पादप जल सम्बन्ध ( Plant Water Relations )

पादप जल सम्बन्ध ( Plant Water Relations )

पादपों की समस्त जैविक एवं कार्यिकी क्रियाओं के लिए जल आवश्यक माध्यम है । जल , श्रेष्ठ विलायक ( Solvent ) होने के कारण यह पादपों के जैविक तंत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है ।

पदार्थ के अणुओं का उनकी अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर गमन , विसरण ( Diffusion ) कहलाता है ।

विसरित होने वाले पदार्थ के अणुओं की गति के कारण उत्पन्न दाब को विसरण दाब ( Diffusion pressure ) कहते हैं ।

विसरण की दर , माध्यम के तापमान , अणुओं के आकार तथा माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करती है ।

किसी झिल्ली में से पदार्थ के अणुओं के विसरण के गुण को उस झिल्ली की पारगम्यता कहते हैं ।

विलायक के अणुओं का अर्द्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा कम सान्द्र विलयन ( Hypotonic solution ) से अधिक सान्द्र विलयन ( Hyper tonic solution ) की ओर जाना परासरण ( Osmosis ) कहलाता है ।

वह दाब जो शुद्ध जल को अर्द्धपारगम्य झिल्ली के दूसरी तरफ विद्यमान विलयन में प्रवेश करने से रोकने के लिए आवश्यक है , परासरण दाब कहलाता है ।

जीव द्रव्य कुंचन केवल सजीव कोशिकाओं में ही होता है , अतः कोशिका की सजीवता व निर्जीवता का पता जीवद्रव्य कुंचन द्वारा लगाया जाता है ।

जब किसी पादप कोशिका को किसी अतिपरासरी विलयन ( Hyper tonic solution ) में रखा जाता है , तब कोशिका का कोशिकाद्रव्य ( Cytoplasm ) कोशिका भित्ति को छोड़कर संकुचित होना प्रारम्भ कर देता है । अन्त में कोशिकाद्रव्य , कोशिकाभित्ति ( Cell wall ) को छोड़कर कोशिका के मध्य भाग में सिकुड़कर गोलाकार हो जाता है , इस क्रिया को जीवद्रव्यकुंचन ( Plasmolysis ) कहते हैं ।

जब किसी जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को पानी ( अल्पपरासरी विलयन ) में रखा जाता है , तब इसमें अन्तः परासरण ( endosmosis ) की क्रिया होती है , जिसके परिणामस्वरूप कोशिका स्फीत ( Turgid ) हो जाती है तथा कोशिकाद्रव्य अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है , इस क्रिया को जीवद्रव्य विकुंचन ( Deplasmolysis ) कहते हैं ।

सजीव पादप कोशिका में अन्त : परासरण क्रिया के कारण उत्पन्न विभिन्न प्रकार के दाबों में निम्न सम्बन्ध होता है -
DPD = OP - TP

शलथ कोशिका में DPD का मान OP के बराबर होता है । जबकि स्फीत कोशिका में DPD का मान न्यूनतम होता है ।

विलयन की सान्द्रता जितनी अधिक होगी उतना ही अधिक ऋणात्मक उसका जल विभव होगा अर्थात् विलेय पदार्थ की मात्रा बढ़ने पर जल विभव का मान कम हो जाता है ।

किसी विलयन का परासरण दाब ( OP ) उसमें उपस्थित विलेय पदार्थ के अणुओं की संख्या के समानुपाती होता है । दूसरे शब्दों में अति परासरी घोल का OP मान अधिक होता है ।

शुद्ध जल ( विलायक ) तथा विलयन में जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा में अन्तर को जल विभव ( Water Potential ) कहते हैं । जल विभव को ψ ( साई ) से प्रदर्शित करते हैं ।
ψw = ψs + ψp

विसरण दाब न्यूनता को चूषण दाब , अवशोषण विभव या चूषण बल या DPD भी कहते हैं ।

मैट्रिक विभव ( ψm ) , विलेय विभव (ψs ) , दाब विभव ( ψp ) का जल विभव ψw से सम्बन्ध
ψw = ψm + ψs + ψp

अन्त : शोषण ( Imbibition ) एक भौतिक प्रक्रिया ( Physical process ) है । यह एक विशेष प्रकार का विसरण है , जिसमें ठोस या अर्द्धठोस कार्बनिक पदार्थ जल या नमी का अवशोषण करके फूल जाते हैं ।

सभी जैविक क्रियाओं के लिए जल एक अनुकूल माध्यम ( सार्वत्रिक विलायक ) के रूप में कार्य करता है ।

