी फायदेमंद होती हैं। इससे लंबी दूरी तय की जा सकती हैं और वह भी बिना किसी दिक्कत के। रेडियो तरंगों को सबसे ज्यादा असर भाप और आयन से होता है। साथ ही, इन पर सोलर फ्लेयर और एक्सरे किरणों के विस्फोट का भी असर होता है। साथ ही, पहाड़ों की वजह से भी रेडियो तरंगों से संचार में काफी असर पड़ सकता है। छोटी फ्रिक्वेंसी मकानों और पेड़ों को भी पार कर सकती हैं। साथ ही, ये पहाड़ों के किनारे से भी निकल सकती हैं। बडी फ्रिक्वेंसी को वातावरण वापस प्रतिबिंबित या सोख सकता है। उन पर दूरी और बारिश का भी असर होता है। छोटी फ्रिक्वेंसी के नेटवर्क के लिए ज्यादा टावर की जरूरत होती है।

    स्पेक्ट्रम प्रबंधन हेतु नयी योजना

    केन्द्रीय संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने 30 सितंबर, 2011 को 'राष्ट्रीय आवृति आवंटन योजना' (national Frequency Allocation Plan NF AP-2011) 2011 जारी किया। यह दस्तावेज देश में सरकारी व निजी क्षेत्रकों में विकास, विनिर्माण, व स्पेक्ट्रम के उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के लिए आधार प्रदान करता है। एनएफएपी 2011 की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है;

    1. यह अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ के रेडियो विनियमन के अनुरूप है।
    2. इसका विकास अल्ट्रा वाइड बैंड (UWB) इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम, शार्ट रेंज डिवाइसेज इत्यादि जैसी नई प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता के आलोक में किया गया है।
    3. स्थानिक विकास व विनिर्माण हेतु कुछ फ्रीक्वेंसी बैंड में इस योजना द्वारा कुछ प्रावधान किए गए हैं।
    4. एनएफएपी- 2011 में पहले से मौजूद सेवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरी सावधानी बरती गई है।
    5. सभी हिस्सेदारियों की प्रायोजित मांगों को भी इसमें शामिल की गई है।

    इनमारसेट

    अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक उपग्रह प्रणाली- इनमारसेट 72 देशों की एक सामुद्रिक उपग्रह प्रणाली है, जो समुद्री जहाजों, वायुयानों तथा भूमि पर चलने वाले वाहनों को सूचनाएं भेजने एवं उनके संबंध में सूचनाएं एकत्र करने का कार्य करती है। भारत सरकार ने सामुद्रिक और आकाशीय संचार सुविधा के लिए स्वयं को इनमारसेट से संबद्ध कर लिया है। इसके अंतर्गत पूजा के निकट आर्वी में लैंड अर्थ स्टेशन की स्थापना की गयी है, जिसका नाम 'विक्रम इनमारसेट भूमि भू- केंद्र' रखा गया है। इस भू-केंद्र का विकास इनमारसेट-सी सुविधा प्रदान करने हेतु किया गया है। वर्तमान समय में इनमारसेट की तीन प्रणालियां कार्यरत हैं, जो निम्नलिखित हैं-

