भारत में विज्ञान व प्रौद्योगिकी संस्थागत ढांचा

भारत में विज्ञान व प्रौद्योगिकी संस्थागत ढांचा_महत्वपूर्ण नोट्स

प्राचीन काल से लेकर वर्तमान शताब्दी तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की एक व्यापक और अद्वितीय परंपरा रही है। जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब देश का वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी ढांचा, विकसित देशों के समान सशक्त नहीं था इसी कारण विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अन्य देशों पर भारत की आश्रितता कुछ अधिक ही थी। परंतु विगत पांच दशकों में भारत में विज्ञान व प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास हेतु एक सशक्त संस्थागत ढांचे की स्थापना की गई है। इसी के परिणाम स्वरूप अन्य समृद्ध देशों पर भारत की निर्भरता घटी है। वर्तमान में भारत में वस्तुओं, उत्पादों और सेवाओं हेतु लघु उद्योग से लेकर अत्याधुनिक परिष्कृत उद्योगों तक की स्थापना की गई है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकीय कार्यकलाप केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के उद्योगों और गैर लाभकारी संस्थानों के एक विस्तृत तंत्र के अंतर्गत संचालित किए जाते हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नये क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देने और देश भर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़ी गतिविधियों के आयोजन, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए नोडल विभाग के रूप में मई 1971 को की गई। विशिष्ट परियोजनाओं और कार्यक्रमों के संदर्भ में विभाग के प्रमुख उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतिओं का निर्माण ।
  2. कैबिनेट की वैज्ञानिक परामर्श समिति से जुड़े मामलों को देखना ।
  3. उभरते हुए क्षेत्रों पर विशेष जोर के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नवीन क्षेत्रों का उन्नयन ।
  4. अंतः संस्थागत सहयोग वाले विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों का समन्वयन और एकीकरण ।
  5. जहां आवश्यक हो वहां वैज्ञानिक और तकनीक सर्वे, अनुसंधान डिजाइन और विकास कार्यों को देखना या वित्तीय रूप से उन्हें प्रायोजित करना ।
  6. वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों, वैज्ञानिक संघों और निकायों को सहायता व अनुदान देना।
  7. निम्नलिखित से संबंधित मामलों को देखना-
    • विज्ञान और इंजीनियरिंग रिसर्च परिषद ।
    • प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड तथा संबंधित अधिनियम जैसे रिसर्च एंड डेवलेपमेण्ट सेस एक्ट, 1986 तथा प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 19951
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार हेतु राष्ट्रीय परिषद ।
    • राष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड
    • अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग
    • एस्ट्रोफिजिक्स संस्थान और जिओ मैग्नेटिज्म संस्थानों के समेत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कार्य करने वाले स्वायत्त वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थान ।
    • सर्वे ऑफ इंडिया, नेशनल एटलस, थेमेटिक मैपिंग ऑर्गेनाइजेशन
    • राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउंडेशन, अहमदाबाद।
  8. वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विभागों/संगठनों/ संस्थानों को समान रूप से प्रभावित करने वाले मुद्दे उदाहरण स्वरूपः वित्तीय, कार्मिक क्रय और आयात नीतियां और व्यवहार |
  9. विज्ञान व प्रौद्योगिकी के लिए प्रबंधन सूचना तंत्र
  10. विज्ञान व प्रौद्योगिकी मिशनों के लिए अंतर्विभागीय समन्वय संबंधी मामले।
  11. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उन्नयन के लिए आवश्यक अन्य सभी मापदण्ड तथा विकास
  12. राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदों और अन्य तंत्रों के माध्यम से जमीनी स्तर पर विकास को सुनिश्चित कराने के लिए राज्य, जिला और ग्रामीण स्तर पर विज्ञान व प्रौद्योगिकी का उन्नयन ।
  13. कमजोर वर्गों, महिलाओं और समाज के अन्य वंचित वर्गों के हित में विज्ञान व प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का संगठनात्मक ढांचा