स्वतन्त्र विसरण - किसी तन्त्र में विभिन्न पदार्थों का विसरण अपने ही अणुओं की सान्द्रता पर निर्भर करता है तथा अन्य पदार्थों की उपस्थिति से अप्रभावित रहता है । इसे ही स्वतन्त्र विसरण कहते हैं ।

किसी भी पदार्थ के विसरण की दर उसके घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है
विसरण की दर ( r ) = 1 / √d

पारगम्य - वह परत जो विलेय व विलायक दोनों के अणुओं को पारण प्रदान करती है , वह पारगम्य कहलाती है । उदा . कोशिका भित्ति ।

चयनात्मक पारगम्य ( या विभेदात्मक पारगम्य ) - जब कोई परत या झिल्ली विलायक ( जल ) के लिए अधिक पारगम्य व विलेय के लिए अपेक्षाकृत कम पारगम्य होती है , उसे अवकलनीय या चयनात्मक पारगम्य कहा जताा है । उदा . - प्लाज्मा झिल्ली व टोनोप्लास्ट ।

अर्धपारगम्य झिल्ली - जब कोई झिल्ली या परत जल के अणुओं के लिए पारगम्य तथा विलेय के अणुओं के लिए पूर्णतः अपारगम्य होती है तो उसे अर्धपारगम्य झिल्ली कहते हैं । उदा . - कुछ परिस्थितियों में कोशिका झिल्ली ।

अपारगम्य परत - वह परत जिसमें से होकर विलायक ( जल ) व विलेय दोनों में कोई भी आर - पार नहीं हो सकता हो , उसे अपारगम्य परत कहते हैं । उदा . उपत्वा व काग ।

परासरण - विलायक ( जल ) के अणुओं का अपनी अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होते हुए गमन करने को परासरण कहते हैं ।

अन्तः परासरण - जब विलायक के अणु कोशिका झिल्ली से होते हुए कोशिका में प्रवेश करते हैं तो इस क्रिया को अन्तः परासरण कहते हैं ।

सामान्य कोशिका को अतिपरासरी विलयन में रखने पर बहि : परासरण क्रिया होगी ।

जीवद्रव्य कुंचन - जब किसी पादप कोशिका को अतिपरासरी विलयन में रखा जाता है तो बहिः परासरण के कारण कोशिका का जीवद्रव्य कोशिका भित्ति को छोड़कर सिकुड़कर गोलाकार हो जाता है अर्थात् संकुचित हो जाता है । इस क्रिया को जीवद्रव्यकुंचन कहते हैं ।

जीवद्रव्य विकुंचन - यदि प्रारंभी जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को जल या अल्परासरी विलयन में रखा जाता है तो वह कोशिका पुनः अन्तःपरासरण के कारण , स्फीत हो जाती है । इस क्रिया को जीवद्रव्यविकुंचन कहते हैं ।

परासरण दाब - शुद्ध जल ( विलायक ) के अणुओं को अर्धपारगम्य झिल्ली के दूसरी ओर स्थित विलयन ( घोल ) में प्रवेश करने से रोकने के लिए आवश्यक दाब को परासरण दाब कहते हैं ।

विसरण दाब न्यूनता ( DPD ) - शुद्ध विलायक ( जल ) की तुलना में विलयन के विसरण दाब में जितनी कमी होती है , उसे विसरण दाब न्यूनता कहते हैं ।

विसरण दाब न्यूनता ( DPD ) को चूषण दाब कहा जाता है क्यों कि विसरण दाब न्यूनता विलयन की विलायक ( जल ) को अवशोषित करने की क्षमता होती है , अत : DPD को चूषण दाब ( Suction Pressure ) कहते हैं । ( DPD = OP - TP )

जल विभव की अवधारणा आर . के . स्लेटियर एवं एस . ए . टायलर ( 1960 ) ने प्रस्तुत की थी ।

जल विभव की इकाई बार ( Bar ) या वायुमण्डल ( Atmospheres = atm ) दाब होती है ।

जल विभव - शुद्ध जल ( विलायक ) एवं विलयन में उपस्थित जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा के अन्तर को जल विभव ( ψw ) कहते हैं ।

अन्त : शोषण ( Inlibition ) - किसी पदार्थ के ठोस कणों द्वारा किसी द्रव का बिना विलयन बनाये अवशोषण को अन्त : शोषण कहते हैं । उदा . बरसात के दिनों नमी पाकर लकड़ी के दरवाजों का फूलना ।

शुद्ध जल के जल विभव का मान शून्य होता है ।

ऊष्मागतिकी के अनुसार DPD को जल विभव ( ψw ) कहा जाता है ।

परासरण क्रिया प्रदर्शित करने वाले उपकरण को परासरणमापी ( Osmoscope ) कहा जाता है ।

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