    (i) इनमारसेट - ए: यह मुख्यतया दूरभाष की सुविधा उपलब्ध करता है।

    (ii) इनमारसेट-बी: यह मोबाइल फोन की सुविधा उपलब्ध करता है।

    (iii) इनमारसेट-सी: यह संपूर्ण विश्व के आंकड़ों का आदान-प्रदान करता है।

    इनमारसेट के चार उपग्रह भू-स्थैतिक कक्षा में स्थित हैं, जिनमें दो अटलांटिक महासागर में तथा एक-एक हिंद महासागर व प्रशांत महासागर में स्थित हैं। इस उपग्रह प्रणाली के अंतर्गत विद्युत संकेतों को उच्च आवृत्ति पर प्रेषित किया जाता है और उच्च आवृति पर संचार के लिए ट्रांसमीटर एवं रिसीवर को इस प्रकार स्थित किया जाता है कि हवा में एक सीधी रेखा द्वारा उनको जोड़ा जा सके। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि उच्च आवृत्ति की चुंबकीय तरंगों का गमन सीधी रेखा में ही होता है और साथ ही लंबी दूरी तक संचार सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ट्रांसमीटर और रिसीवर को काफी ऊंचाई पर स्थित करना आवश्यक होता है। इस प्रणाली के अंतर्गत पृथ्वी पर स्थित ट्रांसमीटर से प्रेषित संवादों को उपग्रह द्वारा ग्रहण करके पुनः उसे पृथ्वी पर स्थित किसी रिसीवर तक भेज दिया जाता है, जिससे काफी लंबी दूरी तक संवादों का संप्रेषण हो सकता है और सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में भी संचार सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती है। इन उपग्रहों को निजी दूरसंचार तंत्र से जोड़ने के लिए संपूर्ण विश्व में बहुत सारे भूतलीय भू-स्टेशनों की स्थापन की गयी है। विश्व में मोबाइल टेलीफोन के माध्यम से संचार संपर्क प्रदान करने के लिए इनमारसेट 'पी' सेवा का विकास किया गया है। इस सेवा के विकास में महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एम.टी.एन.एल) ने भी अपना अंशदान दिया है।

    मल्टी मीडिया

    यह श्रव्य, दृश्य और कम्प्यूटरों का समायोजन है। मल्टी मीडिया की शुरुआत लेसर डिस्क और पर्सनल कम्प्यूटर के आविष्कारों से हुई। आधुनिक मल्टी मीडिया के आधार सी०डी० में लेसर किरणों का इस्तेमाल होता है। इसमें डिजिटल सूचनाएं भरी होती हैं। ये सूचनाएं संगीत, टेक्स्ट, दृश्य और संकेत के रूप में होती हैं। सी०डी० - रोम का इस्तेमाल इस समय प्रकाशन संस्थाओं, समाचार-पत्रों और पुस्तकों के प्रकाशन में होता है। आई०एम०ए० (इन्टरक्रिएटिव मल्टीमीडिया एसोसिएशन) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन मल्टी मीडिया को सुचारु रूप से चलाने हेतु निर्धारकों का विकास कर रहा है। इन निर्धारकों को एम०पी०सी० के नाम से जाना जाता है तथा इनके मानक को विश्वभर में स्वीकार किया जा रहा है। डेस्कटॉप मल्टी मिडिया दो प्रकार के होते हैं- इंटरएक्टिव तथा नॉन इंटरएक्टिव । व्यापारिक रूप से नॉन इंटरएक्टिव प्रोग्राम ही बनाये जाते हैं। इसमें सूचनाएं वीडियो, ध्वनि, चित्रों इत्यादि द्वारा दिये जाते हैं, जिनका प्रोजेक्शन डेस्कटॉप से सीधे एक बड़े पर्दे पर एल०सी०सी० प्रोजेक्टर की सहायता से किया जाता है। इंटरएक्टिव मल्टी मीडिया का उपयोग निजी उपभोक्ता करते हैं।

    डिजीटल डिवाइड

    'डिजीटल डिवाइड' को सूचना प्रौद्योगिकी सम्पन्न और सूचना प्रौद्योगिकी विहीन देशों के बीच आर्थिक शक्ति के अंतर की उत्पत्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह अनेक अर्थव्यवस्थाओं, देशों, समुदायों तथा व्यक्तियों के बीच व्याप्त है। यह विभिन्न देशों में सूचना प्रौद्योगिकी जैसे पी.सी, मोबाइल, टेलीफोन तथा इंटरनेट आदि के उपयोग से स्पष्ट है। घटती-बढ़ती दरों से सूचना तकनीकी को अपनाने तथा 'डिजीटल डिवाइड' की उत्पत्ति का कारण प्रायः आर्थिक है। विभिन्न देशों तथा समुदायों में लोगों की खरीद शक्ति भिन्न-भिन्न है। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय तथा पी.सी. की कीमत के बीच 30. 1 का अनुपात है जबकि भारत में यह अनुपात 1:1 है। उसका तात्पर्य यह है कि एक पी.सी खरीदने के लिए भारत में एक वर्ष की आय के मुकाबले में संयुक्त राज्य अमेरिका में 12 दिन की आय खर्च करनी पड़ती है।