समानता, सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान (Science for Equity, Empowerment and Devel- opment-SEED): 'समानता सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान का उद्देश्य है कि उत्साही वैज्ञानिकों व क्षेत्रीय स्तर के कर्मचारियों को ऐसे अवसर प्रदान किए जाए ताकि वे विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में समुचित वैज्ञानिक और तकनीक उपायों द्वारा समाज के निर्धन और अपवंचित वर्गों के सामाजिक आर्थिक उत्थान के संदर्भ में क्रिया एवं स्थान आधारित परियोजनाओं को प्रारंभ कर सकें। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए समानता, सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान (SEED) प्रभाग की स्थापना विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत की गई। इस प्रभाग के तहत प्रत्येक प्रमुख कार्यक्रम के संदर्भ में संबंधित राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं तथा अन्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी विशेषज्ञ संस्थाओं के सहयोग को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है। ताकि एक विशेषज्ञता भण्डार को निर्मित किया जा सके, राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवसंरचना का उपयोग किया जा सके, राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवसंरचना का उपयोग किया जा सके तथा इसको जमीनी स्तर पर भी की जा रही विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी पहलों से जोड़ा जा सके।

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (National Council for science and Technology communication-NCSTC): राष्ट्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC), भारत सरकार का वह प्रमुख संगठन है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रचार व प्रसार के कार्य में संलग्न है तथा लोगों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए परंपरागत और गैर-परंपरागत दोनों प्रकार के जनसंचार माध्यमों के उपयोग द्वारा विभिन्न संचार प्रौद्योगिकियों के विकास, अनुकूलन, प्रोत्साहन और उपयोग पर बल दिया जा रहा है। कुछ प्राकृतिक और विशिष्ट घटनाओं पर आधारित गतिविधियों के माध्यम से विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। परिषद के सर्व प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • विज्ञान व प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के उन्नयन के क्षेत्र में उत्साह के वातावरण को निर्मित करना ।
  • जमीनी स्तर पर सूचना युक्त निर्णय निर्माण को सुनिश्चित करना।
  • विकास संबंधी मुद्दों पर बौद्धिक विचार-विमर्श को प्रोत्साहन देना ।

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद की प्रमुख गतिविधियां निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञान व प्रौद्योगिकी संचार के आवश्यक क्षेत्रों में अनुसंधान
  2. विज्ञान व प्रौद्योगिकी के चयनित क्षेत्रों में फिल्म, वीडियो, रेडियो कार्यक्रम, पुस्तकें, स्लाइड सेट इत्यादि का विकास।
  3. विज्ञान संचार के क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित एच्छिक संगठनों के शिक्षकों व कार्यकर्ताओं के लिए लघु अवधि के प्रशिक्षण का आयोजन।
  4. विज्ञान व प्रौद्योगिकी संचार के क्षेत्र में विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान पत्रकारों का विकास।
  5. उल्लेखनीय विज्ञान संचारकर्ताओं के लिए विशेष पुरस्कारों की व्यवस्था ।
  6. राज्य स्तरीय परिषदों व विज्ञान व प्रौद्योगिकी आधारित संगठनों के साथ समन्वय ।
  7. विज्ञान संचार के माध्यम से क्षमता निर्माण
  8. विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के नवाचारी उपायों का प्रदर्शन जैसे- राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, विज्ञान दिवस समारोह, एच्छिक रक्त दान कार्यक्रम, पर्यावरणीय जागरूकता कार्यक्रम इत्यादि ।
  9. पारस्परिक लाभ के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा ।

राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है जिसमें देश भर के 10-17 आयु वर्ग के बच्चे भाग लेते हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को अपने आस-पास के वातावरण से विज्ञान का सीखने हेतु प्रोत्साहित करना तथा ऐसा मंच प्रदान करना जहां पर बच्चे वैज्ञानिकों से मिलकर अपने प्रश्नों के समाधान पा सके तथा सृजनशील बन सकें। सामान्य तौर पर इस कार्यक्रम के दौरान बच्चों को पांच-पांच के समूह में बांटा जाता है। ये समूह स्थानीय मुद्दों से जुड़ी वैज्ञानिक परियोजनाओं पर काम करते हैं। वे अध्यापकों/ विज्ञान कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन में काम करते हैं और अपनी खोज को स्कूल/ब्लॉक, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर की कांग्रेस में प्रस्तुत करते हैं।

स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले लोगों के माध्यम से रक्त की मांग को पूरा करने के लिए एक स्वैच्छिक रक्तदान कार्यक्रम तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त विगत 150 वर्षों के दौरान प्रकाशित विभिन्न भारतीय भाषाओं की लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकों की सूची तैयार कर ली गई है। पर्यावरण तथा निरंतर विकास के मुद्दों पर जागरूकता के प्रसार हेतु अनेक इच्छुक व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया गया है जो कि विद्यालयों के विज्ञान क्लबों के समन्वयकों और विज्ञान व प्रौद्योगिकी आधारित संस्थाओं के क्रियाकलापों को आयोजित करेंगे।