    प्रौद्योगिकी विभाजन

    सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकियों द्वारा शुरू की गयी वर्तमान सूचना क्रांति, आर्थिक विकास की प्रेरक शक्ति है। नयी प्रौद्योगिकियां तेजी के साथ पुरानी प्रौद्योगिकियों का स्थान लेती जा रही हैं तथा उनके उपयोग की तरीका भी बड़ी शीघ्रता से बदलता जा रहा है। क्रय शक्ति तथा आधारभूत ढ़ाचें का अभाव नई प्रौद्योगिकी न अपनाने के अन्य कारण हैं। ये बाधाएं विकासशील देशों में सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रसार में रूकावट पैदा करती हैं। यह सर्वविदित है कि समय के साथ प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तथा कीमत नीचे गिरती है, जिसके फलस्वरूप प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रसार होता है। सरकारी हस्तक्षेप तथा नीति भी प्रौद्योगिकी के प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। किसी प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रसार में सरकारी नीतियों का काफी योगदान होता है। तीव्र प्रौद्योगिकीय परिवर्तन से विकासशील देशों के कारोबार के भविष्य के बारे में काफी अनिश्चिता पैदा हो जाती है।

    आर्थिक विभाजन

    विभिन्न देशों ने भिन्न-भिन्न समय पर 'औद्योगिक अर्थव्यवस्था' से 'सूचना अर्थव्यवस्था' में प्रवेश किया तथा अब भी अनेक देशों में यह परिवर्तन जारी है। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि सूचना अर्थव्यवस्था औद्योगिक अर्थव्यवस्था को उसी तरीके से प्रभावित करेगी जैसे औद्योगिक अर्थव्यवस्था ने कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया था। सूचना प्रौद्योगिकीयों ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाई है जिससे निर्माण इकाइयों को सस्ते श्रमिक उपलब्धता के कारण गरीब तथा विकासशील देशों में स्थानांतरित किया गया। इस प्रकार श्रमिक वर्ग को एक अधिक हानिकारक या खतरनाक 'डिजीटल डिवाइड' 'सूचना उत्पादक' तथा 'सूचना उपभोक्ता' के रूप में विभाजित किया गया है। हमारा समाज भी दो समूहों यथा सूचना प्रौद्योगिकी के उत्पादक तथा उपभोक्ता में विभाजित हो रहा है। कुछ विकसित देश ज्ञान के उत्पादन तथा प्रबंध में सक्रिय होंगे, जबकि अविकसित और पिछड़े राष्ट्र उपभोक्ता होंगे। प्रौद्योगिकी के उत्पादकों व उपभोक्ताओं के बीच यह असमानता समय के साथ और बढ़ेगी।

    सामाजिक विभाजन

    सूचना अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के लिए कार्य शक्ति का विकास करना एक निर्णायक कारक है। आज प्रत्येक देश को मानव संसाधन विकास की चिंता है जिसके द्वारा सूचनाकरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके। शिक्षा, साक्षरता तथा कुछ हद तक भाषा कार्य शक्ति के विकास में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। केवल उच्च योग्यता वाले व्यक्ति ही सूचनाकरण का लाभ उठा सकेंगे वर्तमान सूचना युग में साक्षरता दूसरा परिवर्तनकारी अभिकर्ता है। आज के साक्षरों में न केवल आंकड़ा संभालने की योग्यता शामिल है, बल्कि उनके आकलन की भी योग्यता है पढ़ने लिखने तथा अंकगणित के बुनियादी ज्ञान के अतिरिक्त उसमें कम्पयुटर कौशल दृश्य कौशल, तकनीकी कौशल, गणित तथा तर्कशक्ति योग्यता, अंतर भाषीय तथा अंतर संस्कृति योग्यता भी शामिल है।

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