राष्ट्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड (नेशनल साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेनरशिप डेवलेपमेण्ट | बोर्ड-NSTEDB) : राष्ट्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 1982 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत की गई। यह बोर्ड एक संस्थागत तंत्र है जो ज्ञानाधारित व तकनीक संचालित उद्यमों के प्रोन्नयन में सहायता प्रदान करता है। इस बोर्ड में सामाजिक-आर्थिक और वैज्ञानिक विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसका मूल उद्देश्य वैज्ञानिक व तकनीकी उपायों के माध्यम से 'रोजगार खोजकर्ताओं को 'रोजगार सृजनकर्ताओं में परिवर्तित करना है। राष्ट्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड, विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा स्थायी रोजगार प्रदान करने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं और कार्यक्रम लागू कर रहा है। बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम के अंतर्गत विज्ञान व प्रौद्योगिकी से जुड़े व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया गया है ताकि वे अपना काम-काज प्रारंभ कर सकें। बोर्ड अनेक व्यवसायों में कौशल संवर्द्धन कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है ताकि बेरोजगार युवाओं को स्थायी नौकरी अथवा स्वरोजगार के अवसर प्राप्त हो सकें।

संक्षेप में बोर्ड के सर्व प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • विज्ञान व प्रौद्योगिकी श्रम शक्ति के मध्य उच्च स्तरीय उद्यमशीलता का उन्नयन और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी अवसंरचना का प्रयोग करते हुए 'स्व-रोजगार' को प्रोत्साहन
  • उद्यमिता के विकास हेतु विभिन्न प्रकार की प्रोन्नयन सेवाओं को उपलब्ध कराना ।
  • पिछड़े वर्गों पर भी विशेष ध्यान देते हुए विज्ञान व प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए उद्यमशीलता व स्व-रोजगार का विकास करने हेतु शैक्षिक संस्थानों तथा अनुसंधान व विकास संगठनों के मध्य नेटवर्क की स्थापना ।
  • देश के विभिन्न विज्ञान व प्रौद्योगिकी संस्थानों में तथा उनके आस-पास विज्ञान व प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता पार्क (स्टैप) स्थापित किए गए हैं ताकि नवीन व मौजूदा उद्यमियों को प्रौद्योगिकी विकास, परीक्षण तथा अंशांकन, प्रलेखन और गणना, प्रशिक्षण आदि की सुविधाएं प्राप्त हो सकें। प्रौद्योगिकी व्यापार इंक्यूबेटर (टीबीआई) की स्थापना की योजना वर्ष 2000-01 में प्रारंभ की गई ताकि प्रौद्योगिकी आधारित उद्यमों को बढ़ावा दिया जा सके और अनुसंधान और विकास के नतीजों का तीव्रता से व्यवसायीकरण हो सके । इंक्यूबेटरों की स्थापना देश में शैक्षिक और अनुसंधान व विकास संस्थाओं में अथवा उनके निकट की जा रही है। उद्यमशीलता विकास प्रकोष्ठों (एंटरप्रेनरशिप डेवलेपमेंट सेल-म्क) की स्थापना शैक्षिक संस्थानों में की गई है ताकि योग्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्मिकों को उद्यम लगाने और स्वरोजगार/वेतन वाले रोजगार के अन्य तरीके प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सके। पिछड़े जिलों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता विकास योजना के अंतर्गत परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य संबंधित जिलों में छोटे उद्यम स्थापित करना है। ऐसे व्यक्ति जो नियमित उद्यमशीलता विकास कार्यक्रमों में भाग नहीं ले पाते उनके लिए वर्ष 1994-95 से अहमदाबाद के भारतीय उद्यमशीलता विकास संस्थान के साथ मिलकर मुक्त उद्यमशीलता प्रशिक्षण कार्यक्रम (ओपन लर्निंग प्रोग्राम इन एंटरप्रेनरशिप ओएलपीई) चलाया गया है।

    वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research CSIR) : सर्वोच्च औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास संगठन के रूप में भारत में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की स्थापना वर्ष 1942 में तत्कालीन केंद्रीय विधायी एसेम्बली (Central Legislative Assembly) के प्रस्ताव पर हुई। यह एक स्वायत्त निकाय है जो वर्ष 1860 के सोसायटीज पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत है। इसका मुख्य उद्देश्य विज्ञान में विशिष्ट उपलब्धि हासिल करना, उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि हासिल करना, उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता अर्जित करना तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी से जुड़ी सभी गतिविधियों के प्रबंधन से लेकर वित्त पोषण तक में नवीनता लाना है। यह परिषद औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, सामाजिक क्षेत्र के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकीय आधार, ज्ञानवर्द्धन के लिए विज्ञान तथा समाज कल्याण के लिए सक्रिय रूप से प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराती है। यहां पर उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।

    विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग

    विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद (Science and Engineering Research Council -SERC): विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान तथा अभियांत्रिकी के क्षेत्रों में विभिन्न विषयों में अनुसंधान तथा विकास क्षेत्रों की पहचान व उनके विकास में सराहनीय भूमिका निभा रहा है। यह कार्य विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद (SERC) के माध्यम से किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्ष 1974 में स्थापित विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद (एसईआरसी) सर्वोच्च निकाय है जिसके माध्यम से भारत सरकार का विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग विज्ञान व अभियांत्रिकी के नए उभरते व चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान व विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है। परिषद में विभिन्न विश्व विद्यालयों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और उद्योगों के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, तकनीकीविद् इत्यादि शामिल होते हैं। विज्ञान व अभियांत्रिकी की विभिन्न शाखाओं में परिषद की सहायता हेतु कार्यक्रम परामर्शदात्री समितियां (Programme Advisory committees-PACs) होती हैं। परिषद अपनी परामर्शदात्री समितियों के माध्यम से विभाग को विभिन्न प्रस्तावों को विश्लेषण में सहायता देने के साथ-साथ अनुसंधान व विकास के ऐसे नए और अंतर विषयक क्षेत्रों की पहचान भी करती है जिनमें समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। परामर्शदात्री समितियों की ही सहायता से परिषद विभिन्न विषयों में प्रायोजित प्रत्येक परियोजना की प्रगति की निगरानी भी करती है और देखती है कि समन्वित | व ठोस प्रयासों में कितनी प्रगति हुई है। प्रत्येक वर्ष विभाग को लगभग 1000 अनुसंधान प्रस्ताव प्राप्त होते हैं जिनमें से अधिकांश मूलभूत विज्ञान व अभियांत्रिकी अनुसंधान की श्रेणी में आते हैं।

    संक्षेप में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद के सर्वप्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • बहुअनुशासनात्मक क्षेत्रों समेत विज्ञान और अभियांत्रिकी के नवीन उभरते हुए और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
  • विज्ञान व अभियांत्रिकी के प्रासंगिक क्षेत्रों में संस्थानों की सामान्य अनुसंधान क्षमता का चयनात्मक उन्नयन करना ।
  • अनुसंधान व विकास की चुनौतियों से निपटने में युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन देना
  • सापेक्षतया लघु संस्थानों या विश्वविद्यालयी विभागों से प्राप्त प्रस्तावों पर विशेष ध्यान देना ।
  • देश में वैज्ञानिकों व तकनीकविदों को पेटेंट की सुविधा मुहैया कराना ।
  • प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड ( Technology Development Board ): प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के तहत सितंबर, 1996 में गठित प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड, सरकार के अधीन अपने प्रकार का एक मात्र संगठन है जिसका एकमेव उद्देश्य विभिन्न अनुसंधानों के परिणामों को व्यावसायिक उत्पादों या सेवाओं में परिवर्तित करना है। यह बोर्ड औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य संस्थाओं को स्वदेशी तकनीक के विकास तथा व्यावसायिक उपयोग करने अथवा आयातित तकनीक के वृहत घरेलू उपयोग को अपनाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है। बोर्ड ने जिन क्षेत्रों को आर्थिक सहायता दी है वे हैं: चिकित्सा तथा औषधियां, दूरसंचार, ऊर्जा, वायु परिवहन, बिजली की तार, सड़क, अपशिष्ट प्रयोग, अभियांत्रिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक, कृषि तथा जैव प्रौद्योगिकी, रसायन तथा स्नेहक, सूचना प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, शैक्षिक संस्थानों तथा उद्योग में मान्यता प्राप्त इन हाउस अनुसंधान व विकास इकाइयों द्वारा प्रौद्योगिकी प्रदान की जाती है। जिन उत्पादों का सफलतापूर्वक उत्पादन और विपणन किया जा रहा है उनमें अनुवांशिक विधि से विकसित हैपेटाइटिस-बी टीका, मक्का के अपशिष्ट से जैव उर्वरक, सूर्यामिन नाम | से ग्लूटेन, क्षयरोग के उपचार में प्रयुक्त औषधि के निर्माण में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण प्रतिस्थानिक औषधि डी एल -2 अमीनो ब्यूटोनोल, खाने योग एंटी बायोटिक सेफेलोस्पोरिन औषधि सेफक्सिम, रिकाम्बिनेंट हैपेटाइटिस-बी टीका, बैक्टीरियल इंडोटॉनिक्स का पता लगाने हेतु सी ए एल री एजेंट, कपड़ा मिलों के लिए वार्डिंग मशीन, निकोटिनेमाइड, अरंडी के तेल से अन्डीसेनिओइक अम्ल और शहरी कचरे से ईंधन इत्यादि ।

    संक्षेप में कहें तो प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड सक्रिय रूप से निम्नलिखित भूमिका निभाता है-

    • किसी भी क्षेत्र में तकनीक प्रेरित परियोजना पर बल देना।
    • पहचान प्राप्त विशेषज्ञों द्वारा विशिष्ट मूल्यांकन प्रविधि |
    • परियोजना संबंधी आवेदन को प्रस्तुत करने हेतु आवेदक को पूर्ण अवसर ।
    • परियोजनाओं के दस्तावेजों / प्रविधियों के सम्मानपूर्वक गुप्तता बरतता है।
    • परियोजनाओं के संदर्भ में आवेदनों के विश्लेषण में पारदर्शिता ।
    • उन्नत प्रौद्योगिकी व उच्च जोखिम के संदर्भ में उद्योगों को प्रोत्साहन ।
    • रोजगार के नवीन अवसरों का सृजन ।

    प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड वर्ष 1999 से प्रत्येक वर्ष 11 मई को प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर किसी एक औद्योगिक इकाई को 'स्वदेशी प्रौद्योगिकी के सफल व्यवसायीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार' प्रदान करता है।

    राष्ट्रीय पुरस्कार के दो भाग होते हैं-

    1. औद्योगिक इकाई जिसने स्वदेशी प्रौद्योगिकी का सफल व्यवसायीकरण किया हो
    2. ऐसी प्रौद्योगिकी का विकासकर्ता/प्रदाता

    प्रत्येक भाग की पुरस्कार राशि दो लाख रुपए है जो कि प्रौद्योगिकी आधारित उत्पाद का सफल व्यवसायीकरण करने वाली लघु इकाई को दी जाती है।

    राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड (National Accreditation Board): परीक्षण तथा अंशांकन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड, भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत निकाय है तथा सोसाइटीज अधिनियम के तहत पंजीकृत है। यह बोर्ड परीक्षण, अंशाकन और चिकित्सा प्रयोगशालाओं की तकनीकी क्षमता के लिए औपचारिक मान्यता प्रदान करता है। बोर्ड की मान्यता परीक्षण और अंशाकन प्रयोगशालाओं के लिए सामान्य तौर पर आईएसओ आईईसी 17025-2005 तथा चिकित्सा प्रयोगशालाओं के लिए आईएसओ 15189:2003 पर आधारित है। बोर्ड की प्रमाणन प्रणाली आईएसओ / आईईसी 17011:2004 और एशिया पैसिफिक लेबोरेटरी एक्रेडिटेशन कार्पोरेशन एम आर 001 के प्रावधानों के अनुसार है। वर्ष 2000 में एशिया पैसिफिक लेबोरेटरी एक्रेडिटेशन कार्पोरेशन (एपीएलसी) द्वारा बोर्ड के कार्यों के मूल्यांकन के पश्चात एपीएलसी और इंटरनेशनल लेबोरेटरी एक्रेडिटेशन कार्पोरेशन ने बोर्ड को पारस्परिक मान्यता व्यवस्था के तहत हस्ताक्षरकर्ता सदस्य देश का दर्जा दे दिया है।

    विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए परियोजनाएं

    भारत सरकार का विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग नई प्रतिभाओं की पहचान के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को सहयोग देता है। और विज्ञान व प्रौद्योगिकी के अग्रणी क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए फैलोशिप के रूप में वित्तीय सहायता देता है। विभाग शोधकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, ग्रीष्म विद्यालय तथा संपर्क कार्यक्रम चलाता है। भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर सरकार ने स्वर्ण जयंती शोधवृत्ति योजना शुरू की जिसका उद्देश्य प्रतिभावान युवा वैज्ञानिकों को विज्ञान में विश्व स्तरीय क्षमता हासिल करने में सहायता करना है। यह फैलोशिप 30-40 वर्ष के आयुवर्ग वाले ऐसे भारतीय वैज्ञानिकों के लिए है जिन्होंने अनुसंधान के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है और अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में नवीन ऊंचाइयों को हुआ है।

    रामानुजन फैलोशिप : भारत सरकार द्वारा रामानुजन फैलोशिप की स्थापना विश्व भर के सुयोग्य वैज्ञानिक और अभियंताओं के लिए की गई है ताकि वे भारत में वैज्ञानिक अनुसंधानों को नेतृत्व प्रदान करें। इसमें विशेष बल वैसे वैज्ञानिकों पर दिया जाता है जो विदेश से भारत आने की इच्छा रखते हैं। फैलोशिप, अत्यधिक प्राप्त वैज्ञानिक देश के किसी भी वैज्ञानिक संस्थान या विश्व विद्यालय में कार्य कर सकता है तथा ऐसा वैज्ञानिक, भारत सरकार की विभिन्न विज्ञान व प्रौद्योगिकी एजेंसियों द्वारा प्रदत्त अनुसंधान सहायता को प्राप्त करने का पात्र होगा। रामानुजन फेलोशिप के अंतर्गत चयनित वैज्ञानिक को 75000 रुपए प्रतिमाह देय होता है।

    जे.सी. बोस नेशनल फेलोशिप: भारत सरकार द्वारा स्थापित जे.सी. बोस नेशनल फेलोशिप उन सक्रिय वैज्ञानिकों व अभियंताओं के लिए है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया हो। इस फेलोशिप से संबंधित विषयों का प्रशासन विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाता है। फैलोशिप अत्यधिक चयनात्मक व वैज्ञानिक विशेष आधारित है। इसके अंतर्गत चयनित वैज्ञानिक को 25000 रुपए प्रतिमाह देय होता है।

    रामन्ना फेलोशिप: रामन्ना फैलोशिप का उद्देश्य वैसे अनुसंधानकर्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना है जिन्होंने वैज्ञानिक और अभियांत्रिकी परिषद के अंतर्गत चल रही परियोजनाओं में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया हो।

    इंस्पायर (Innovation in Science Pursuit for inspired Research - INSPIRE ) : इनोवेशन इन साइस परस्यूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च ( इंस्पायर ), प्रतिभाओं को विज्ञान की ओर आकर्षित करने के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित व प्रायोजित नवाचारी कार्यक्रम है। इंस्पायर ( INSPIRE ) कार्यक्रम का मूल्य उद्देश्य विज्ञान के रचनात्मक आकर्षण को देश के युवाओं तक पहुंचना, कम आयु में ही प्रतिभाओं को विज्ञान की ओर आकर्षित करना और विज्ञान व प्रौद्योगिकी तंत्र और अनुसंधान व विकास के सशक्तिकरण व प्रसार हेतु आवश्यक मानव संसाधन पूल की रचना करना। इस कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह किसी भी स्तर पर प्रतिभाओं की पहचान हेतु किसी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षा का सहारा नहीं लेता। प्रतिभाओं की पहचान हेतु यह कार्यक्रम निवर्तमान शैक्षिक तंत्र पर ही विश्वास करता है। इंस्पायर (छैचत) के तीन घटक हैं-

    1. प्रतिभाओं को शीघ्र आकर्षित करने की स्कीम: इसके तहत 10-15 आयु वर्ग के दस लाख बच्चों को 5000 रुपए का पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त हाईस्कूल की परीक्षा में घोषित टॉपर्स को विज्ञान के क्षेत्र के वैश्विक नेताओं से मिलने का अवसर प्रदान किया जाता है। देश में 100 से भी अधिक स्थानों पर करीब 50,000 युवाओं के लिए वार्षिक विज्ञान कैम्पों का भी आयोजन किया जाता है।

    2 . उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति: उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति का उद्देश्य प्रतिभावान युवाओं को विज्ञान सघन कार्यक्रमों में उच्चतर शिक्षा हेतु छात्रवृत्तियों व कैंपों के माध्यम से आकर्षित करना। योजना के तहत प्रत्येक वर्ष 17-22 आयुवर्ग के युवाओं को दस हजार छात्रवृत्तियां, 0.80 लाख रुपए की प्रदान की जाती है, ताकि ये युवा प्राकृतिक एवं आधारभूत विज्ञान के क्षेत्र में स्नातक व परास्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर सके।

    3. रिसर्च कैरिअर के लिए अवसर की सुनिश्चिता: इस कार्यक्रम का उद्देश्य आधारभूत व अनुप्रयोग विज्ञान (इंजीनियरिंग व औषधि समेत) 22-27 वर्ष आयु वर्ग के युवा वैज्ञानिकों को डॉक्टोरल इंस्पायर फेलोशिप प्रदान करना है ताकि अनुसंधान व विकास अवसंरचना को सशक्त किया जा सके।

    युवा वैज्ञानिकों हेतु फास्ट ट्रैक स्कीम ( FAST): फास्ट ट्रैक युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम वर्ष 2000 में प्रारंभ किया गया। इसका उद्देश्य युवा वैज्ञानिको को शीघ्र अनुसंधान सहायता उपलब्ध कराना है ताकि वे विज्ञान और अभियांत्रिकी के उभरते हुए क्षेत्रों में अपने विचारों व दृष्टिकोण का उपयोग कर सके। यह स्कीम युवा वैज्ञानिकों को जोड़ने हेतु वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों का विकास करने के लिए वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी संस्थानों, व्यवसायिक निकायों तथा राज्य विज्ञज्ञन व प्रौद्योगिकी परिषदों समेत अन्य संस्थानों को प्रोत्साहन देती है। इस स्कीम के तहत युवा वैज्ञानिक वर्ष के किसी भी समय अपने प्रस्तावों को प्रस्तुत कर सकते हैं। इस स्कीम के तहत प्रोजेक्ट समयावधि की ऊपरी सीमा 3 वर्ष तथा कुल लागत सीमा 17 लाख रुपए हैं। अभी तक 600 युवा वैज्ञानिक, विज्ञान व अभियांत्रिकी की विविध शाखाओं में फास्ट ट्रैक स्कीम के तहत लाभान्वित हो चुके हैं। किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना: किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना, भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वर्ष 1999 में प्रारंभ की गई। इस योजना का उद्देश्य आधारभूत विज्ञान, अभियांत्रिकी और औषधि विज्ञान के छात्रों को प्रोत्साहन देना है ताकि ये छात्र इन्हीं क्षेत्रों में अनुसंधान को कैरिअर के रूप में अपना सके। वस्तुतः इस योजना का लक्ष्य ही है कि अनुसंधान की ओर अभिवृत्ति रखने वाले प्रतिभावान छात्रों की पहचान और उनको प्रोत्साहन दिया जाए। यह योजना छात्रों को अपनी क्षमताओं को पूर्ण रूपेण साकार करने का अवसर प्रदान करती है तथा साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि देश की सर्वोत्तम वैज्ञानिक प्रतिभा का विकास हो ताकि देश में अनुसंधान को बढ़ावा मिल सके। योजना के तहत चयनित विद्यार्थियों को सामान्य व आकस्मिक छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त चयनितों के लिए देश के प्रतिष्ठित अनुसंधान और शैक्षिक संस्थानों में ग्रीष्म कालीन कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है।

    किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना: किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना का वित्तीयन भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाता है जबकि योजना का प्रशासन भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलुरू द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त योजना के क्रियान्वयन पर दृष्टि रखने के लिए एक राष्ट्रीय परामर्शदात्री समिति की भी स्थापना की गई है। एक बेसिक समिति और एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक समिति, योजना के प्रशासकीय व शैक्षिक पहलुओं पर दृष्टि रखती है।

    अंतर्राष्ट्रीय ट्रैवेल सपोर्ट सिस्टम: अंतर्राष्ट्रीय ट्रैवेल सपोर्ट सिस्टम योजना का उद्देश्य किसी अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन, सेमिनार / वर्कशॉप इत्यादि में किसी रिसर्च पत्र को प्रस्तुत करने या सम्मेलन का आयोजन करने इत्यादि में वित्तीय सहयोग प्रदान करना है। इस योजना के तहत 35 वर्ष से कम आयु वाले युवा वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा लघु अवधि की वर्कशापों / पाठ्यक्रमों में शामिल होने हेतु सहायता प्रदान की जाती है।

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